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2025 में जी-7 (Group of Seven) का वार्षिक शिखर सम्मेलन कनाडा में 15 से 17 जून के बीच होने जा रहा है। लेकिन इस बार एक खास बात है - भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस सम्मेलन के लिए आधिकारिक रूप से निमंत्रण नहीं मिला है।
यह पहली बार होगा जब पिछले 6 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी जी-7 समिट में शामिल नहीं होंगे। इस खबर ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि वैश्विक कूटनीति और भारत की वैश्विक भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि जी-7 क्या है? इस सम्मेलन का महत्व क्या है और पीएम मोदी को न्योता न मिलने के पीछे क्या वजहें हैं? क्या इस फैसले का भारत और वैश्विक राजनीति पर भी असर हो सकता है, चलिए समझते हैं…
51वां जी7 शिखर सम्मेलन
51वां G-7 शिखर सम्मेलन 15 से 17 जून 2025 तक कनाडा के कनाणास्किस में आयोजित किया जाएगा। कनाणास्किस ने पहले 28वें जी8 शिखर सम्मेलन की मेजबानी की थी। इस सम्मेलन की अध्यक्षता कनाडा करेगा। इस बार का एजेंडा है- सभी को लाभ पहुंचाने वाली अर्थव्यवस्थाओं का निर्माण करना, जलवायु परिवर्तन से लड़ना और तेजी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकियों का प्रबंधन करना।
जी-7 (Group of Seven) क्या है?
जी-7 या ग्रुप ऑफ सेवन एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसमें दुनिया की सात सबसे बड़ी विकसित अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। ये देश हैं:
- कनाडा
- फ्रांस
- जर्मनी
- इटली
- जापान
- यूनाइटेड किंगडम (ब्रिटेन)
- संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए)
आखिर क्यों बनाया गया था जी-7
जी-7 की स्थापना 1975 में हुई थी। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने आर्थिक नीतियों पर आपसी तालमेल बिठाने के लिए इस संगठन का गठन किया। इसका मकसद था आर्थिक स्थिरता बनाए रखना, वैश्विक वित्तीय संकटों से निपटना, और सामूहिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
समय के साथ जी-7 का दायरा बढ़ा और यह संगठन आर्थिक मुद्दों से आगे बढ़कर राजनीतिक, पर्यावरणीय, सुरक्षा और वैश्विक स्वास्थ्य जैसे अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर भी निर्णय लेने लगा।
बेहद प्रभावशाली है जी-7
जी-7 देशों के पास विश्व की लगभग 62% वैश्विक जीडीपी होती है, और ये देश वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अक्सर जी-7 शिखर सम्मेलनों में अन्य प्रभावशाली देशों को विशेष निमंत्रण दिया जाता है, जैसे भारत, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील आदि। इन देशों को आमंत्रित करना जी-7 की वैश्विक सहमति और गठजोड़ को मजबूत करता है।
… तो इस बार Modi को जी-7 का न्योता क्यों नहीं मिला?
प्रधानमंत्री मोदी को इस बार कनाडा द्वारा जी-7 सम्मेलन के लिए निमंत्रण न भेजे जाने की खबर एक बड़ा राजनीतिक संदेश है। आम तौर पर भारत को पिछले कई वर्षों से इस सम्मेलन में विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया जाता रहा है, जो भारत की वैश्विक आर्थिक ताकत और भू-राजनीतिक महत्व को दर्शाता है।
लेकिन 2025 के सम्मेलन में भारत को आमंत्रित न करना कनाडा और भारत के बीच बढ़ते तनाव का नतीजा माना जा रहा है। आइए इस फैसले के पीछे की प्रमुख वजहों पर नजर डालते हैं:
1. भारत-कनाडा के रिश्तों में खटास
2018 से लेकर 2023 तक भारत और कनाडा के बीच रिश्ते काफी अच्छे थे, लेकिन 2023 में स्थिति बिगड़ी। यह तनाव मुख्य रूप से कनाडा में सक्रिय खालिस्तानी अलगाववादियों और 2023 में हुई खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर उत्पन्न हुआ।
कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर हत्या में कथित संलिप्तता का आरोप लगाया था। हालांकि इस आरोप के कोई ठोस सबूत नहीं मिले। भारत ने इन आरोपों को पूरी तरह से खारिज किया और इसे बेबुनियाद बताया।
लेकिन, इन आरोपों ने दोनों देशों के राजनयिक संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया। भारत ने कनाडा से अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और अब तक नए उच्चायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है।
2. कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादियों की मौजूदगी
कनाडा में खालिस्तानी समूहों का प्रभाव काफी बड़ा है। ये समूह अक्सर भारत विरोधी गतिविधियों में लगे रहते हैं। भारत की सुरक्षा एजेंसियां इन समूहों को आतंकवादी गतिविधियों से जोड़ती हैं।
कनाडा सरकार पर इन समूहों को लेकर नाकाफी कार्रवाई करने का दबाव भारत की ओर से लगातार रहता है, लेकिन कनाडा की नई सरकार भी इस मामले में भारत की चिंताओं को गंभीरता से नहीं ले रही है।
3. राजनीतिक और कूटनीतिक दबाव
कनाडा की नई सरकार प्रधानमंत्री मार्क कार्नी के नेतृत्व में, भारत के साथ रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रही है, लेकिन घरेलू राजनीतिक दबावों और सुरक्षा चिंताओं के कारण भारत को जी-7 में आमंत्रित न करना एक राजनीतिक संदेश भी हो सकता है। यह कदम भारत के प्रति कनाडा के रुख को भी दर्शाता है।
4. भारत की प्रतिक्रिया
भारत की तरफ से अभी इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह साफ है कि जब तक दोनों देशों के बीच राजनयिक और सुरक्षा संबंधों में सुधार नहीं होता, तब तक प्रधानमंत्री मोदी का कनाडा जाना संभव नहीं है।
भारत ने जी-7 की स्थायी सदस्यता नहीं होने के बावजूद अपनी जगह जी-20, ब्रिक्स (BRICS) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) जैसे वैश्विक मंचों में मजबूत कर रखी है। भारत इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग कर वैश्विक कूटनीति में अपनी भूमिका बढ़ा रहा है।
लगातार बुलाया जाता रहा है हमें
भारत जी-7 का स्थायी सदस्य नहीं है, लेकिन पिछले वर्षों में उसे इस समूह ने विशेष अतिथि के रूप में सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता रहा है। यह आमंत्रण भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत, आर्थिक विकास और रणनीतिक महत्त्व का प्रतीक माना जाता है।
मोदी सरकार ने जी-7 के साथ-साथ जी-20, ब्रिक्स जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका को विस्तार दिया है। 2023 में भारत ने जी-20 की मेजबानी की थी।
तो अब भारत के पास क्या विकल्प हैं?
- वैश्विक मंचों पर सक्रिय भूमिका: भारत जी-20, ब्रिक्स, SCO जैसे मंचों में अपनी नेतृत्व क्षमता और कूटनीतिक प्रभाव को और बढ़ा सकता है। इससे वह पश्चिमी देशों के अलावा अन्य उभरते बाजारों में अपनी स्थिति मजबूत करेगा।
- द्विपक्षीय रिश्तों का विस्तार: भारत जी-7 के अन्य सदस्यों जैसे अमेरिका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली के साथ द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत कर सकता है। ये देश भारत को एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार मानते हैं।
- आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया: भारत अपनी आर्थिक नीतियों के जरिए वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है और जी-7 देशों पर निर्भरता कम कर सकता है।
- कनाडा के साथ कूटनीतिक दबाव: भारत कनाडा को खालिस्तानी आतंकवाद के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेर सकता है और भारत की सुरक्षा चिंताओं को वैश्विक रूप से उजागर कर सकता है।
मोदी को जी-7 का न्योता न मिलना क्यों जरूरी है?
प्रधानमंत्री मोदी को जी-7 सम्मेलन में आमंत्रित न करना केवल एक कूटनीतिक घटना नहीं है, बल्कि यह भारत-कनाडा के बढ़ते तनाव और वैश्विक राजनीति के नए समीकरणों का प्रतीक है।
यह इस बात का संकेत है कि भारत और कनाडा के बीच रिश्ते फिलहाल सामान्य स्तर पर नहीं लौट पाए हैं। यह भारत के लिए एक चुनौती भी है और अवसर भी। चुनौती इस बात की है कि एक महत्वपूर्ण वैश्विक मंच से बाहर रहना भारत की छवि को प्रभावित कर सकता है।
वहीं अवसर यह है कि भारत अपनी अन्य वैश्विक कूटनीतिक रणनीतियों के जरिए अपना प्रभाव और बढ़ा सकता है। जी-7 एक ऐसा मंच है जहां वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक निर्णय होते हैं, लेकिन दुनिया में अनेक अन्य भी शक्तिशाली मंच हैं जहां भारत अपनी भूमिका मजबूत कर रहा है।
इसलिए मोदी को जी-7 का न्योता न मिलना कोई बड़ी हार नहीं, बल्कि कूटनीतिक जटिलताओं का एक हिस्सा है, जो भारत की वैश्विक कूटनीति को नए आयाम देगा।
जी-7 के बारे में रोचक तथ्य
शुरुआत और सदस्य देश:
जी-7 की स्थापना 1975 में छह देशों (फ्रांस, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, पश्चिम जर्मनी) के समूह के रूप में हुई थी। 1976 में कनाडा के शामिल होने से यह 'ग्रुप ऑफ सेवन' बना।
रूस का आना-जाना:
1997 में रूस को शामिल कर इसे 'जी-8' कहा गया, लेकिन 2014 में क्रीमिया विवाद के कारण रूस को समूह से बाहर कर दिया गया और यह फिर से जी-7 रह गया।
चीन सदस्य क्यों नहीं:
चीन की अर्थव्यवस्था बड़ी है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय कम होने और उसे विकसित देश न माना जाने के कारण वह जी-7 का हिस्सा नहीं है।
कोई स्थायी मुख्यालय नहीं:
जी-7 का कोई स्थायी मुख्यालय या सचिवालय नहीं है। अध्यक्षता हर साल एक सदस्य देश के पास होती है और वही शिखर सम्मेलन की मेजबानी करता है।
दुनिया की संपत्ति का बड़ा हिस्सा:
जी-7 देश दुनिया की कुल शुद्ध संपत्ति का 62% से ज्यादा हिस्सा नियंत्रित करते हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनका बड़ा दबदबा है।
मूल्य आधारित समूह:
जी-7 खुद को "कम्युनिटी ऑफ वैल्यूज" मानता है, जो लोकतंत्र, मानवाधिकार, कानून के शासन और सतत विकास जैसे मूल्यों का संरक्षक है।
एजेंडा में विविधता:
शुरू में आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित, अब जी-7 जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा नीति, वैश्विक सुरक्षा, स्वास्थ्य, और तकनीक जैसे विषयों पर भी चर्चा करता है।
अनौपचारिक और लचीला:
यह संयुक्त राष्ट्र या नाटो जैसी औपचारिक संस्था नहीं है, बल्कि एक अनौपचारिक मंच है जहाँ सदस्य देश खुलकर विचार-विमर्श करते हैं।
अतिथि देशों को बुलाया जाता है:
कई बार भारत सहित अन्य देशों को भी विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर जी-7 शिखर सम्मेलन में बुलाया जाता है।
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