25 नवंबर का इतिहास: भारत में पीले डब्बे ने मचाया था धमाल,कानपुर से लखनऊ किया गया था पहला STD कॉल

नवंबर 1960 में भारत ने पहली बार कानपुर और लखनऊ के बीच एसटीडी सेवा शुरू की, जिससे बिना ऑपरेटर के लंबी दूरी की कॉल संभव हुई। यह दूरसंचार क्षेत्र में ऐतिहासिक बदलाव साबित हुआ और आगे चलकर मोबाइल, इंटरनेट और आधुनिक संचार प्रणाली की नींव बनी।

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Manya Jain
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नवंबर 1960 का महीना भारत के दूरसंचार इतिहास के लिए मील का पत्थर है। इसी समय पहली बार एसटीडी (Subscriber Trunk Dialling – STD) सेवा की शुरुआत हुई।

 जिसके तहत कानपुर और लखनऊ के बीच लंबी दूरी की टेलीफ़ोन कॉल बिना ऑपरेटर की मदद के सीधे डायल की जा सकी। ज़्यादातर ऐतिहासिक स्रोत बताते हैं कि यह सेवा 25 नवंबर 1960 को शुरू हुई।

इस एक तकनीकी कदम ने भारत में संचार की तस्वीर बदलनी शुरू कर दी – जैसे आज मोबाइल और इंटरनेट के बिना ज़िंदगी की कल्पना मुश्किल है, उसी तरह 1960 के दशक में एसटीडी सेवा ने लोगों के लिए ‘दूर की आवाज़ को पास’ ला दिया।

एसटीडी सेवा क्या है?

STD – Subscriber Trunk Dialling का मतलब है कि किसी दूसरे शहर या दूरस्थ स्थान पर टेलीफ़ोन कॉल करने के लिए आपको हर बार ऑपरेटर से कनेक्शन नहीं लेना पड़े, बल्कि आप खुद पूरा नंबर डायल करके सीधे बात कर सकें।

  • Subscriber (सब्सक्राइबर) – यानी टेलीफ़ोन लाइन का ग्राहक

  • Trunk (ट्रंक) – दो दूर के टेलीफ़ोन एक्सचेंजों के बीच बिछी मुख्य लाइन

  • Dialling (डायलिंग) – नंबर घुमाकर कॉल जोड़ने की प्रक्रिया

एसटीडी शुरू होने से पहले ‘ट्रंक कॉल’ का चलन था – आप ऑपरेटर को कॉल करते, शहर और नंबर बताते, फिर कुछ देर या कभी-कभी घंटों इंतज़ार के बाद आपकी कॉल लगती। एसटीडी ने इस पूरी प्रक्रिया को ऑटोमैटिक बना दिया।

1960: कानपुर–लखनऊ के बीच पहली STD कॉल

भारत में पहली एसटीडी सेवा की शुरुआत कानपुर और Lucknow के बीच हुई। इसे भारत में सबसे पहला एसटीडी रूट माना जाता है। 

  • नवंबर 1960 में भारत में एसटीडी सेवा औपचारिक रूप से शुरू हुई। 

  • इस शुरुआती रूट पर पहली लंबी दूरी की कॉल कानपुर से लखनऊ या लखनऊ से कानपुर के बीच की गई। 

  • कुछ भारतीय दिनविशेष वेबसाइटें विशेष रूप से 25 नवंबर 1960 की तारीख़ दर्ज करती हैं, जब “पहला एसटीडी सिस्टम कानपुर और लखनऊ के बीच शुरू किया गया। 

कानपुर–लखनऊ रूट ही क्यों?

  • लखनऊ उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक राजधानी है,

  • कानपुर उस समय उत्तर भारत का महत्वपूर्ण औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र था।
    इन दोनों शहरों को जोड़कर सरकार ने प्रशासन, व्यापार और उद्योग – तीनों को एक साथ तेज़ संचार सुविधा देने का लक्ष्य रखा।

तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियां

1960 का भारत आज की तरह डिजिटल नहीं था। सीमित संसाधन, आयात पर निर्भर तकनीक और सरकारी ढांचे की धीमी प्रक्रियाएं – इन सबके बीच एसटीडी सेवा शुरू करना आसान नहीं था।

  1. ऑटोमैटिक टेलीफ़ोन एक्सचेंज की ज़रूरत
    एसटीडी के लिए ऐसे एक्सचेंज चाहिए थे जो खुद-ब-खुद दूरस्थ नंबर तक सिग्नल रूट कर सकें। उस समय देश में बहुत से एक्सचेंज अभी मैन्युअल या सीमित क्षमता वाले थे, इसलिए पहले कानपुर और लखनऊ के एक्सचेंजों को तकनीकी रूप से अपग्रेड किया गया।

  2. नंबरिंग प्लान और STD कोड
    हर शहर, ज़िले और महत्वपूर्ण कस्बों को अलग-अलग STD कोड देने की शुरुआत हुई। बाद में यही सिस्टम आगे चलकर पूरे देश में विस्तारित हुआ, जैसे दिल्ली – 011, लखनऊ – 0522 आदि।

  3. कर्मचारियों की ट्रेनिंग
    डाक-तार विभाग (बाद में Department of Telecommunications) के कर्मचारियों को नई तकनीक पर प्रशिक्षित करना पड़ा – फ़ॉल्ट हैंडलिंग, कॉल रूटिंग, एक्सचेंज मेंटेनेंस, सबकुछ बदला।

आम लोगों की ज़िंदगी में क्या बदला?

कानपुर और लखनऊ के बीच पहली एसटीडी कॉल अपने आप में प्रतीकात्मक थी, लेकिन इसके असर बहुत गहरे थे:

  1. व्यापार और उद्योग को गति

    • कानपुर के कपड़ा, चमड़ा और मशीनरी उद्योग को लखनऊ के प्रशासनिक और वित्तीय दफ़्तरों से तुरंत संपर्क मिलना शुरू हुआ।

    • ऑर्डर, भुगतान, परमिट, परिवहन जैसे फ़ैसले तेजी से होने लगे।

  2. प्रशासनिक कामकाज आसान

    • लखनऊ में बैठा सचिवालय, विभागीय अधिकारी और प्रशासनिक इकाइयां सीधे कानपुर के कलक्टर, उद्योगपतियों और संस्थानों से बात कर सकती थीं।

    • इससे फ़ाइलों और चिट्ठियों पर निर्भरता कुछ हद तक कम हुई।

  3. घर–परिवार के रिश्तों में नज़दीकी

    • जिन परिवारों के सदस्य इन दोनों शहरों में रहते थे, उनके लिए आवाज़ सुन पाना पहले से कहीं आसान हो गया।

    • बाद के वर्षों में जब अन्य शहर भी एसटीडी नेटवर्क से जुड़े, तो प्रवासी मज़दूरों, छात्रों और नौकरीपेशा लोगों के लिए यह सुविधा भावनात्मक सहारा बन गई।

  4. STD बूथ और PCO संस्कृति की शुरुआत
    आगे चलकर 1980–90 के दशक में STD-ISD-PCO बूथ हर गली-कूचे में दिखने लगे – पीले रंग के केबिन, बाहर लगे बड़े-बड़े बोर्ड और अंदर घंटों लगी लाइनें। यह संस्कृति उसी ऐतिहासिक शुरुआत की अगली कड़ी थी जो 1960 के नवंबर में कानपुर–लखनऊ रूट से शुरू हुई थी। 

STD से मोबाइल और इंटरनेट तक

कानपुर–लखनऊ एसटीडी रूट सिर्फ शुरुआत था। अगले दशकों में:

  • 1970–80 के दशक में देश के अधिकांश ज़िला मुख्यालयों तक एसटीडी सेवा पहुंच गई।

  • 1976 में मुंबई से लंदन के बीच International Subscriber Dialling (ISD) शुरू हुई, यानी अंतरराष्ट्रीय कॉल भी बिना ऑपरेटर के लगने लगी।

  • 1980–90 के दशक में सी-डॉट (C-DOT) जैसी संस्थाओं ने भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से स्वदेशी डिजिटल एक्सचेंज बनाए, जिससे एसटीडी नेटवर्क और तेज़ व सस्ता हुआ।

  • 1990 के दशक के मध्य से मोबाइल टेलीफ़ोनी और फिर 2000 के दशक में इंटरनेट व स्मार्टफ़ोन आ गए, जिसके बाद एसटीडी बूथ धीरे-धीरे इतिहास बनते चले गए। 

आज अधिकांश लोग STD शब्द भी शायद ही इस्तेमाल करते हों, लेकिन हर मोबाइल नंबर में जो “0 + STD कोड” की अवधारणा रही, उसकी जड़ें उसी सिस्टम में मिलती हैं जिसकी शुरुआत कानपुर और लखनऊ के बीच हुई थी।

25 नवंबर की तारीख़ से जुड़ी 10 प्रमुख घटनाओं  

  1. 1758 – ब्रिटिश सेनाओं ने फ्रांस के फ़ोर्ट ड्युकेन (Fort Duquesne) पर कब्ज़ा किया।  

  2. 1783 – अमेरिकी स्वतंत्रता युद्ध के बाद, Evacuation Day के रूप में न्यू यॉर्क शहर से अंतिम ब्रिटिश सैनिक चले गए।  

  3. 1866 – भारत में Allahabad High Court का उद्घाटन हुआ।  

  4. 1948 – भारत में National Cadet Corps (NCC) की स्थापना हुई।  

  5. 1949 – भारत में संविधान समिति के अध्यक्ष ने संविधान को हस्ताक्षरित किया और तत्काल प्रभाव से लागू किया गया।  

  6. 1960 – भारत में पहली बार Subscriber Trunk Dialling (STD) टेलिफोन सेवा कानपुर-लखनऊ रूट पर उपयोग में आई। 

  7. 1960 – डोमिनिकन गणराज्य में Mirabal Sisters की हत्या हुई, जिसने बाद में वैश्विक महिला-हिंसा चेतना को प्रेरित किया। 

  8. 1973 – ग्रीस में सैन्य तख़्तापलट हुआ जिसमें राष्ट्रपति George Papadopoulos को हटाया गया। 

  9. 1975 – Suriname को नीदरलैण्ड्स से स्वतंत्रता मिली। 

  10. 1999 – International Day for the Elimination of Violence against Women के रूप में 25 नवंबर को घोषित किया गया।

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