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Photograph: (the sootr)
मुकेश शर्मा @ नई दिल्ली
भाजपा के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. करण सिंह ने देश के चीफ जस्टिस बीआर गवई से हिमालयन क्षेत्र के चार धाम प्रोजेक्ट में सड़कों को 12 मीटर तक चौड़ा करने की इजाजत देने वाले सुप्रीम कोर्ट के 2021 के आदेश पर पुनर्विचार करके वापस लेने की अपील की है। अपील करने वालों में इतिहासकार व पद्ममश्री शेखर पाठक, पद्मम भूषण लेखक रामचंद्र गुहा, आरएसएस के पूर्व विचारक केएन गोविंदाचार्य के साथ ही अनेक शिक्षाविद्, वैज्ञानिक, वर्तमान व पूर्व सांसद और उत्तराखंड के अनेक एक्टिविस्ट समेत करीब 57 लोग शामिल हैं।
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पुनर्विचार नहीं हुआ, तो अकल्पनीय बर्बादी
मुरली मनोहर जोशी और डॉ. करण सिंह ने सीजेआई बीआर गवई को लिखे इस पत्र में सड़क परिवहन व राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय के 2020 के सड़क चौड़ी करने के सर्कुलर को रद्द करने और पूर्व में तय 5.5 मीटर चौड़ी सड़कें बनाने की मांग की है। उनका कहना है कि इस साल हुई अकल्पनीय बर्बादी से साबित है​ कि उत्तराकाशी से गंगोत्री के प्राचीन रास्ते में सड़क बनाने से पहले से ही संवदेनशील एरिया में कभी ना पूरी होने वाली बर्बादी होगी।
पत्र में उन्होंने कहा कि यदि फैसले पर तत्काल पुर्नविचार नहीं किया तो इससे राष्ट्रीय नदी गंगा के उद्गम ​स्थल, जो कि हाल ही में हुए धाराली दुर्घटना वाले भागीरथी संवेदनशील जोन को भारी और भयंकर नुकसान होगा। इसलिए यह जरूरी है कि आमजन के जीवन और रोजगार के साथ ही सभी मौसम में सेना के मूवमेंट के लिए जरूरी है कि इकोलॉजिकल संवेदनशील इलाके की सीमाओं के अनुसार लंबे समय तक टिकने वाले विकास के लिए फैसले पर तत्काल पुर्नविचार आवश्यक है।
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हिमालयी एरिया के लिए नुकसानदायक फैसला
14 दिसंबर, 2021 को तत्कालीन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने रक्षा मंत्रालय की अपील को स्वीकार किया था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को ऋषिकेश से माना, ऋषिकेश से गंगोत्री और टनकपुर से पिथौरागढ़ तक तीन नेशनल हाईवे को चौड़ा करने की अनुमति दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एके सीकरी को प्रोजेक्ट और पर्यावरणीय जरूरतों की देखभाल करने का जिम्मा सौंपा था। चारधाम प्रोजेक्ट के तहत हिमालय में 825 किलोमीटर सड़कों को चौड़ा करना है। प्रोजेक्ट 53 पैकेज में बांटा है और 11 जून के प्रेस नोट के अनुसार 629 किलोमीटर में काम पूरा हो चुका है।
2018 के सरकार के सकुर्लर के विपरीत है यह
सीजेआई को पत्र में अवगत कराया है कि डीएल-पीएस रोड के साथ 10 मीटर चौड़ी डामर सड़क 12 मीटर चौड़ी सड़क बनाना सड़क परिवहन व राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय के 2018 के सर्कुलर के विपरीत है। इस सर्कुलर के अनुसार पहाड़ में 5.5 मीटर चौड़ी सड़क बनाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में कम चौड़ाई वाली सड़क बनाने को सही बताया था, लेकिन 2021 में इस फैसले को पलट दिया, जबकि 2021 का फैसला हिमालय के लिए बर्बादी का पैगाम साबित हुआ है।
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बन सकता है बर्बादी का कारण
पत्र में बताया है कि बदरीनाथ, गंगोत्री और पिथौरागढ़ के रणनीतिक रास्ते मानसून के मौसम में बंद हो जाते है, जबकि पूरे सालभर इन रास्तों में भूस्खलन का खतरा बना रहता है। चारधाम प्रोजेक्ट के कारण आए दिन भूस्खलन होने से यह महत्वपूर्ण रास्ते कई-कई दिनों तक बंद रहते हैं और इससे चाइना बॉर्डर तक सेना और अन्य मूवमेंट बाधित हो रहा है।
इस प्रोजेक्ट के कारण 3000 पेड़ कटेंगे और 17 हेक्टेयर जंगल का एरिया प्रभावित होगा, जबकि घाटी के ही दूसरे हिस्से में डीएल-पीएस स्टैंडर्ड के तहत सड़क चौड़ी करने के लिए 6000 देवदार के पेड़ काटे जाएंगे। उस घाटी में जहां हाल में हुए भूस्खलन में सैकड़ों जान गई हैं, वहां भूस्खलन को रोकने वाले पेड़ों को काटना न केवल अपराध है, बल्कि इससे स्थानीय नागरिकों और पर्यटकों का जीवन खतरे में पड़ गया है।
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हो चुका है 5000 करोड़ का नुकसान
पत्र में बताया है कि इस साल मानसून के दौरान उत्तराखंड में हुए भूस्खलन हादसों में करीब 5 हजार करोड़ का नुकसान हो चुका है। यह 2013 में केदारनाथ हादसे के बाद सबसे बड़ा नुकसान है। 2013 के हादसे में करीब 3.8 अरब डॉलर के नुकसान के साथ चार हजार करोड़ के निर्माणाधीन प्रोजेक्ट धराशायी हो गए थे और करीब एक अरब डॉलर की पर्यटन कमाई का नुकसान हुआ था। लगातार हो रहे हादसों से न केवल जान जा रही हैं, बल्कि भारी आर्थिक नुकसान भी हो रहा है। इस साल मानसून में हुए हादसों से निपटने के लिए उत्तराखंड सरकार ने 5,700 करोड़ रुपए की सहायता मांगी है।