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पहलगाम में आतंकी हमले के बाद से ही एक शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में है- सिंदूर… सड़क से लेकर सियासत तक हर जगह इसी की चर्चा हो रही है। सिंदूर जिसे अंग्रेजी में Vermilion कहा जाता है, भारतीय सभ्यता और संस्कृति का महत्तवपूर्ण हिस्सा रहा है। आइए आज जानते हैं, सिंदूर और उसके समाजशास्त्र के बारे में…
कहा जाता है कि सिंदूर की शुरुआत मंगला चिह्न के रूप में हुई, जो विवाहित महिलाओं की शुभता और समृद्धि का संकेत था। पुरातात्विक खुदाई में भी सिंदूर के अवशेष मिले हैं, जो इस प्रथा की प्राचीनता को दर्शाते हैं।
वैदिक काल से ही महिलाओं द्वारा सिंदूर लगाना एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा रही है। सिंदूर का सबसे पुराना उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रंथों और रामायण- महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी मिलता है, जहां यह विवाह और सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
पंच सौभाग्य में सिंदूर सबसे अहम
वैदिक काल में सिंदूर को कुंकुम के नाम से जाना जाता था और इसे पंच सौभाग्य का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता था। पंच सौभाग्य में सिंदूर के साथ-साथ बालों में पुष्प, मंगलसूत्र, पैरों में अंगूठी और चेहरे पर हल्दी भी शामिल थे।
सिंदूर की प्रथा कब शुरू हुई थी
धार्मिक कथाओं के मुताबिक, सिंदूर लगाने की परंपरा की शुरुआत माता पार्वती ने की थी। शिवपुराण में वर्णित है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की।
जब भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया, तब माता पार्वती ने सुहाग का प्रतीक स्वरूप अपनी मांग में सिंदूर लगाया।
उन्होंने यह भी कहा कि जो भी स्त्री सिंदूर लगाएगी, उसके पति को दीर्घायु और सौभाग्य प्राप्त होगा। इसी कारण से सिंदूर लगाने की यह पावन परंपरा माता पार्वती से आरंभ होकर आज भी जीवित है।
सांस्कृतिक महत्व
सिंदूर भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, खासकर हिंदू समाज में। यह विवाहित महिलाओं की पहचान के रूप में प्रयोग होता है। सिंदूर लगाना विवाह के बाद महिलाओं का एक सामाजिक और धार्मिक संस्कार माना जाता है।
इसे ‘सिंदूर दान’ या ‘सिंदूर लगाने की परंपरा’ के रूप में जाना जाता है। सिंदूर के माध्यम से पति की लंबी आयु, परिवार की खुशहाली और पत्नी की समर्पण भावना को दर्शाया जाता है।
सामाजिक सम्मान
यह केवल विवाह की निशानी नहीं, बल्कि सामाजिक सम्मान, पारिवारिक जिम्मेदारी और जीवनसाथी के प्रति प्रेम का प्रतीक भी है। कुछ क्षेत्रों में, सिंदूर लगाना स्त्री जीवन के सुख-शांति और सौभाग्य के लिए अनिवार्य माना जाता है।
भारतीय ग्रंथों में सिंदूर (सिन्दूर) का उल्लेख धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व के साथ मिलता है। यह विवाहित स्त्रियों का प्रतीक माना जाता है और देवी-देवताओं की पूजा में भी इसका विशेष स्थान है। निम्नलिखित ग्रंथों में सिंदूर का उल्लेख प्राप्त होता है:
भारत में सिंदूर का उपयोग कब शुरू हुआ
भारत में सिंदूर का उपयोग प्राचीन काल से होता आया है। इसके ऐतिहासिक साक्ष्य पुरातात्विक खोजों, धार्मिक ग्रंथों और विदेशी यात्रियों के विवरणों में मिलते हैं। सिंदूर का प्रयोग मुख्यतः धार्मिक, सामाजिक और सौंदर्य प्रसाधन के रूप में किया जाता रहा है।
प्रागैतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्य
(A) सिंधु घाटी सभ्यता (लगभग 3300–1300 ईसा पूर्व)
- हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में लाल रंग के पिगमेंट (जो सिंदूर जैसा हो सकता है) के अवशेष मिले हैं।
- महिलाओं की मूर्तियों में माथे पर लाल रंग के निशान पाए गए हैं, जो संभवतः सिंदूर या कुमकुम का प्रयोग दर्शाते हैं।
- संदर्भ : "The Indus Civilization: A Contemporary Perspective" – Gregory L. Possehl (2002)
(B) प्राचीन भारत में रंगों का उपयोग
- मेहरगढ़ (7000 ईसा पूर्व) और चालकोलिथिक युग में लाल गेरू (ओकर) का प्रयोग मिलता है, जो सिंदूर के प्रारंभिक रूप का संकेत देता है।
- संदर्भ : "Ancient India: New Research" – Upinder Singh (2009)
वैदिक काल (1500–500 ईसा पूर्व)
- अथर्ववेद (7.9.2) में लाल रंग के पदार्थ (सिंदूर जैसे) का उल्लेख है, जिसका प्रयोग मंगल कार्यों में किया जाता था।
- शतपथ ब्राह्मण (3.1.2.21) में यज्ञ में लाल चूर्ण (सिंदूर) के उपयोग का वर्णन है।
- संदर्भ : "Vedic Index of Names and Subjects" – A.A. Macdonell & A.B. Keith (1912)
महाकाव्य काल (रामायण, महाभारत)
(A) रामायण
- वाल्मीकि रामायण (अयोध्या कांड, 26.15-16) में सीता द्वारा सिंदूर धारण करने का उल्लेख है।
- रामचरितमानस (सुंदरकांड) में हनुमान जी सीता को सिंदूरयुक्त मांग से पहचानते हैं।
(ख) महाभारत
- आदि पर्व (95.75) में द्रौपदी के सिंदूर धारण करने का वर्णन है।
- अनुशासन पर्व (46.12) में सिंदूर को स्त्रीधर्म का प्रतीक बताया गया है।
- संदर्भ : "The Mahabharata: A Modern Rendering" – Ramesh Menon (2006)
पुराणों और धर्मशास्त्रों में (300 ईसा पूर्व–1000 ईस्वी)
(A) मनुस्मृति
- मनुस्मृति (2.32, 5.155) में सिंदूर को विवाहित स्त्री का अनिवार्य शृंगार बताया गया है।
(B) भविष्य पुराण
- भविष्य पुराण (उत्तर पर्व, 59.10-12) में कहा गया है कि सिंदूर पति की दीर्घायु का प्रतीक है।
(C) शिव पुराण और देवी भागवत
- शिव पुराण (रुद्रसंहिता, 2.12.15-18) में पार्वती द्वारा शिव को सिंदूर चढ़ाने की कथा है।
- संदर्भ : "Puranic Encyclopedia" – Vettam Mani (1975)
(D) तंत्र ग्रंथों में सिंदूर
- तंत्रसार (अध्याय 5) में सिंदूर को शक्ति का प्रतीक माना गया है और देवी पूजा में इसका उपयोग किया जाता है।
- रुद्रयामल तंत्र (15.22) में लाल सिंदूर को लक्ष्मी प्राप्ति का साधन बताया गया है।
(E) संस्कृत साहित्य में सिंदूर
- कालिदास के 'कुमारसंभवम्' (5.72) में पार्वती के शृंगार में सिंदूर का वर्णन है।
- भर्तृहरि के शतकत्रय में सिंदूर को स्त्री के प्रेम और समर्पण का प्रतीक कहा गया है।
प्राचीन विदेशी यात्रियों के विवरण
(A) मेगस्थनीज (300 ईसा पूर्व)
- अपनी पुस्तक "इंडिका" में भारतीय महिलाओं के लाल रंग के शृंगार का उल्लेख किया है।
(ख) फाह्यान (5वीं शताब्दी) और ह्वेनसांग (7वीं शताब्दी)
- इन चीनी यात्रियों ने भारतीय विवाहित स्त्रियों के माथे पर सिंदूर लगाने की प्रथा का वर्णन किया है।
- संदर्भ : "Si-Yu-Ki: Buddhist Records of the Western World" – Hiuen Tsang (1884)
मध्यकालीन भारत (800–1800 ईस्वी)
- अलबरूनी (11वीं शताब्दी) ने अपनी पुस्तक "तहकीक-ए-हिंद" में हिंदू स्त्रियों के सिंदूर प्रयोग का उल्लेख किया।
- मुगलकालीन चित्रों (जैसे राजस्थानी और पहाड़ी चित्रकला ) में विवाहित स्त्रियों को सिंदूर लगाए दर्शाया गया है।
- संदर्भ : "Alberuni's India" – Edward C. Sachau (1910)
भारतीय ग्रंथों में सिंदूर का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व स्पष्ट है। यह न केवल विवाहित स्त्रियों का प्रतीक है, बल्कि देवी-देवताओं की पूजा में भी इसका विशेष स्थान है।
ग्रंथों में इसे सौभाग्य, शक्ति और मंगलकारी माना गया है। इन ग्रंथों से स्पष्ट है कि सिंदूर भारतीय संस्कृति में एक पवित्र और महत्वपूर्ण प्रतीक रहा है।
देश में सिंदूर से जुड़ी रोचक परंपराएं
सिंदूर खेलने की परंपरा (सिंदूर खेळ) - पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में 'सिंदूर खेळ' त्योहार में विवाहित महिलाएं एक-दूसरे पर सिंदूर लगाती हैं। यह होली के अवसर पर मनाया जाता है और इसे ‘सिंदूर होली’ भी कहा जाता है।
इस दिन महिलाएं अपने घरों और पड़ोसियों के घर सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती हैं। यह एक खास सामाजिक आयोजन है जो महिलाओं के बीच सामंजस्य और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
सिंदूर विवाह (सिंदूरदान) - भारत के कई हिस्से
विवाह समारोह में दुल्हन के माथे पर सिंदूर भरना सबसे महत्वपूर्ण संस्कार होता है। इसे ‘सिंदूरदान’ कहते हैं। इसे पति की दीर्घायु, परिवार की खुशहाली और विवाहित जीवन की शुरुआत के रूप में देखा जाता है। कुछ समुदायों में दुल्हन अपने सास और सासू मां से भी सिंदूर लेकर पहनती है।
सिंदूर राखी (सिंदूर राखी) - मध्य भारत
मध्य भारत के कुछ हिस्सों में सिंदूर को राखी के रूप में भी बांधा जाता है। बहनें भाई को सिंदूर की राखी बांधती हैं, जो भाई की रक्षा और शुभता का प्रतीक होती है। यह राखी पारंपरिक राखी से अलग होती है और इसमें सिंदूर की खुशबू भी होती है।
सिंदूर पर पूजा और त्योहार
सिंदूर का उपयोग कई धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। जैसे कि करवा चौथ, तीज, और हल्दी-मेहंदी के दौरान महिलाएं सिंदूर लगाती हैं। सिंदूर को देवी-देवताओं के चित्रों और मूर्तियों पर भी लगाया जाता है, जिससे इसे पवित्र माना जाता है।
सिंदूर में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक प्रतीक
सिंदूर लगाना महिलाओं में आत्मविश्वास और सम्मान का भाव जगाता है। कई कहानियों में इसे स्त्री के सम्मान और सामाजिक दायित्व का प्रतीक बताया गया है। इसके बिना विवाहिता महिला की पहचान अधूरी मानी जाती है।
भारत में सिंदूर (सिंदूर) का आर्थिक महत्व काफी गहरा है, क्योंकि यह एक पारंपरिक सामग्री के साथ-साथ एक लाभदायक व्यवसाय भी है। यह मुख्य रूप से हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं द्वारा मांग में लगाया जाता है और धार्मिक अनुष्ठानों में भी इसका उपयोग होता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सिंदूर
सिंदूर पारंपरिक रूप से लाल रंग के लौह ऑक्साइड (Fe2O3) से बनाया जाता है, जिसे हीमेटाइट (Hematite) भी कहते हैं। यह लौह अयस्क प्राकृतिक रूप से मिलता है और इसका लाल रंग मन को आकर्षित करता है।
- रासायनिक संरचना: सिंदूर में मुख्यतः लौह ऑक्साइड होता है, जो त्वचा पर लगाने पर खून के संचार को बेहतर बनाता है।
- स्वास्थ्य लाभ: कुछ शोध बताते हैं कि सिंदूर में मौजूद लौह की गर्माहट रक्त संचार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है, जिससे सिरदर्द और तनाव कम होता है।
- धार्मिक वैज्ञानिकता: आयुर्वेद और प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में भी लाल रंग की गर्माहट और ऊर्जा को शुभ माना गया है। इसलिए सिंदूर लगाना नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने वाला माना जाता है।
- प्राकृतिक रंग: पारंपरिक सिंदूर प्राकृतिक खनिजों से बनता था, परंतु आजकल बाजार में रासायनिक सिंदूर भी उपलब्ध हैं, जिनमें हानिकारक पदार्थ हो सकते हैं।
सिंदूर को खाने पर क्या होता है
सिंदूर को खाने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। क्योंकि यह रसायनों और रंगों से बना होता है, जो शरीर के लिए सुरक्षित नहीं होते।
सिंदूर में मुख्यतः मर्करी, सीसा, और अन्य विषैले पदार्थ होते हैं, जो निगलने पर जहरीले हो सकते हैं।
सिंदूर खाने पर संभावित प्रभाव:
- पेट दर्द और उल्टी — जहरीले तत्व पेट में जलन और गैस्ट्रिक समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
- जहर लगना (टॉक्सिसिटी) — मर्करी और सीसा जैसे भारी धातु शरीर में जमा हो सकते हैं, जिससे जहर फैलता है।
- नसों और मस्तिष्क पर असर — मर्करी शरीर में पहुंचकर न्यूरोलॉजिकल (तंत्रिका तंत्र) समस्याएं पैदा कर सकता है।
- किडनी और लिवर की चोट — विषैले पदार्थ इन अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- एलर्जी या त्वचा समस्याएं — कुछ लोगों को सिंदूर के रसायनों से एलर्जी भी हो सकती है।
- सिंदूर को निगलना बिल्कुल सुरक्षित नहीं है और यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अगर कोई गलती से सिंदूर खा ले तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
सिंदूर का आर्थिक महत्व
धार्मिक और सांस्कृतिक मांग
- सिंदूर को शुभ माना जाता है और यह विवाहित महिलाओं की पहचान का प्रतीक है।
- त्योहारों (जैसे दिवाली, नवरात्रि) और विवाह के मौसम में इसकी मांग बढ़ जाती है।
रोजगार सृजन
- सिंदूर के उत्पादन, पैकेजिंग और वितरण से हजारों लोगों को रोजगार मिलता है।
- छोटे दुकानदारों से लेकर बड़े वितरकों तक इसकी आपूर्ति श्रृंखला व्यापक है।
कॉस्मेटिक और केमिकल इंडस्ट्री में उपयोग
- सिंदूर का उपयोग कॉस्मेटिक उत्पादों (बिंदी, क्रीम) और पेंट उद्योग में भी होता है।
निर्यात क्षमता
- भारत से नेपाल, बांग्लादेश, मॉरीशस और अन्य देशों में सिंदूर का निर्यात होता है, जहां हिंदू समुदाय की आबादी है।
सिंदूर का कारोबार और बाजार आंकड़े
इंडियन मार्केट रिसर्च ब्यूरो (IMARC) की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पारंपरिक कॉस्मेटिक उत्पादों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें सिंदूर भी शामिल है। MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय) के आंकड़ों के मुताबिक, छोटे स्तर पर सिंदूर निर्माण करने वाली इकाइयां लाखों रुपए का कारोबार करती हैं। भारत में सिंदूर बाजार का सालाना कारोबार 500-700 करोड़ रुपए तक आंका जाता है।
प्रमुख ब्रांड्स
- हिंदुस्तान यूनिलीवर (कुमकुम ब्रांड)
- श्री बालाजी प्रोडक्ट्स
- शक्ति सिंदूर
- शिवालिक सिंदूर
- अधिकृत रिपोर्ट
भारत में सिंदूर उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र
कई छोटे-छोटे पारंपरिक उद्योग सिंदूर बनाने में लगे हैं, जो स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देते हैं।
- सामाजिक आर्थिक प्रभाव: शादी और धार्मिक कार्यक्रमों में सिंदूर खरीदना एक महत्वपूर्ण खर्च होता है, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है।
- आयात-निर्यात: भारत में सिंदूर की कई ब्रांडेड कंपनियां हैं, जो घरेलू बाजार के साथ-साथ विदेशों में भी इसे बेचती हैं, विशेषकर दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, और दक्षिण अफ्रीका में।
- पश्चिम बंगाल : हुगली और कोलकाता में सिंदूर निर्माण की बड़ी इकाइयां हैं।
- उत्तर प्रदेश : कानपुर, वाराणसी और लखनऊ में छोटे पैमाने पर उत्पादन होता है।
- गुजरात : अहमदाबाद और सूरत में रासायनिक सिंदूर का उत्पादन।
- राजस्थान : जयपुर और उदयपुर में प्राकृतिक सिंदूर (लाल मिट्टी आधारित) बनाया जाता है।
- तमिलनाडु : मदुरै और चेन्नई में भी सिंदूर निर्माण की इकाइयां हैं।
संदर्भ (References)
1. IMARC Group Report (2021) : "Traditional Cosmetics Market in India"
2. MSME Ministry Data (2020) : Small-scale sindoor manufacturing units.
3. Trade Analysts : अनुमानित बाजार मूल्य ₹500-700 करोड़ (अनौपचारिक स्रोत)।
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