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@उचित शर्मा,वरिष्ठ पत्रकार
विनोद कुमार शुक्ल जी का निधन हिंदी साहित्य के लिए एक अपूरणीय क्षति है। उनकी रचनाएं आम आदमी के जीवन को असाधारण ढंग से पेश करती थीं, जो राईं जितनी सरल और पहाड़ जितनी गहरी थीं। “नौकर की कमीज “और “दीवार में एक खिड़की रहती थी “ पेड़ पे कमरा, जैसी रचनाओं से उन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया।
शुक्ल जी की रचनाएं सिर्फ कहानियां नहीं थीं, वे उनके जीवन के अनुभव थे, जो दिल को छू भी जाते थे और पसीज भी । उनकी भाषा में एक अद्भुत सरलता थी, जो पढ़ने वालों को अपने साथ जोड़ लेती थी फिर वो चाहे Zen G जनरेशन का या मिलेनियल। उन्होंने आम आदमी के संघर्ष, अकेलेपन और उम्मीदों को शब्द दिए।
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विनोद कुमार शुक्ल को 59वा भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, वही PEN NABOKOV विश्व का प्रतिष्ठित सम्मान भी प्राप्त हो चुका है जो उनकी साहित्यिक योगदान का प्रमाण है।
उनका निधन साहित्य जगत के लिए एक बड़ा नुकसान है, लेकिन उनकी रचनाएं हमेशा हमें प्रेरित करती रहेंगी। हम सभी उनकी रचनाओं को पढ़ते रहेंगे और उनके विचारों को आगे बढ़ाते रहेंगे
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