उत्तर प्रदेश में हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने हलाल सर्टिफिकेट को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि केवल मांस उत्पादों के लिए नहीं, बल्कि सीमेंट, आटा, बेसन, पानी की बोतल और अन्य गैर-मांस उत्पादों के लिए भी हलाल सर्टिफिकेट जारी किए जा रहे हैं, जिनसे संबंधित कंपनियां लाखों करोड़ों रुपये कमा रही हैं। तुषार मेहता ने यह भी सवाल किया कि गैर-इस्लामिक मान्यताओं वाले उपभोक्ताओं को अतिरिक्त खर्च क्यों उठाना पड़े। मामले की अगली सुनवाई मार्च में होगी।
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हलाल सर्टिफिकेट का विवाद
सुप्रीम कोर्ट में तुषार मेहता ने हलाल सर्टिफिकेट के इस्तेमाल पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि हलाल सर्टिफिकेट केवल मांस उत्पादों तक सीमित नहीं है, बल्कि सीमेंट, आटा और यहां तक कि पानी की बोतलों तक को हलाल सर्टिफाइड किया जा रहा है, जिससे इन उत्पादों की कीमत में वृद्धि होती है।
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क्या यह एक जीवनशैली से जुड़ा मामला है?
याचिकाकर्ता के वकील एम आर शमशाद ने दलील दी कि हलाल सर्टिफिकेशन जीवनशैली से जुड़ा मुद्दा है, न कि सिर्फ मांस उत्पादों तक सीमित। उन्होंने कहा कि बहुत से उत्पादों में प्रिजर्वेटिव के रूप में एल्कोहल का इस्तेमाल होता है, जिन्हें गैर-हलाल माना जा सकता है।
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यूपी सरकार का नोटिफिकेशन और एफआईआर
यूपी सरकार द्वारा 18 नवंबर 2023 को जारी की गई नोटिफिकेशन के तहत हलाल सर्टिफिकेट वाले खाद्य उत्पादों के निर्माण, बिक्री, वितरण और भंडारण पर रोक लगा दी गई थी। याचिकाकर्ता इस नोटिफिकेशन और हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली संस्थाओं के खिलाफ एफआईआर को खारिज करने की मांग कर रहे हैं।
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आगामी सुनवाई और समयसीमा
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और यूपी सरकार से हलफनामे पर जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं को चार सप्ताह का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई मार्च के आखिरी सप्ताह में होगी, जब यह तय किया जाएगा कि क्या राज्य सरकार द्वारा जारी की गई नोटिफिकेशन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है या नहीं।