जनेऊधारी वकील की भीष्म प्रतिज्ञा, मुर्दे को जिंदा करके ही माना

कहते हैं कि एक वकील अगर जिद पर आ जाए तो क्या नहीं कर सकता? यह कहानी भी ऐसे ही वकील की है, जिसने अपनी जिद से एक मुर्दा को जिंदा करके दिखा दिया…

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Pratibha Rana
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जनेऊधारी वकील

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BHOPAL. बिहार के मुजफ्फरपुर में एक हैरतअंगेज मामला सामने आया है। यहां एक इंस्पेक्टर ने एक केस में कोर्ट में पेश होने से बचने के लिए खुद को मुर्दा बता दिया। उसे जिंदा साबित करने के लिए कोर्ट के वकील ने अपना जनेऊ उतारकर कसम खा ली। आखिरकार 12 साल बाद वकील ने उस मृतक दारोगा को जिंदा साबित कर दिखाया। अब 12 साल बाद वकील साहब के दोबारा जनेऊ धारण कर लिए है। 

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एक मुर्दा इंसान को जिंदा साबित करने की प्रतिज्ञा 

ये मामला है बिहार के मुजफ्फरपुर का......यहां एक वकील ने आज से 12 साल पहले ऐसी प्रतिज्ञा ली, जिसे जान कर कोई हैरान है। ये प्रतिज्ञा एक मुर्दा इंसान को जिंदा साबित करने की। प्रतिज्ञा एक बेगुनाह को जेल से बाहर निकाल कर उसे इंसाफ दिलाने की। मुजफ्फरपुर के क्रिमिनल लॉयर डॉ. एसके झा ( Janeudhari Advocate ) को ये सब पूरा करने में 12 सालों का वक्त लग गया (  Bihar News )। 

वकील ने इसलिए दोबारा जनेऊ धारण किया 

दरअसल 4 नवंबर 2012 को नेवरी गांव, मुजफ्फरपुर में रहने वाले एक स्कूल टीचर अनंतराम पर उन्हीं के गांव की रहने वाली एक महिला रेप का आरोप लगाते हुए उनपर केस दर्ज किया था। पुलिस ने अनंतराम को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन वह हमेशा खुद को बेकसूर बताता रहा। अनंतराम ने कई बार पुलिस को ये बताने की कोशिश की, कि ये मामला रेप से नहीं बल्कि पैसों से जुड़ा हैं, लेकिन पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी। जिस महिला ने अनंतराम पर रेप का केस लगाया है, अनंतराम ने उसके पति को सवा लाख रुपए उधार दिए थे। बाद में अनंतराम जब अपने पैसे वापस मांगने गया तो महिला के परिजनों ने उसके साथ मारपीट कर उसके खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज कर दिया।  

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एक वकील की अनोखी कसम

हद तब हुई जब महिला ने एफआईआर में रेप का समय भी वो लिखवाया, जब मारपीट के मामले में पुलिस ने खुद पहले ही अनंतराम को अस्पताल में भर्ती करवाया था। मतलब ये कि अनंतराम ने पुलिस की जानकारी में अस्पताल में रहते हुए ही महिला का रेप कर दिया। मामला यहीं साफ हो जाता है कि ये पूरा केस ही झूठा है। टीचर पर झूठे आरोप लग रहे है। अनंतराम की इस कहानी से उनके वकील डॉ. एसके झा भी खुश थे। लेकिन कहानी में असली ट्विस्ट तब आया, जब मामला ट्रायल के स्टेज में पहुंचा और मामले के इनवेस्टिगेशन ऑफिसर यानी अहियापुर थाने के दारोगा रामचंद्र सिंह को कोर्ट में मुल्जिम के खिलाफ सबूत पेश करने के साथ-साथ अपनी गवाही देने के लिए बुलाया गया। लेकिन गवाही के दिन रामचंद्र सिंह कोर्ट में पहुंचे ही नहीं, उनकी पत्नी ने बताया कि 15 दिसंबर 2009 को दरोगा का निधन हो गया है। यानी रेप केस 2012 में दर्ज हुआ था, लेकिन 2009 में रामचंद्र सिंह का निधन हो गया था। तो फिर तीन साल उन्होंने केस का अनुसंधान कैसे किया और केस के इनवेस्टिगेशन ऑफिसर कैसे बने?

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मामला संदेहास्पद होने के बावजूद जेल में रहे टीचर

रेप का ये मामला संदिग्ध तो था ही, रेप केस की जांच करने वाले पुलिस ऑफिसर रामचंद्र सिंह की भूमिका भी संदेह के घेरे में थी। ये सब होने के बाद अनंतराम के वकील डॉ. एसके झा ने 2012 में प्रतिज्ञा ली कि अपनी मौत को लेकर झूठ बोल रहे दारोगा रामचंद्र सिंह का सच दुनिया के सामने लेकर आएंगे। तब तक वह सच साबित कर लेते तब तक जनेऊ नहीं पहनेंगे। मामला संदिग्ध होने के बाद भी लोअर कोर्ट ने टीचर अनंतराम को आरोपी मानते हुए सात साल की सजा सुना दी। पीड़ित टीचर को 6 साल और 9 महीने जेल में भी रहना पड़ा।

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दारोगा रामचंद्र की सच्चाई ऐसे आई सामने 

पीड़ित टीचर अनंतराम के वकील डॉ. एसके झा ने ना सिर्फ हाई कोर्ट में अपील दायर की, बल्कि खुद ही अपने तौर पर खुद को मुर्दा बता कर केस छोड़ने वाले दारोगा को भी ढूंढ निकाला। हाई कोर्ट ने पूरे मामले पर गौर किया और अनंतराम को झूठे रेप के आरोप से आज़ाद करते हुए 23 जुलाई 2018 को बाइज्जत बरी कर दिया। सच जानने के लिए वकील डॉ. झा दारोगा रामचंद्र सिंह के गांव पहुंचे और पता लगाया कि वो ना सिर्फ जिंदा हैं, बल्कि पटना में रह रहे हैं और रिटायरमेंट के बाद पुलिस विभाग के मिलने वाला पेंशन भी ले रहे हैं। लेकिन इसका जवाब किसी के पास नहीं है कि सलाखों के पीछे गुजारी गई उनके जिंदगी के 7 साल का हिसाब कौन देगा? 

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