डीपफेक रोकने के लिए एआई पर कंट्रोल की मांग, SC में दायर याचिका

भारत में AI के दुरुपयोग और डीपफेक के मामले बढ़ रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें मांग की गई है की AI टूल्स के लिए राष्ट्रीय एआई नियामक निकाय लाया जाएं।

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Neel Tiwari
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New Delhi. देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक और उससे होने वाले गलत इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहे हैं। इसको लेकर अब सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में अदालत से गुजारिश की गई है कि सरकार ऐसे सख्त नियम बनाए, जिससे एआई टूल्स का दुरुपयोग न हो सके। खासतौर पर डीपफेक वीडियो और आवाज की नकल जैसी खतरनाक चीजों को रोका जा सके।

डीपफेक से बढ़ रहा खतरा

याचिका में कहा गया है कि आज एआई टूल्स की मदद से किसी की भी तस्वीर, आवाज या वीडियो को बदलकर फर्जी सामग्री तैयार की जा सकती है। कई बार ऐसी फर्जी वीडियो और तस्वीरें लोगों के सम्मान और निजी जीवन को नुकसान पहुंचाते हैं। सोशल मीडिया पर फैलने के बाद ये डीपफेक समाज में अफवाहें और तनाव भी पैदा कर सकते हैं।

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लाइसेंस और निगरानी की मांग

याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि केंद्र सरकार एक राष्ट्रीय एआई नियामक व्यवस्था (AI Regulation System) बनाए। इसमें हर एआई टूल को लाइसेंस दिया जाए और उसके इस्तेमाल पर निगरानी रखी जाए। साथ ही सोशल मीडिया कंपनियों जैसे गूगल, मेटा और एक्स (ट्विटर) को भी ऐसी शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करने के लिए बाध्य किया जाए।

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विशेषज्ञ समिति बनाने का सुझाव

याचिका में यह भी कहा गया है कि सरकार एक विशेषज्ञ समिति बनाए। इसमें टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों, वकीलों और नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए। यह समिति तय करे कि कौन-से एआई टूल सुरक्षित हैं और कौन-से समाज के लिए खतरनाक हो सकते हैं।

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निजता और लोकतंत्र पर असर

याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि यदि एआई का इस्तेमाल बिना किसी नियंत्रण के चलता रहा, तो यह लोगों की निजता, उनकी पहचान और लोकतंत्र की जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है। डीपफेक के जरिए चुनावों को प्रभावित करना, नेताओं की झूठी छवि बनाना या अफवाहें फैलाना आसान हो गया है।

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दुनिया के दूसरे देशों का उदाहरण

याचिका में बताया गया है कि अमेरिका, चीन और यूरोपीय देशों ने पहले ही एआई के लिए अलग-अलग कानून बना लिए हैं। वहीं भारत में अभी तक कोई ठोस नियम नहीं हैं, जिनके आधार पर गलत इस्तेमाल करने वालों पर कार्रवाई की जा सके।

अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि सरकार को इस दिशा में क्या कदम उठाने होंगे। यदि कोर्ट इस पर गंभीर निर्देश देता है, तो देश में एआई के लिए पहली बार सख्त निगरानी व्यवस्था बन सकती है। यह फैसला डिजिटल युग में आम नागरिकों की सुरक्षा और भरोसे के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है।

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