आज का इतिहास: सिंगापुर से गूंजा भारत का बिगुल, जब साकार हुआ नेताजी का आजाद भारत का सपना

आज का इतिहास 21 अक्टूबर 1943 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में ‘आज़ाद हिंद सरकार’ की स्थापना की। यह भारत की आज़ादी की लड़ाई का ऐतिहासिक मोड़ था, जब विदेशी धरती पर पहली बार स्वतंत्र भारतीय शासन की घोषणा हुई।

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Manya Jain
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इतिहास की तारीखें बहुत होती हैं,पर कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जो सिर्फ कैलेंडर में नहीं दिलों में दर्ज हो जाती हैं। 21 अक्टूबर 1943 -ये वही दिन था जब भारत की आज़ादी की लड़ाई ने एक नया मोड़ लिया। ये वो लम्हा था जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने, भारत की धरती से हज़ारों किलोमीटर दूर, सिंगापुर में ‘आज़ाद हिंद सरकार’ की घोषणा की थी।

ये पहली बार था जब किसी भारतीय नेता ने विदेशी ज़मीन पर एक स्वतंत्र भारतीय सरकार का झंडा बुलंद किया और अंग्रेज़ों को सीधे युद्ध के मैदान में चुनौती दी।

इस दिन का महत्व सिर्फ एक राजनीतिक ऐलान तक सीमित नहीं था — ये वो दिन था जब भारतवासियों ने दुनिया को बता दिया कि हम सिर्फ मांगने वाले नहीं, अपनी आज़ादी छीनने वाले भी हो सकते हैं।

🪖 कैसी थी ये आजाद हिंद फौज?

आज़ाद हिंद फौज में ऐसे भारतीय शामिल थे जो पहले ब्रिटिश सेना में थे लेकिन जापान के साथ युद्ध में बंदी बन चुके थे। इसके अलावा, सिंगापुर, मलाया, बर्मा जैसे इलाकों में बसे भारतीय भी इस फौज में भर्ती हुए थे।

netaji ki azad hind fauj

एक खास बात ये थी कि इस फौज में महिलाओं की एक खास यूनिट भी थी — "रानी झाँसी रेजिमेंट", जिसकी कमान थी कैप्टन लक्ष्मी सहगल के हाथों में। ये भारत की पहली महिला सैन्य यूनिट मानी जाती है।

🔥 दिल्ली चलो-पर रुक गई राह

1944 में आज़ाद हिंद फौज ने बर्मा (अब म्यांमार) से होते हुए भारत में प्रवेश करने की कोशिश की। कई जगहों पर अंग्रेजों से मुकाबले हुए — कोहिमा और इम्फाल जैसी जगहें युद्ध के मैदान बनीं।

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लेकिन मौसम की मार, खाने-पीने की कमी और जापान की हार के चलते ये अभियान आगे नहीं बढ़ सका। धीरे-धीरे आज़ाद हिंद फौज के सैनिकों को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

हार के बाद भी जीत का असर

हालाँकि आज़ाद हिंद फौज युद्ध नहीं जीत सकी, लेकिन उसका मनोवैज्ञानिक असर बहुत गहरा हुआ। जब युद्ध के बाद अंग्रेजों ने INA के अधिकारियों पर मुकदमा चलाया, तो भारत के कोने-कोने में विद्रोह की लहर दौड़ गई। यहां तक कि ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिक भी बगावत के मूड में आ गए।

Subhas Chandra Bose proclaims the Provisional Government of Free India on 21 October 1943 Singapore

इतिहासकार मानते हैं कि INA Trials (1945-46) के बाद ब्रिटिश हुकूमत को ये समझ आ गया कि अब भारत पर राज करना नामुमकिन है। यही वजह रही कि दो साल बाद, 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ।

नेताजी की गूंज आज भी ज़िंदा है

नेताजी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका नारा — "जय हिंद!", और उनका जोश आज भी हर भारतीय के दिल में ज़िंदा है। आज़ाद हिंद फौज ने दिखा दिया कि भारतवासी न सिर्फ लड़ सकते हैं, बल्कि मर-मिट भी सकते हैं — सिर्फ़ स्वतंत्रता के लिए।

Subhas Chandra Bose Free India on 21 October 1943 Singapore

गुमनामी बाबा" रहस्य आज भी ज़िंदा है

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कहानी सिर्फ आज़ाद हिंद फौज तक ही सीमित नहीं है। उनकी मौत को लेकर जितने सवाल हैं, उतने ही किस्से और रहस्य भी।

Subhas Chandra Bose

आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 (आज की यादगार घटनाएं) को ताइहोकू (अब ताइपेई, ताइवान) में एक प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई थी। लेकिन ये दावा न तो पूरी तरह साबित हुआ, न ही कभी उनकी अस्थियाँ भारत लाई गईं। नतीजा ये हुआ कि पूरे देश में ये विश्वास फैल गया कि नेताजी ज़िंदा हैं — और उन्होंने नई पहचान बना ली है।

🧘‍♂️ "गुमनामी बाबा" – फैज़ाबाद (अब अयोध्या) में छिपा हुआ सच?

1960 के दशक से लेकर 1985 तक उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद में एक रहस्यमयी संत रहते थे, जिन्हें लोग “गुमनामी बाबा” कहते थे।

वो हमेशा परदे के पीछे रहते थे।

किसी से सीधा सामना नहीं करते थे।

उनका सामान नेताजी से मिलता-जुलता था — टाइपराइटर, अंग्रेजी किताबें, INA के दस्तावेज़, नेताजी की तस्वीरें, और यहां तक कि चश्मा भी हूबहू वही जैसा नेताजी पहनते थे।

इतना ही नहीं, गुमनामी बाबा के आवाज़ और हैंडराइटिंग को नेताजी से मैच करने की कोशिशें भी हुईं। कई लोगों का मानना था कि वो नेताजी ही थे, जो प्लेन क्रैश के बाद जिंदा रहे लेकिन राजनीतिक कारणों से सामने नहीं आए।

🔬 क्या जांच हुई?

सरकार ने इस रहस्य की जांच के लिए मुखर्जी आयोग बैठाया था। आयोग ने माना कि प्लेन क्रैश की कहानी पूरी तरह भरोसेमंद नहीं है, लेकिन यह साबित करने के लिए भी पक्के सबूत नहीं मिले कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे।

Azad Hind fauj

फिर भी बहुत से लोगों, खासकर नेताजी के समर्थकों का मानना है कि नेताजी ने जानबूझकर खुद को "गुमनाम" रखा, ताकि वो राजनीति से दूर रह सकें।

रहस्य अब भी बाकी है

नेताजी की बहादुरी जितनी बड़ी थी, उनकी मौत या “गुमनाम ज़िंदगी” उससे भी ज़्यादा रहस्यमयी है। चाहे वो प्लेन क्रैश हो या गुमनामी बाबा का जीवन, भारत के इस महान योद्धा की कहानी आज भी पूरी नहीं मानी जाती।

इतिहास के पन्नों में नेताजी अमर हैं -और शायद किसी कोने में उनका सच अब भी छिपा हुआ है।

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विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं

  • 1805: ट्राफलगर के युद्ध में ब्रिटेन ने फ्रांस और स्पेन की संयुक्त नौसेना को हराया।

  • 1797: अमेरिकी युद्धपोत USS Constitution का लॉन्च हुआ।

  • 1879:थॉमस एडिसन ने इलेक्ट्रिक बल्ब का सफल परीक्षण किया।

  • 1966:एबर्फन आपदा में कोयले का मलबा गिरने से 144 लोगों की मौत हुई।

  • 1959: लद्दाख में शहीद हुए पुलिसकर्मियों की याद में पुलिस स्मरण दिवस मनाया जाता है।

  • 1945:फ्रांस में महिलाओं ने पहली बार मतदान किया।

  • 1950:चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया।

  • 1941:क्रागुयेवाक नरसंहार में जर्मन सैनिकों ने हजारों नागरिकों की हत्या की।

  • 1951:भारतीय जनसंघ की स्थापना डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने की।

  • 2001:‘United We Stand’ कॉन्सर्ट अमेरिका में 9/11 के बाद एकता के संदेश हेतु आयोजित हुआ।

भारत के नजरिए से 21 अक्टूबर क्यों यादगार है?

  • यह दिन पुलिस स्मरण दिवस के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है, जब हम अपने शहीद पुलिसकर्मियों की बहादुरी और बलिदान को याद करते हैं।

  • इसी दिन 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई थी, जिसने भारतीय राजनीति में नई दिशा दी।

  • इसलिए यह दिन राष्ट्रभक्ति, संगठन और बलिदान की भावना का प्रतीक माना जाता है।

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