देसी ब्रांड : सिर्फ 50 पैसे में शुरू हुई थी Parle-G की कहानी, आज है 8600 करोड़ रुपए का साम्राज्य

Be इंडियन-Buy इंडियन: पारले की कहानी एक छोटे घरेलू काम से भारत की सबसे बड़ी FMCG कंपनी बनने तक का प्रेरक सफर है। इसकी सफलता उपभोक्ताओं से जुड़ाव और गुणवत्ता में छिपी है, जिसने इसे भारत का सबसे बड़ा FMCG ब्रांड बना दिया। यह हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।

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Manish Kumar
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Be इंडियन-Buy इंडियन: भारतीय देसी ब्रांड पारले की सफलता की कहानी एक गहरी प्रेरणा देती है, जो कठिनाइयों से जूझते हुए एक छोटे पारिवारिक उद्योग से भारत की सबसे बड़ी FMCG कंपनी बनने तक का सफर है। पारले की कहानी एक सरल परिवार से निकली प्रेरणा है, जिसने अपने भरोसे और मेहनत के बूते पर पूरे देश को अपने उत्पादों से जोड़ा। यह न केवल एक ब्रांड की सफलता है, बल्कि भारतीय उद्यमिता और स्वदेशी भावना का जश्न है। पारले का सफर यह सिखाता है कि असली ताकत उपभोक्ता से जुड़ाव और गुणवत्ता देने में होती है, जो समय के साथ स्थायी हो। आइए जानते हैं क्या है इसके संघर्ष की कहानी...

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पारले की शुरुआत कैसे हुई?

कहानी शुरू होती है 1929 में, मुंबई के विले पार्ले (vile parle) इलाके से। पारले की स्थापना मोहनलाल दयाल चौहान ने की थी, जो गुजराती मूल के एक परिवार से थे। शुरूआत में वे सिलाई का काम करते थे, लेकिन जल्दी ही उन्होंने व्यापार को बदलकर कॉन्फेक्शनरी में कदम रखा।

मोहनलाल की मेहनत और दूरदर्शिता ने उन्हें छोटे से बेकरी फैक्ट्री की शुरूआत करने पर मजबूर किया, जहां उन्होंने टॉफी, कैंडीज और मिठाइयां बनानी शुरू कीं। शुरुआती दौर में पारले ने जर्मनी से मशीनरी मंगवाई और पारंपरिक भारतीय स्वादों के साथ विदेशी उत्पादों को टक्कर देने की ठानी।

शुरुआती संघर्ष की कहानी

1929 से लेकर 1939 तक पारले मुख्य रूप से मिठाई और कैंडी का व्यवसाय करता रहा, लेकिन व्यवसाय में चुनौतियां कम नहीं थीं। भारत में उस समय यूरोपियन मिठाइयां और बिस्किट प्रचलित थे और पारले को अपने उत्पादों को स्थापित करने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। 1939 में उन्होंने अपने पहले बिस्किट पारले ग्लूको का निर्माण शुरू किया। 

शुरू में तो यह बिस्किट ब्रिटिश सेना को सप्लाई किया जाता था क्योंकि आम जनता तक इसकी पहुंच सीमित थी। 1947 में स्वतंत्रता के बाद पारले ने अपने बिस्किट्स को भारतीय उपभोक्ता तक पहुंचाने की ठानी और उसी समय ग्लूको बिस्किट को एक सस्ते, पौष्टिक और स्वादिष्ट विकल्प के रूप में बाजार में उतारा। यह कदम सफल रहा और पारले ने भारत में स्वदेशी आंदोलन के दौर में एक मजबूत पहचान बनाई। 

1950-60 के दशक में जब बाजार में ब्रिटानिया जैसी कंपनियों ने भी प्रवेश किया, तब पारले ने अपने उत्पादों की गुणवत्ता और कीमत के संतुलन से जनता का भरोसा बनाए रखा। इस दौर में पारले की मार्केटिंग सीमित संसाधनों के बावजूद बहुत प्रभावी रही, जिसके कारण यह ब्रांड धीरे-धीरे घर-घर पहुंचने लगा।

पारले-जी बिस्कुट ने लिखी सफलता की नई इबारत

पारले की सफलता की कहानी में एक मील का पत्थर थी पारले-जी बिस्किट। 1982 में पारले ग्लूको को पारले-जी के नाम से लॉन्च किया गया, जिसमें 'जी' का मतलब ग्लूकोज था। इस बिस्कुट ने भारत में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सभी वर्गों में लोकप्रियता हासिल की।

इसके सफेद और पीले रंग वाले पैकेजिंग में एक छोटी लड़की की तस्वीर थी, जो आज भी इसकी पहचान है। पारले-जी (Parle-G) ने न केवल अपने स्वाद और गुणवत्ता से लोगों का दिल जीता, बल्कि अपनी किफायती कीमत और वाइड डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क के कारण हर कोने तक पहुंच बनाई।

1977 में जब भारत में कोका-कोला कंपनी को बाहर निकाला गया, पारले ने उस अवसर को पकड़कर थम्स अप ब्रांड, गोल्ड स्पॉट, फ्रूटी जैसे ड्रिंक उत्पाद बनाए, जो घर-घर में पसंद किए जाने लगे। इस तरह पारले ने सिर्फ बिस्कुट नहीं, बल्कि पेय पदार्थों में भी अपनी पकड़ बनाई।

आज बाजार में पारले की क्या स्थिति है?

2025 तक पारले भारत में FMCG क्षेत्र का सबसे बड़ा नाम बन चुका है। ब्रांड फुटप्रिंट इंडिया रिपोर्ट 2025 के अनुसार, पारले तीसरी बार लगातार 13 वर्षों से सबसे ज्यादा चुना जाने वाला इन-होम FMCG ब्रांड है।

पारले का कंज्यूमर रिच प्वाइंट लगभग 860.5 करोड़ रुपए है, जो भारतीय घरों में इसकी व्यापक पहुंच को दर्शाता है। पारले-जी के साथ-साथ पारले का कन्फेक्शनरी, स्नैक्स और पेय पदार्थ भी बाजार में स्थिर स्थिति बनाए हुए हैं।

पारले की सालाना कमाई हजारों करोड़ों रुपए में है और कंपनी निरंतर अपने उत्पादों के साथ इनोवेशन करती रहती है। ऐसा इसलिए ताकि बदलते उपभोक्ता ट्रेंड के साथ खुद को अपडेट कर सके।

ब्रांड पारले की मार्केट में पोजिशन

पारले ने खुद को "जनता के लिए" ब्रांड के रूप में स्थापित किया है। इसका फोकस सस्ती और गुणवत्तापूर्ण उत्पाद देने पर रहा है जो भारत के हर वर्ग तक पहुंच सकें। पारले-जी बिस्कुट को "गुणवत्ता और पौषण" का पर्याय माना जाता है।

इसका मार्केटिंग दृष्टिकोण पारंपरिक और डिजिटल दोनों माध्यमों का संतुलन बनाए रखते हुए रहा है, जिसमें निश्छल, भावनात्मक विज्ञापन के साथ ही सोशल मीडिया और इन्फ्लुएंसर पार्टनरशिप भी शामिल हैं। पारले का लक्ष्य मात्र बिक्री नहीं, बल्कि भारतीय परिवारों के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बनाना है। 

पारले ब्रांड का मूल मंत्र

पारले का मूल मंत्र है - "किफायती, गुणवत्ता और भरोसा"। कंपनी का हमेशा यह मानकर चलना कि ग्राहक को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद उचित मूल्य पर मिले। उनके लिए बाजार में टिकाऊ सफलता का रहस्य है उपभोक्ता की अपेक्षाओं को समझना और लगातार निरंतरता के साथ उत्पाद देना। साथ ही, पारले ने "स्वदेशी" और "भारतीय जरूरतों को समझना" को भी अपनी पहचान बनाया। यह मंत्र ही पारले की मजबूती है, जिसने इसे मुश्किल रास्तों में भी बढ़ने दिया।

इस कहानी से क्या सीखा जा सकता है?

पारले की कहानी से कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:

- धैर्यता और समर्पण से कठिनाइयों को पार किया जा सकता है।
- गुणवत्ता और उपभोक्ता विश्वास ही दीर्घकालिक सफलता की कुंजी है।
- बाजार की जरूरतों को गहराई से समझकर उत्पाद विकास और मार्केटिंग रणनीति तैयार करें।
- किफायती मूल्य के साथ गुणवत्ता का संतुलन बनाना व्यापार की सबसे बड़ी ताकत हो सकती है।
- इनोवेशन और परंपरा का संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
- स्वदेशी भावना और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को अपनाना ब्रांड की पकड़ मजबूत करता है।

स्रोत:

https://www.parleproducts.com
Research Articles on Parle Innovation and Market Trends
Industry Insights from Leading FMCG Experts

FAQ

पारले की स्थापना कब और कहां हुई थी?
पारले की स्थापना 1929 में मुंबई के विले पार्ले इलाके में मोहनलाल दयाल चौहान ने की थी। शुरुआत में उन्होंने एक बेकरी फैक्ट्री शुरू की, जहां टॉफी, कैंडी और मिठाइयां बनाई गईं। बाद में, कंपनी ने बिस्कुट और अन्य FMCG उत्पादों का निर्माण शुरू किया।
पारले-जी बिस्कुट की सफलता का क्या राज है?
पारले-जी बिस्कुट की सफलता का मुख्य कारण इसका स्वाद, गुणवत्ता और सस्ती कीमत है। इसके अलावा, पारले-जी की व्यापक डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क और किफायती पैकिंग ने इसे भारतीय बाजार में हर घर तक पहुंचाया। यह बिस्कुट हर वर्ग के लोगों के लिए एक पौष्टिक और सस्ता विकल्प बन गया।

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