शादी में सबसे पहले कौन पहनाता है वरमाला? जानें इस प्राचीन परंपरा के रहस्य के बारे में

भारतीय शादियों में वरमाला या जयमाला की रस्म विवाह का शुभ आरंभ मानी जाती है। धार्मिक परंपरा और प्राचीन स्वयंवर की प्रथा के अनुसार, सबसे पहले दुल्हन ही दूल्हे को वरमाला पहनाती है। यह रस्म आपसी स्वीकृति और जीवनभर के साथ का संकल्प है।

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Kaushiki
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भारतीय विवाह की रस्मों में वरमाला या जयमाला का क्षण सबसे अधिक उत्साह और आकर्षण से भरा होता है। यह हंसी, मजाक और थोड़ी-सी छेड़खानी के बीच दूल्हा-दुल्हन द्वारा सबके सामने एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने का पहला ऐलान है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्राचीन परंपरा और स्वयंवर की प्रथा के मुताबिक, इस पावन रस्म का शुभ आरंभ कौन करता है? धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, इसका सीधा संबंध वर (दूल्हे) के नाम से है।

आइए, जानते हैं कि क्यों सबसे पहले दुल्हन ही दूल्हे को माला पहनाकर इस प्रेम और जीवनभर के साथ के संकल्प की शुरुआत करती है। आइए जानते हैं।

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धार्मिक मान्यता क्या कहती है?

यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है, खासकर तब जब मॉडर्न शादियों में अक्सर इस रस्म को बराबरी पर या मजाक-मजाक में निभाया जाता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं और परंपरा के अनुसार, वरमाला की शुरुआत हमेशा दुल्हन ही करती है।

नाम में छिपा है अर्थ: 

इस रस्म का नाम है 'वरमाला'। इसका सीधा अर्थ होता है – 'वर' यानी दूल्हे को पहनाई जाने वाली 'माला'।

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स्वयंवर की प्रथा: 

यह रस्म प्राचीन काल के स्वयंवर की परंपरा से जुड़ी हुई है। प्राचीन समय में, राजकन्याएं अपने लिए योग्य वर चुनने के लिए स्वयंवर रखती थीं। जिस भी राजकुमार या पुरुष को कन्या जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करती थी, वह उसे माला पहनाकर अपनी स्वीकृति दे देती थी।

इसलिए, आज भी इसी प्राचीन नियम और परंपरा का पालन करते हुए, दुल्हन द्वारा दूल्हे को सबसे पहले वरमाला पहनाना ही सबसे शुभ माना जाता है।

दुल्हन सबसे पहले दूल्हे को माला पहनाकर यह घोषणा करती है कि उसने उसे अपने पति के रूप में चुन लिया है। इसके बाद दूल्हा अपनी पत्नी के रूप में दुल्हन को माला पहनाता है।

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वरमाला का आधुनिक महत्व

हालांकि, आज के बदलते समय में इस रस्म में खूब बदलाव आए हैं। अब वरमाला को एक हल्का-फुल्का और खुशनुमा कार्यक्रम बना दिया गया है। दोस्त और रिश्तेदार दूल्हा-दुल्हन को ऊपर उठाकर उन्हें माला पहनाने से रोकते हैं, जिससे माहौल हंसी-खुशी से भर जाता है। लेकिन इसका मूल महत्व आज भी वही है:

  • आपसी स्वीकृति: 

    यह दर्शाता है कि वर और वधू ने खुशी-खुशी और आपसी सहमति से एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार कर लिया है।

  • प्रेम का इजहार: 

    यह दोनों के बीच के प्रेम और स्नेह का सबसे पहला सार्वजनिक प्रदर्शन होता है।

  • जीवनभर का साथ: 

    वरमाला पहनना एक संकल्प है कि वे जीवनभर एक-दूसरे के सुख-दुख में साथ रहेंगे।

चाहे आप बिहारी हों, बंगाली, मारवाड़ी या पंजाबी, वरमाला की परंपरा हर भारतीय शादी का एक अभिन्न और खूबसूरत हिस्सा है।

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। Relationship | रिलेशनशिप

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