NBFC की हालत खराब, कर्ज में डूबा पावर सेक्टर... क्या भारत पर मंदी का खतरा?

NBFCs (Non-Banking Financial Companies) की खराब हालत और पावर सेक्टर पर बढ़ता कर्ज, भारत की अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरे का संकेत है। IMF ने यह चेतावनी दी है कि इन कंपनियों के कर्ज न चुका पाने से मंदी का खतरा बढ़ सकता है। 

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Jitendra Shrivastava
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nbfc-crisis-power-sector Photograph: (thesootr)

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भारत में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) की हालत खराब हो रही है, खासकर उन कंपनियों का जो पावर सेक्टर (Power Sector) को बड़ा कर्ज दे चुकी हैं। IMF ने इस स्थिति को गंभीर माना है, क्योंकि यदि ये कंपनियां अपना कर्ज नहीं चुका पातीं, तो भारतीय वित्तीय सिस्टम (Financial System) को भी भारी नुकसान हो सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पावर सेक्टर पर बढ़ते कर्ज, और NBFCs की कमजोरी, भारत में मंदी (Recession) का खतरा पैदा कर सकती है।

NBFCs का संकट

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (NBFCs) वे संस्थाएं हैं, जो बैंक के समान वित्तीय सेवाएं प्रदान करती हैं, लेकिन ये बैंक नहीं होतीं। ये कंपनियां कर्ज देती हैं, बीमा सेवाएं प्रदान करती हैं, और इंवेस्टमेंट के लिए फंड इकट्ठा करती हैं। हालाँकि, NBFCs की हालत अब खराब हो रही है, क्योंकि उन्होंने पावर सेक्टर को भारी कर्ज दिया है। रिपोर्ट के अनुसार पावर सेक्टर को NBFCs से लिया गया 63% कर्ज तीन प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंसिंग कंपनियों (Infrastructure Financing Companies) से आया है।

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पावर सेक्टर पर कर्ज का असर

भारत में बिजली कंपनियों का कर्ज संकट गहरा हो सकता है। यदि ये कंपनियां अपना कर्ज चुकाने में विफल रहती हैं, तो इसके नकारात्मक प्रभाव NBFCs, बैंकों, और म्यूचुअल फंड्स पर पड़ सकते हैं। ये संस्थाएं पावर सेक्टर में निवेश कर चुकी हैं, और कर्ज की वापसी न होने पर इनकी आय में कमी हो सकती है।

मंदी का खतरा और बैंकों की स्थिति

IMF की रिपोर्ट में मंदी का खतरा भी जताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार अगर भारत में मंदी आती है और महंगाई बढ़ती है, तो बैंकिंग सेक्टर को भी मुश्किलें हो सकती हैं। खासकर सरकारी बैंक (PSBs) CAPITAL ADEQUACY RATIO (CAR) के तहत आवश्यक पैसों की कमी का सामना कर सकते हैं।

सरकारी वित्तीय संस्थाओं की स्थिति

भारत के सरकारी वित्तीय संस्थाओं का दबदबा वित्तीय व्यवस्था में कायम है, लेकिन इसकी स्थिति कुछ हद तक सुधरी है। IMF के मुताबिक भारत के सरकारी बैंकों ने पिछले कुछ वर्षों में कम जोखिम वाली रणनीतियां अपनाई हैं, फिर भी सरकारी बॉन्ड्स (Government Bonds) में निवेश करने से इनकी स्थिति कमजोर हो सकती है।

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क्या म्यूचुअल फंड्स पर असर पड़ेगा

NBFCs को हुए नुकसान का सीधा असर म्यूचुअल फंड्स (Mutual Funds) पर भी पड़ सकता है। अगर NBFCs के कर्ज में चूक होती है, तो म्यूचुअल फंड्स में निवेशकों को घाटा हो सकता है, जिससे बाजार में गिरावट हो सकती है। यह स्थिति कर्ज की समस्याओं को बढ़ा सकती है और कंपनियों के संचालन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

भारत के बैंकों की परीक्षा

IMF ने भारतीय बैंकों की एक टेस्टिंग की है। यह देखा गया कि प्राइवेट और विदेशी बैंक इस समय आर्थिक गिरावट का सामना करने के लिए ज्यादा तैयार हैं, जबकि सरकारी बैंकों को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सरकार ने बैंकों को कैपिटल एडिक्वेसी रेश्यो (CAR) पर ध्यान देने के लिए निर्देशित किया है।

FAQ- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

NBFC क्या है और इसका क्या काम है?
NBFC (Non-Banking Financial Company) एक ऐसी कंपनी होती है, जो बैंक की तरह वित्तीय सेवाएं देती है, लेकिन यह बैंक नहीं होती। यह कंपनियां कर्ज देती हैं, शेयर खरीदती हैं और बीमा जैसी सेवाएं प्रदान करती हैं।
भारत के पावर सेक्टर पर कर्ज का असर क्या होगा?
अगर पावर सेक्टर को दिया गया कर्ज नहीं चुकाया जाता है, तो इससे NBFCs, बैंकों और म्यूचुअल फंड्स को नुकसान हो सकता है। इससे भारतीय वित्तीय सिस्टम में गहरे संकट का सामना करना पड़ सकता है।

FAQ- अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

NBFC क्या है और इसका क्या काम है?
NBFC (Non-Banking Financial Company) एक ऐसी कंपनी होती है, जो बैंक की तरह वित्तीय सेवाएं देती है, लेकिन यह बैंक नहीं होती। यह कंपनियां कर्ज देती हैं, शेयर खरीदती हैं और बीमा जैसी सेवाएं प्रदान करती हैं।
भारत के पावर सेक्टर पर कर्ज का असर क्या होगा?
अगर पावर सेक्टर को दिया गया कर्ज नहीं चुकाया जाता है, तो इससे NBFCs, बैंकों और म्यूचुअल फंड्स को नुकसान हो सकता है। इससे भारतीय वित्तीय सिस्टम में गहरे संकट का सामना करना पड़ सकता है।
क्या भारत में मंदी का खतरा है?
IMF ने यह चेतावनी दी है कि अगर मंदी आती है, तो यह भारतीय बैंकों और वित्तीय संस्थाओं के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है। अगर महंगाई बढ़ती है, तो यह अर्थव्यवस्था को धीमा कर सकता है और बैंकों के लिए पैसा जुटाना मुश्किल हो सकता है।

 

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