31 दिसंबर को न रहें स्विगी, जोमैटो के भरोसे, हड़ताल पर रहेंगे गिग वर्कर्स

गिग वर्कर्स ने 31 दिसंबर 2025 को स्विगी, जोमैटो और ब्लिंकिट जैसे प्लेटफॉर्म्स पर हड़ताल का ऐलान किया है। वे ट्रांसपेरेंट पेमेंट और बेहतर सुरक्षा की मांग कर रहे हैं। हड़ताल का असर न्यू ईयर पर हो सकता है।

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Anjali Dwivedi
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पांच प्वाइंट में समझें पूरा मामला

  • गिग वर्कर्स ने 31 दिसंबर 2025 को स्विगी, जोमैटो जैसे प्लेटफॉर्म्स पर हड़ताल की घोषणा की है।
  • मुख्य मांगें: पारदर्शी पेमेंट, बेहतर दुर्घटना बीमा, सुरक्षा गियर, और तेज डिलीवरी सेवाओं का बंद होना।
  • संघ गिग वर्कर्स के लिए स्पष्ट नियम और सामाजिक सुरक्षा की मांग कर रही हैं।
  • हड़ताल का असर न्यू ईयर की पीक डिमांड पर पड़ सकता है।
  • हालांकि सरकार ने गिग वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी फंड बनाया है।

देशभर के फूड डिलीवरी और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वाले गिग वर्कर्स 31 दिसंबर 2025 को हड़ताल पर जाएंगे। इस हड़ताल में स्विगी, जोमैटो, जेप्टो, ब्लिंकिट, एमेजॉन और फ्लिपकार्ट के डिलीवरी पार्टनर्स शामिल होंगे। इनके यूनियनों का कहना है कि यह आंदोलन गिग इकॉनमी में काम करने वालों की बिगड़ती हालत के खिलाफ आवाज उठाएगा।

गिग वर्कर कहते किसे हैं?

गिग वर्कर ऐसे लोग होते हैं, जिनकी नौकरी स्थायी नहीं होती हैं। ये लोग आमतौर पर डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे Swiggy, Zomato, Blinkit के माध्यम से काम करते हैं। ये किसी एक कंपनी के बजाय अलग-अलग ग्राहकों या प्रोजेक्ट्स के लिए काम करते हैं। वे हर काम या प्रोजेक्ट के हिसाब से पैसे कमाते हैं। गिग वर्कर्स के पास आमतौर पर नौकरी की सुरक्षा और लाभ नहीं होते।

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गिग वर्कर्स क्या कहते हैं?

गिग वर्कर्स का कहना है कि त्योहारों और पीक डिमांड के समय वे लास्ट माइल डिलीवरी का अहम हिस्सा होते हैं, लेकिन उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनकी कमाई लगातार घट रही है। काम के घंटे अनियमित और लंबे हो गए हैं। साथ ही डिलीवरी की लोकेशंस कई बार असुरक्षित होती हैं। इसके अलावा, कई बार कंपनियों की ओर से उनकी आईडी बिना कारण ब्लॉक कर दी जाती है और बुनियादी सुविधाएं और सोशल सिक्योरिटी नहीं मिलती।

गिग वर्कर्स की प्रमुख मांगें क्या हैं?

  • ट्रांसपेरेंट पेमेंट सिस्टम, जिसमें काम के असली घंटे और खर्चों का सही हिसाब किया जाए।

  • बेहतर दुर्घटना बीमा और सुरक्षा गियर।

  • तेज डिलीवरी सेवाओं का अंत, जैसे कि 10 मिनट में डिलीवरी की सेवाएं, जो उनके लिए खतरनाक हो सकती हैं।

  • डेली काम और अनिवार्य आराम के समय मिले।

  • अकाउंट सस्पेंशन के बिना प्रक्रिया और एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए।

  • बिना किसी जरूरी कारण के अकाउंट सस्पेंडन किया जाए।
  • गिग वर्कर्स की समस्या सुनने के लिए एक प्रॉपर प्लेटफॉर्म बनाया जाए। 
  • इसके अलावा, वे हेल्थ इंश्योरेंस, दुर्घटना बीमा, और पेंशन जैसी सुविधाएं भी चाहते हैं।

गिग वर्कर्स की सरकार से अपील

गिग वर्कर्स संघ केंद्र और राज्य सरकारों से तुरंत बीच-बचाव की अपील कर रहे हैं। यूनियनें कहती हैं कि प्लेटफॉर्म कंपनियों के लिए स्पष्ट नियम और सख्त लेबर प्रोटेक्शन जरूरी है। साथ ही, गिग वर्कर्स के लिए सोशल सिक्योरिटी ढांचे को लागू करना भी जरूरी है।

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गिग वर्कर्स की अनुमानित संख्या (2024-2025)

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में गिग वर्कर्स (जैसे डिलीवरी बॉय, कैब ड्राइवर, फ्रीलांसर आदि) की सटीक संख्या को लेकर आधिकारिक आंकड़े थोड़े अलग हो सकते हैं, क्योंकि कई वर्कर ई-श्रम (e-Shram) जैसे पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं तो कई अभी भी असंगठित हैं।

नीति आयोग और सरकारी रिपोर्टों (2024-25 के अनुमानों) के अनुसार, इन राज्यों में गिग वर्कर्स की अनुमानित संख्या इस प्रकार है-

राज्यअनुमानित गिग वर्कर्स की संख्यामुख्य जानकारी
राजस्थान3 लाख से 4 लाखराजस्थान गिग वर्कर्स के लिए कानून (Gig Workers Act, 2023) बनाने वाला देश का पहला राज्य है। सरकारी अनुमानों के अनुसार यहां करीब 3 लाख से अधिक प्लेटफॉर्म-आधारित श्रमिक हैं।
मध्यप्रदेश1.5 लाख से 2.5 लाखइंदौर, भोपाल और ग्वालियर जैसे बड़े शहरों में ई-कॉमर्स और डिलीवरी सेवाओं के विस्तार के कारण यहां संख्या तेजी से बढ़ रही है।
छत्तीसगढ़50,000 से 1 लाखयहां रायपुर और भिलाई जैसे शहरी क्षेत्रों में गिग अर्थव्यवस्था केंद्रित है। ई-श्रम पोर्टल पर भी यहां के हजारों वर्कर्स रजिस्टर्ड हैं।

Source:Rajasthan Gig Workers Act - Gazette Notification

Source:e-Shram Dashboard

 गिग वर्कर्स की हड़ताल पर सरकार ने क्या कदम उठाया

हालांकि, इस हड़ताल के बीच सरकार ने गिग वर्कर्स को औपचारिक मान्यता देने की दिशा में एक कदम उठाया है। 21 नवंबर 2025 को लागू हुए कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी के तहत, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और एग्रीगेटर्स को अपने सालाना टर्नओवर का एक  से दो प्रतिशत एक डेडिकेटेड सोशल सिक्योरिटी फंड में जमा करना जरूरी किया गया है। हालांकि, गिग वर्कर्स का कहना है कि यह सिर्फ पहला कदम है और उन्हें और भी कई समस्याओं का समाधान चाहिए। ऑनलाइन फूड डिलीवरी | फूड डिलीवरी कंपनियां | फूड डिलीवरी बॉय | गिग वर्कर्स हड़ताल

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गिग वर्कर्स के हड़ताल का असर क्या होगा?

अगर यह हड़ताल बड़े पैमाने पर सफल रहती है, तो न्यू ईयर जैसे पीक डिमांड पीरियड्स में फूड डिलीवरी और ई-कॉमर्स सेवाओं पर बड़ा असर पड़ सकता है। यह एक बार फिर गिग इकॉनमी में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति और उनके अधिकारों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस को तेज कर सकता है। 

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गिग वर्कर्स को लेकर संसद में भी उठ चुका है मुद्दा

राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के नेता राघव चड्ढा ने बीते दिनों भारत की 'गिग इकोनॉमी' में काम करने वाले डिलीवरी एजेंटों के शोषण पर चिंता जताई थी। उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट का हवाला देकर बताया था कि कैसे एक ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट ने लगभग 15 घंटे काम और 28 ऑर्डर पूरे करके सिर्फ 762.57 रुपए कमाए, जो प्रति घंटे औसतन 52.01 रुपए है। 

चड्ढा ने इसे 'गिग इकोनॉमी की सफलता की कहानी' मानने से इनकार करते हुए कहा था कि यह ऐप्स और एल्गोरिदम के पीछे छुपा एक प्रणालीगत शोषण (systemic exploitation) है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि भारत कम वेतन और अत्यधिक बोझ वाले लोगों के सहारे डिजिटल अर्थव्यवस्था का निर्माण नहीं कर सकता। 

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