कुछ दिनों पहले यह संभावना जताई गई थी कि हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस के प्रीमियम पर जीएसटी में राहत मिल सकती है। इस पर अंतिम निर्णय 21 और 22 दिसंबर को होने वाली GST काउंसिल की बैठक में लिया जा सकता है।
फाइनेंस पर गठित स्थायी समिति ने लोकसभा और राज्यसभा में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बीमा प्रीमियम पर GST और टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (TDS) लगाने से आम आदमी के लिए स्वास्थ्य और जीवन बीमा का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है। समिति का सुझाव है कि इस पर से तुरंत राहत दी जाए।
अमेरिका में बीमा पर GST के प्रतिकूल परिणाम
सितंबर में GST काउंसिल की बैठक में बीमा प्रीमियम पर GST हटाने पर सहमति बनी थी, लेकिन इसका औपचारिक फैसला 21 और 22 दिसंबर की बैठक में होने की संभावना है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि अमेरिका में बीमा प्रीमियम पर जीएसटी लगाने से नकारात्मक परिणाम सामने आए थे, जिसके बाद यूरोपीय संघ (European Union) और कनाडा ने बीमा उत्पादों को जीएसटी और वैट से बाहर रखा है।
सरकार के फैसले पर सवाल
स्थायी समिति ने यह भी सवाल उठाया कि सरकार के फैसलों से निजी बीमा कंपनियों को फायदा हो रहा है, जबकि सार्वजनिक बीमा कंपनियों को नुकसान हो रहा है। समिति का कहना है कि सरकार को स्वास्थ्य बीमा क्षेत्र में निजी कंपनियों के पक्ष में फैसले लेने से बचना चाहिए।
केंद्र का कहना: GST हटाना आसान नहीं
जीएसटी टैक्स अपडेट: बीमा कंपनियों के कारोबार में बीमा एजेंट मुख्य कड़ी होते हैं। सरकारी कंपनियां जब बीमा एजेंटों को कमीशन या अन्य लाभ देती हैं तो वे उस पर दो प्रतिशत टीडीएस काटती हैं।
इसके अलावा अगर बीमाकर्ता को बोनस या क्लेम दिया जाता है तो 2.50 लाख रुपए से ज्यादा होने पर दो फीसदी टीडीएस काटा जाता है। इन दो प्रतिशत में से एक प्रतिशत केंद्र सरकार को और एक प्रतिशत राज्य सरकार को जाता है, जबकि यह रूल निजी कंपनियों के लिए नहीं है। इस पर केंद्र सरकार का कहना है कि बीमा प्रीमियम पर GST हटाना आसान नहीं होगा, क्योंकि इससे सरकार को 2023-24 में लगभग ₹16,000 करोड़ का रेवेन्यू मिला है।
प्रीमियम में बढ़त की संभावना
बीमा ब्रोकर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सुमित बोह ने मीडिया से कहा था कि यदि GST में राहत दी जाती है तो यह सीनियर सिटीजन के लिए वित्तीय राहत प्रदान करेगा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि GST पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया तो बीमा कंपनियों के ऑपरेशनल खर्च में बढ़त हो सकती है, जिससे प्रीमियम में बढ़ोतरी हो सकती है।
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