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Photograph: (the sootr)
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण मामला सुनते हुए बीमा पॉलिसी को लेकर दिशा-निर्देश दिए हैं। आयोग ने कहा कि बीमाधारक पर यह जिम्मेदारी है कि वह बीमा पॉलिसी लेने के दौरान पहले से मौजूद हर बीमारी का खुलासा करे।
इस निर्णय से यह साफ हो गया है कि बीमाधारक पर यह जिम्मेदारी है कि वह बीमा कंपनी को सही और सटीक जानकारी प्रदान करें। ताकि बीमाकर्ता कंपनी जोखिम का सही मूल्यांकन कर सके। इस मामले मे आयोग ने फरियादी की याचिका खारिज कर दी।
यह है पूरा मामला
यह मामला एक जीवन बीमा पॉलिसी के दावे से संबंधित था, जिसमें बीमाधारक के पति, जो एक जीवन बीमा पॉलिसी के नॉमिनी थे, की मृत्यु हो गई थी। शिकायतकर्ता ने जीवन बीमा निगम (LIC) से बीमा क्लेम किया था, लेकिन LIC ने यह कहते हुए क्लेम को खारिज कर दिया कि बीमाधारक ने पहले से मौजूद गुर्दे की पथरी के बारे में जानकारी छुपाई थी। बीमाधारक ने यह दावा किया कि बीमित व्यक्ति को गुर्दे की पथरी का पता उसकी मृत्यु से कुछ महीने पहले ही चला था, और यह मृत्यु के कारण से कोई संबंध नहीं था।
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बीमाकर्ता कंपनी का तर्क
दूसरी ओर, बीमाकर्ता कंपनी जीवन बीमा निगम ने यह तर्क दिया कि बीमाधारक ने पॉलिसी आवेदन में गुर्दे की बीमारी के बारे में गलत जानकारी दी थी। उन्होंने इस मामले को भौतिक गैर-प्रकटीकरण (non-disclosure) के रूप में दर्ज किया। बीमाकर्ता ने कहा कि पहले से मौजूद गुर्दे की पथरी को जानबूझकर छिपाया गया था, जिसके कारण बीमा कंपनी को जोखिम का सही मूल्यांकन करने का अवसर नहीं मिला।
राष्ट्रीय आयोग ने किया फैसले को खारिज
राष्ट्रीय आयोग ने उपभोक्ता के पक्ष में दिए राज्य आयोग के फैसले को खारिज करते हुए कहा कि राज्य आयोग ने बीमा अनुबंधों में 'अत्यंत सद्भावना' (uberrimae fidei) के सिद्धांत को गलत तरीके से लागू किया। आयोग ने कहा कि बीमाधारक को बीमित व्यक्ति की पहले से मौजूद स्थिति के बारे में पूरी जानकारी देनी चाहिए थी। इसके अलावा, आयोग ने यह भी कहा कि केवल एक अस्पताल के रिकॉर्ड पर भरोसा करके बीमाधारक के दावे को सही ठहराना सही नहीं था, क्योंकि उक्त रिकॉर्ड में स्पष्ट रूप से बीमारी के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी।
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बीमे में non-disclosure का महत्व
non-disclosure यानी पहले से मौजूद बीमारियों या स्थितियों को छिपाना, बीमा पॉलिसी में एक गंभीर मुद्दा है। जब बीमाधारक बीमाकर्ता को सही जानकारी नहीं देता, तो यह बीमाकर्ता को जोखिम का सही मूल्यांकन करने से रोकता है और इससे बीमा क्लेम रिजेक्ट हो सकते हैं। बीमाकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि वह बीमाधारक से पूरी जानकारी प्राप्त करे, ताकि वह अपनी नीतियों को उचित रूप से तैयार कर सके। बीमा करवाते समय बीमारियों को छिपाने से आगे चलकर उपभोक्ता को क्लेम के समय दिक्कतें आ सकती हैं।
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उपभोक्ता आयोग
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