/sootr/media/media_files/2025/09/26/rss-centenary-2025-2025-09-26-11-46-55.jpeg)
भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास में 1925 का वर्ष विशेष महत्व रखता है। इसी वर्ष डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की थी। तारीख थी 27 नवंबर और दिन दशहरे का… उद्देश्य स्पष्ट था- एक संगठित, अनुशासित और आत्मनिर्भर समाज का निर्माण।
2025 में संघ ने अपने 100 वर्ष (RSS Centenary 2025) पूरे कर लिए हैं, और यह केवल संगठन की उपलब्धि नहीं, बल्कि भारतीय समाज की विकास यात्रा में उसकी भूमिका का प्रमाण है। Thesootr prime में हम संघ यानी RSS की शताब्दी यात्रा को ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समझेंगे और देखेंगे कि इसने भारत को किस तरह परिवर्तन और प्रगति की राह दिखाई।
27 सितंबर 1925 : एक विचार का जन्म
स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि भारतीय समाज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक पुनर्जागरण से भी सशक्त हो सकता है। उन्होंने 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। संघ का उद्देश्य था- राष्ट्र को एक सशक्त, संगठित और आत्मनिर्भर समाज बनाना।
संघ की पहचान उसकी शाखा व्यवस्था से बनी। छोटी-छोटी शाखाओं के जरिए अनुशासन, शारीरिक प्रशिक्षण और राष्ट्रभक्ति की भावना को बढ़ावा दिया गया। तो आइए, आरएसएस का इतिहास एक नजर में समझते हैं।
संघ की विकास यात्रा : एक शाखा से विश्वव्यापी संगठन तक
प्रारंभिक विस्तार (1925–1947)
इस काल में आरएसएस ने मुख्य रूप से शाखाओं के जरिए युवाओं को संगठित करने का कार्य किया। स्वतंत्रता आंदोलन में उसके स्वयंसेवकों ने अप्रत्यक्ष रूप से समाज-सेवा के माध्यम से सहयोग किया।
स्वतंत्रता के बाद का दौर (1947–1975)
विभाजन की त्रासदी और शरणार्थियों की सहायता में संघ की सक्रियता ने उसकी समाज-सेवी भूमिका को और मजबूत किया। हालांकि इस दौरान राजनीतिक परिदृश्य में संघ को आलोचनाओं और प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा।
जन आंदोलन और आपातकाल (1975-77)
आपातकाल के विरोध में संघ ने बड़ी भूमिका निभाई। हजारों स्वयंसेवकों को जेल जाना पड़ा। इससे संघ की छवि लोकतांत्रिक मूल्यों के रक्षक संगठन के रूप में बनी।
समाज सेवा व राष्ट्र निर्माण (1980–2000)
शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास में संघ से प्रेरित संस्थाओं का विस्तार हुआ। सेवा भारती, विद्या भारती और वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठनों ने दूर-दराज क्षेत्रों तक पहुंच बनाई।
RSS का वैश्विक विस्तार (2000–2025)
पिछले दो दशकों में संघ का विस्तार केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। प्रवासी भारतीय समाज में भी हिंदू स्वयंसेवक संघ जैसी संस्थाओं ने भारतीय संस्कृति को जीवंत करने का कार्य किया। शताब्दी वर्ष तक संघ 50 हजार से अधिक शाखाओं और सैकड़ों सहयोगी संगठनों के जरिए समाज में सक्रिय है।
RSS की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि | |
ब्रिटिश शासन का दौर (1857 के बाद)
27 सितंबर 2025 : संघ की स्थापनासंस्थापक: डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (नागपुर के एक स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के पूर्व कार्यकर्ता) तारीख: 27 सितंबर 1925 (विजयदशमी का दिन) स्थान: नागपुर, महाराष्ट्र प्रारंभिक उद्देश्य:
विशेषताएं
नतीजा
|
राष्ट्रनिर्माण में आरएसएस का योगदान
शिक्षा और संस्कार
विद्या भारती के 12 हजार से अधिक विद्यालयों में 30 लाख से अधिक छात्र पढ़ते हैं।
यहां शिक्षा केवल अकादमिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रभक्ति भी शामिल हैं।
सामाजिक सेवा और आपदा प्रबंधन
सेवा भारती गरीबों, दलितों, वनवासियों और जरूरतमंदों की सेवा में लगातार सक्रिय है।
2001 के गुजरात भूकंप से लेकर 2020 की कोविड महामारी तक, स्वयंसेवकों ने राहत कार्यों में उल्लेखनीय योगदान दिया।
ग्रामीण और आदिवासी विकास
वनवासी कल्याण आश्रम ने आदिवासी समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य की दिशा में हजारों प्रकल्प चलाए।
स्वदेशी और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण
योग, संस्कृत और भारतीय त्योहारों का समाज में पुनर्जीवन।
लोक कला और परंपराओं के संरक्षण द्वारा भारतीय सांस्कृतिक धारा को सबल करना।
भारतीय राजनीति पर प्रभाव
हालांकि आरएसएस का दावा है कि वह सीधे राजनीति में सक्रिय नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव भारतीय राजनीति पर गहराई से दिखता है।
भारतीय जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी जैसे दल इसकी विचारधारा से जुड़े हैं।
स्वतंत्रता से लेकर आज तक कई राष्ट्रीय नेता संघ की शाखाओं में प्रशिक्षित हुए।
वर्तमान राजनीतिक धारा में राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पुनर्जागरण जैसे मुद्दे केंद्र में आना संघ की दीर्घकालिक वैचारिक यात्रा का परिणाम हैं।
समाज पर समकालीन प्रभाव
- सामाजिक एकता: जातिगत भेदभाव कम करने और समरस समाज बनाने पर जोर।
- युवा चेतना: करियर की दौड़ में भागते युवाओं को अनुशासन और सेवा का मार्ग।
- महिला सशक्तिकरण: राष्ट्र सेविका समिति जैसी शाखाएं महिलाओं को नेतृत्व का अवसर देती हैं।
- प्रवासी भारतीयों पर प्रभाव: विदेशों में भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार का माध्यम।
संघ की चुनौतियां और आलोचनाएं
संघ को समय-समय पर आलोचनाओं और राजनीतिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। आलोचकों का कहना है कि यह संगठन केवल "हिंदू विचारधारा" तक सीमित है। मगर संघ ने अपने सेवा प्रकल्पों के जरिए यह सिद्ध किया कि उसका असली उद्देश्य राष्ट्र निर्माण है।
शताब्दी वर्ष का महत्व
- 2025 एक प्रतीकात्मक वर्ष है।
- डिजिटल युग में संघ ने सोशल मीडिया और तकनीक को अपनाते हुए युवाओं तक अपनी पहुंच बनाई।
- पर्यावरण संरक्षण और जैविक खेती पर ध्यान केंद्रित कर आधुनिक चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत किया।
- Digital India और Atmanirbhar Bharat जैसे अभियानों में स्वयंसेवकों ने सक्रियता दिखाई।
RSS एक नजर में | |
क्षेत्र | योगदान (2025 तक) |
शाखाओं की संख्या | 73 हजार + |
सहयोगी संगठन | 300+ |
विद्या भारती स्कूल | 12 हजार + |
छात्र लाभार्थी | 30 लाख+ |
सेवा प्रकल्प | एक लाख 50 हजार + |
वैश्विक उपस्थिति | 40+ देश |
निष्कर्ष
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सौ वर्षीय यात्रा केवल एक संगठन की गाथा नहीं, बल्कि उस विचार की सफलता है जिसने भारतीय समाज को नई दिशा दी। डॉ. हेडगेवार ने जो बीज 1925 में बोया था, वह आज करोड़ों स्वयंसेवकों के विशाल वटवृक्ष में बदल चुका है।
संघ की पहचान अनुशासन, सेवा, सांस्कृतिक जागरण और राष्ट्रभक्ति से है। आने वाले समय में भी इसकी यह यात्रा भारत को और सशक्त, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाएगी।
संघ से जुड़े सामान्य प्रश्न (SEO-Friendly FAQ)
स्रोत (References)
- सुनील आंबेकर, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, आरएसएस
- विद्या भारती आधिकारिक वेबसाइट
- सेवा भारती वार्षिक रिपोर्ट
- संघ साहित्य: बंच ऑफ थॉट्स – एम.एस. गोलवलकर