मां भारती की रक्षा में आज ही के दिन बलिदान हुए थे शेर-ए-सिंध क्रांतिकारी हेमू कालाणी

आजादी की लड़ाई में कई नायक रहे हैं जिन्होंने अपनी जान की आहुति दी, लेकिन कुछ बलिदानी इतने प्रेरणादायक थे कि उनका नाम अमर हो गया। इनमें से एक नाम हेमू कालाणी का भी है। चलिए जानते हैं क्रांतिकारी हेमू कालानी की वीरगाथा।

Advertisment
author-image
Vikram Jain
New Update
revolutionary martyr Hemu Kalani martyrdom day Special story

क्रांतिवीर अमर शहीद हेमू कालाणी। Photograph: (the sootr)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में असंख्य बलिदानों का इतिहास है। हजारों लाखों जीवन की आहूति के बाद ही भारत में स्वतंत्रता का सूर्य उदित हो सका। ऐसे ही एक अमर बलिदानी हैं हेमू कालाणी। संभवतः उनका जन्म ही स्वाधीनता संग्राम के लिए हुआ था। वे बचपम में सात वर्ष की आयु से ही हाथ में तिरंगा लेकर प्रभात फेरियों में शामिल होने लगे थे। बचपन से स्वतंत्रता संघर्ष का नशा कुछ ऐसा चढ़ा जो जीवन के बलिदान के बाद ही शांत हो सका। 

हेमू कालाणी: एक अमर बलिदानी की कहानी

हेमु कालाणी का जन्म 23 मार्च 1923 को सिंध प्रांत के सुक्कुर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। उनका परिवार जैन परंपरा का अनुयायी था, लेकिन उनके पिता की सक्रिय भागीदारी आर्यसमाज में थी, जिससे घर में स्वाधीनता, संस्कृति और राष्ट्र जागरण का भाव था। संयोग से हेमू कालाणी का जन्म उस दिन हुआ था जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी। इस दिन का ऐतिहासिक महत्व उनकी प्रेरणा बन गया था।

हेमू कालाणी के पिता पेसुमल कलाणी व्यवसायी थे। माता जेठी बाई धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए समर्पित रहीं। पंजाब और सिंध का यह क्षेत्र तीन परंपराओं से बहुत जाग्रत था। एक तो आर्यसमाज के सांस्कृतिक अभियान से, दूसरा क्रांतिकारियों के आंदोलन से तीसरा गांधी जी के स्वदेशी आह्वान से। उस क्षेत्र का बच्चा-बच्चा स्वदेशी और राष्ट्र जागरण के रंग में रंग रहा था। गांव-गांव में प्रभात फेरियां निकलने लगी थीं। 

7 साल की उम्र में हाथों में थामा तिरंगा

जब हेमू केवल सात साल के थे तब उन्होंने हाथ में तिरंगा लेकर प्रभात फेरियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था। स्वदेशी का यह भाव जो उनके बचपन में पनपा अंतिम सांस तक यथावत रहा। किशोर अवस्था में वे क्रांतिकारी गतिविधियों के प्रति आकर्षित हुए और क्रांतिकारियों के संपर्क में आ गए। वे टोली बनाकर दोनों दिशाओं में एक साथ काम करने लगे। अंग्रेजों से भारत को स्वतंत्र कराने के जलसे जुलूस में भी और क्रांतिकारी गतिविधियों में भी हिस्सा लेते। विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने लगे।

राष्ट्र रक्षा में आज ही के दिन बलिदान हुए थे महायोद्धा दत्ताजी शिंदे

अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष की कहानी

वीर क्रांतिकारी हेमू कालाणी पढ़ने में भी बहुत होनहार थे। इसके साथ खेलकूद, तैराकी और दौड़ स्पर्धाओं में भी हिस्सा लेते थे। खेल गतिविधियों में कई बार पुरस्कृत हुए। अभी वे केवल 19 वर्ष के थे कि 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन आरंभ हो गया। यह आह्वान महात्मा गांधी जी ने किया था। गांधी जी ने अंग्रेजो से भारत छोड़ने के लिए कहा और भारतीयों को 'करो या मरो' का नारा दिया। यह आंदोलन पूरे देश में फैला। यद्यपि आंदोलन की पूर्व बेला में गांधी जी और कांग्रेस के लगभग सभी नेता बंदी बना लिए गए थे। पर आंदोलन न रुका। आंदोलन स्वस्फूर्त हो गया। जो जहां था वह आंदोलन में टूट पड़ा। हेमू कालाणी भी अपने दोस्तों और टोली के साथ आंदोलन में कूद पड़े। वे जिस संगठन के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे उसका नाम 'स्वराज सेना' था। सिंध प्रांत के आंदोलन में इस संगठन की भूमिका महत्वपूर्ण थी। इसी संगठन के आह्वान पर हेमू ने 'अंग्रेजो भारत छोड़ो' के नारे के साथ पूरे सिंध में स्वदेशी अभियान छेड़ दिया। 

ऐसे दो क्रांतिकारी जिनके अंग्रेजों ने हथौड़े से तोड़े दांत, उखाड़े नाखून, फिर दी फांसी

19 वर्ष की आयु में स्वतंत्रता संग्राम में भागीदार

हेमू कालाणी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने के आह्वान के साभाएं करते नौजवानों को जाग्रत कर रहे थे। तभी क्रांतिकारियों को जानकारी मिली कि बलूचिस्तान में चल रहे आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेज सैनिकों, हथियारों और  बारूद से भरी रेलगाड़ी सिंध के रोहिणी स्टेशन और सक्खर शहर से होकर बलुचिस्तान के क्वेटा नगर जाएगी। यह समाचार सुनकर संगठन ने इस रेलगाड़ी रोकने का दायित्व 19 वर्षीय छात्र हेमू कालाणी और उनकी टोली को दिया। वह 23 अक्टूबर 1942 की रात थी। क्रांतिकारी हेमू कालाणी ने अपने साथ दो सहयोगी नंद और किशन को लिया। तीनों ने रेलगाड़ी के मार्ग का अध्ययन पहले कर लिया था। वे रेलगाड़ी के मार्ग पर पहुंचे। हेमू कालाणी ने रिंच और हथौड़े की सहायता से रेल की पटरियों की फिशप्लेटों को उखाड़ना शुरू कर दिया। अन्य दोनों साथी निगरानी के लिए तैनात थे। 

यातनाएं सहकर भी नहीं बताए साथियों के नाम

इधर, रात के सन्नाटे के कारण हथौड़ा चलाने की आवाजें दूर तक जा रही थीं। यह आवाज गश्त कर रहे सिपाहियों ने भी सुनी, जिसे सुनकर सिपाही दौड़कर आए। सिपाहियों को देखकर निगरानी के लिए तैनात नंद और किशन तो भाग कर अंधेरे में छिप गए। पर हेमू कालाणी को सिपाहियों ने पकड़ लिया। उन्हे क्रूरतम शारीरिक यातनाएं दी गई। सिपाहियों ने दो लोगों को भागते देख लिया था, उनसे साथियों के नाम पूछे गए। लेकिन उन्होंने कठोर यातना सहकर भी अपने साथियों के नाम न बताए। न नंद और किशन के और न अपने संगठन के अन्य साथियों के।

7 जनवरी 1738: भोपाल युद्ध में मुगलों की करारी हार और दोराहा संधि

हेमू कालाणी को जनवरी 1943 में दी गई फांसी

सक्खर की मार्शल ला कोर्ट ने उन पर देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इस निर्णय के अनुमोदन के लिए निर्णय सिंध प्रांत के हैदराबाद स्थित सेना मुख्यालय के प्रमुख अधिकारी कर्नल रिचर्डसन के पास भेजा गया। अंग्रेजों के समय मार्शल लॉ कोर्ट के आदेश पर अंतिम निर्णय सेना प्रमुख अधिकारी ही करते थे। इसलिए यह फाइल कर्नल रिचर्डसन के पास गई। कर्नल रिचर्डसन ने हेमू कालाणी को ब्रिटिश राज के लिए खतरनाक शत्रु करार दिया और आजीवन कारावास की सजा को फांसी में बदल दिया। इसके बाद जनवरी, 1943 को प्रात: 7 बजकर 55 मिनट पर हेमू कालाणी को फांसी दी गई।

बलिदान और विरासत

हेमू कालाणी की फांसी ने न केवल सिन्ध प्रांत बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया। उनका बलिदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमूल्य धरोहर बन गया। जब क्रांतिकारी हेमू कालाणी का बलिदान हुआ तब वे मात्र 29 साल के थे। वे पूरे सिंध में नौजवानों के आदर्श थे। उनकी स्मृति में डाक टिकिट भी जारी हुआ और विभिन्न नगरों में उनके नाम पर सड़क या कॉलोनियों के नाम भी हैं।

5 जनवरी 1880 : सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी बारींद्रनाथ घोष का जन्म

भोपाल न्यूज विचार मंथन कौन थे हेमू कालाणी विचार मंथन द सूत्र भारतीय स्वतंत्रता संग्राम वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा