लोकसभा में आज से अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा, राहुल गांधी करेंगे बहस की शुरुआत! 10 अगस्त को मोदी देंगे जवाब 

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Pratibha Rana
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लोकसभा में आज से अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा, राहुल गांधी करेंगे बहस की शुरुआत! 10 अगस्त को मोदी देंगे जवाब 

New Delhi. मणिपुर हिंसा के मुद्दे पर चर्चा और पीएम मोदी के बयान की मांग को लेकर विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में 8 से 10 अगस्त तक चर्चा होगी। मंगलवार यानी 8 अगस्त को कांग्रेस सांसद राहुल गांधी विपक्ष की ओर से सदन में बहस की शुरुआत करेंगे। चर्चा के आखिरी दिन 10 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका जवाब देंगे। संसद में संख्या बल कम होने के बावजूद विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव लाने की हिम्मत पर देशभर की नजरें हैं।



पिछली बार मोदी सरकार ने साबित कर दिया था बहुमत, मोदी के गले लग गए थे राहुल 



20 जुलाई 2018 को तेलगू देशम पार्टी नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाई थी। यह मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव था। 12 घंटे की चर्चा के बाद सरकार को 325 वोट और अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में विपक्ष को 126 वोट मिले थे। वोटिंग के बाद मोदी सरकार ने वहां बहुमत साबित कर दिया था। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान हुआ एक वाकया अब तक सभी के जहन में हैं। राहुल गांधी भाषण के बाद अपनी बेंच से उठकर मोदी के पास गए और अचानक उनके गले लग गए। मोदी ने इसके बाद अपने जवाब में राहुल गांधी द्वारा आंख मारने पर मजाक भी बनाया था। अब फिर से अविश्वास प्रस्ताव सब चर्चाओं में हैं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि कम संख्या बल होने के बाद भी अविश्वास  प्रस्ताव लाने के पीछे विपक्ष की मंशा क्या हैं? अविश्‍वास प्रस्‍ताव क्‍या होता है? इसके क्‍या नियम हैं? यह किन परिस्थितयों में लाया जा सकता है?, 



इससे जुड़े इतिहास के कुछ तथ्‍य....



मोदी इस मामले में तोड़ सकते हैं जवाहरलाल नेहरू का रिकॉर्ड



1963 से अब तक अब तक विभिन्न सरकारों के खिलाफ 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए हैं। इनमें अब तक के सबसे ज्यादा 347 मत 1963 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के पक्ष में पड़े थे। मोदी सरकार के खिलाफ पिछली बार 2018 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के पक्ष में 330 मत पड़े थे। वाईएसआरसीपी और बीजेडी के समर्थन से पीएम मोदी अब नेहरू का रिकॉर्ड तोड़ सकते हैं। 



अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा से निकलेंगे चार अहम संदेश.... 




  • कितना एकजुट है विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A.?




चर्चा के दौरान यह भी अहम रहेगा कि विपक्षी गठबंधन 'I.N.D.I.A.' कितने समन्वय के साथ नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोलता है। I.N.D.I.A. के अस्तित्व में आने के बाद से ही लगातार मतभेदों की खबरें सामने आती रही हैं। खबरें शरद पवार को लेकर हों या फिर नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की या कांग्रेस-आप के बीच आपसी रस्साकशी से जुड़ी। हालांकि यह दिखाने की कोशिश की जाती रही है कि I.N.D.I.A. बन तो गया, लेकिन एकता के लिए अब तक मशक्कत  जारी है। ऐसे में अगर प्रस्ताव पर सदन में विपक्षी दल एकजुट होकर एक सुर में सरकार को घेरते हैं तो यह विपक्षी दलों की मजबूत एकजुटता की तस्वीर होगी।




  • विपक्ष कौन-कौन से मुद्दों पर रखेगा फोकस, क्या होगी रणनीति? 




विपक्ष अगर मणिपुर पर अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है तो जाहिर है कि उसका फोकस मणिपुर पर ही रह सकता है। बीजेपी और मोदी हर चुनाव में डबल इंजन की सरकार की बात करते रहे हैं। ऐसे में मणिपुर की घटना डबल इंजन सरकार के लिए कमजोर कड़ी की तरह ही है, जिसे विपक्ष उसी रूप में उठाने की कोशिश करेगा। हरियाणा में हुई हिंसा, महंगाई, मणिपुर पर सरकार को जुडिशरी से झटका, एजेंसियों का कथित राजनीतिक इस्तेमाल, नौ साल के कामकाज पर भी घेरने की भी कोशिश करेगा, हालांकि इसमें खतरा है कि अगर विपक्ष मणिपुर की बजाय दूसरे मुद्दों पर ज्यादा जोर देता है तो यह मोदी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। तब मोदी मणिपुर की बजाय तमाम चीजों पर विस्तार से जवाब देंगे। ऐसे में विपक्ष का फोकस होना जरूरी है। 




  • 2024 की चुनौती, मोदी कैसे करेंगे इस मौके का उपयोग?




इस साल के कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर अपने जवाब के माध्यम से जनता के बीच एक ट्रेंड सेट करने की कोशिश करेंगे। इसमें मोदी दिखाना चाहेंगे कि सरकार देश की प्रगति के लिए काम कर रही है। उपलब्धियां हासिल कर रही केंद्र सरकार को विपक्ष अपनी नकारात्मक राजनीति से नीचा दिखाने की कोशिश कर रहा है। पीएम की कोशिश रहेगी कि वह ज्यादा से ज्यादा गैर बीजेपी शासित राज्यों की कानून व्यवस्था की कमियों और राज्य सरकारों के कामकाज के तरीके पर हमला बोलें। वे अपने नौ सालों के शासन की उपलब्धियों को सामने रखने की भी कोशिश करेंगे। पीएम अपने जवाब में विपक्ष पर ज्यादा से ज्यादा हमला करेंगे, ताकि वह विपक्षी आरोपों और एजेंडों का धारदार जवाब देकर जनता के बीच संदेश दे सकें कि मोदी सरकार बेहतर काम कर रही है।




  • जोर आजमाइश के बीच कैसे निकलेगा 2024 के लिए संकेत?




अविश्वास प्रस्ताव के जरिए लोकसभा में विपक्ष और मोदी सरकार की जोर आजमाइश में कहीं ना कहीं 2024 के लिए भी संकेत निकलता नजर आएगा। जिस तरह 2018 में अपने खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के समय मोदी ने 2023 में अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने की भविष्यवाणी की थी, वैसे ही इस बार वह कोई दांव खेलकर देश को फिर से अपनी सरकार की वापसी का संदेश देंगे। वे यह बताने की कोशिश करेंगे कि किस तरह पूरा विपक्ष मिलकर उन्हें घेर रहा है और वह अकेले ही इन सबसे मोर्चा ले रहे हैं, वहीं मात भी दे रहे हैं। 



मोदी सरकार दिखाएगी सबसे बड़े ‘समर्थन’ की तस्वीर और कांग्रेस को ‘आईना’



मोदी सरकार इस बार अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे ज्यादा मत हासिल करने की कोशिश भी करेगी। लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 का है, जबकि NDA सरकार के पास 330 सदस्य हैं। इनमें (बीजेपी-301, शिवसेना शिंदे-13, लोजपा (दोनों)-6, राकांपा-3, अपनादल -2, आजसू-1, अन्नाद्रमुक-1.एमएनएफ-1, एनपीपी-1, एनपीएफ-1, एलडीडीपी-1,एसकेएम-1) सांसदों का समर्थन है। अगर उसके पक्ष में वाईएसआरसापी का समर्थन मिलता है तो यह संख्या 353 सांसदों का समर्थन होगा। वहीं अगर बीजेडी ने अगर समर्थन दिया तो यह संख्या और ज्यादा होगी। विपक्षी गठबंधन 'I.N.D.I.A.' में शामिल दलों के सांसदों की संख्या 144 है। 



नेहरू काल में आया था पहला अविश्वास प्रस्ताव 



भारतीय संसद के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव पंडित जाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने रखा था। तब प्रस्ताव के पक्ष में 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे। नेहरू सरकार चलती रही थी। 



आजादी के 71 साल : 26 से अधिक बार रखे गए अविश्वास प्रस्ताव



देश अब 71 साल का हो चुका है। संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं। सिर्फ 1978 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी गई थी। मोरारजी देसाई के शासन काल में उनकी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे। पहले प्रस्ताव के दौरान घटक दलों में आपसी मतभेद होने से प्रस्ताव पारित नहीं हो सका, लेकिन दूसरी बार जैसे ही देसाई को हार का अंदाजा हुआ उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया। 



इंदिरा गांधी के खिलाफ सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव आए 



देश में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान लाए गए। उनके शासन काल में 15 से अधिक बार प्रस्ताव पेश किया गया। यही नहीं, लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों को भी तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा। 1993 में नरसिंह राव बहुत कम अंतर से अपनी सरकार को बचाने में कामयाब हुए थे। 



सबसे ज्यादा बार प्रस्ताव पेश करने का रिकार्ड ज्योतिर्मय बसु के नाम 



सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम दर्ज है। उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे। हालांकि उन्हें सभी में हार का सामना करना पड़ा था। 



अटल बिहारी वाजपेयी का रिकॉर्ड : एक वोट से गिर गई थी सरकार



प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्ष में रहते हुए दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किए। पहला प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ था तो दूसरा नरसिंह राव सरकार के विरुद्ध। प्रधानमंत्री बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने दो बार विश्वास मत हासिल करने का प्रयास किया, लेकिन दोनों बार वे असफल रहे। 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया, वहीं 1998 में वे एक वोट से हार गए। अविश्वास प्रस्ताव पर अब तक चार बार ध्वनि मत से फैसला हुआ है जबकि 20 बार इन पर मतविभाजन कराया जा चुका है।



क्या है विश्वास प्रस्ताव



जहां तक विश्वास प्रस्ताव का सवाल है, अब तक प्रधानमंत्रियों को दस बार ये मत लेने को कहा गया है। ऐसे मतों में पांच सफल रहे थे और पांच असफल रहे। 90 के दशक में विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच डी देवेगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल और अटल बिहारी बाजपेयी की सरकारें विश्वास प्रस्ताव हार चुकी हैं। 1979 में ऐसे ही एक प्रस्ताव के पक्ष में जरूरी समर्थन न जुटा पाने के कारण तत्काली प्रधानमंत्री चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था।



क्या है अविश्वास प्रस्ताव?



अविश्वास प्रस्ताव एक संसदीय प्रक्रिया है, जिसके तहत विपक्ष सरकार को चुनौती दे सकता है। अगर प्रस्ताव पास हो जाता है, तो सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है। यह प्रक्रिया इतनी सरल नहीं है। सरकार के खिलाफ खड़े होने वाले दलों को पहले नोटिस दाखिल करने समेत कई चरणों से गुजरना होता है। लोकसभा स्पीकर तय करेंगे कि नोटिस के बाद इसपर चर्चा की जानी है या नहीं। स्वीकार होने के बाद स्पीकर चर्चा के लिए दिन और समय तय करते हैं। लोकसभा में प्रस्ताव पर चर्चा होती है और सरकार को इसका जवाब देना होता है। 



यह है नियम



लोकसभा का कोई भी सदस्य अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है। प्रस्ताव को सदन के 50 सदस्यों का समर्थन मिलना बहुत जरूरी है। प्रस्ताव को सदन में अगर स्वीकार कर लिया जाता है तो चर्चा के लिए दिन और समय तय होता है। सरकार को बहुमत साबित करने के लिए भी कहा जा सकता है। अगर सरकार ऐसा करने में सरकार असफल होती है, तो इस्तीफे का दौर शुरू होता है।


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