2 जून आज ... क्यों फेमस है 'दो जून की रोटी' की कहावत , जानें क्या हैं इसके मायने

शनिवार से जून का महीना शुरू हो गया है। आज रविवार दो जून 2024 है। इस तारीख को लेकर एक कहावत सालों से चली आ रही है जो खास कहावत है 2 जून की रोटी.. क्या आप जानते हैं आखिर क्यों यह कहावत फेमस है, यदि नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते हैं इसका मतलब

Advertisment
author-image
Vikram Jain
New Update
Roti June 2 famous proverb Bhopal News
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

आज 2 जून है... और जून आते ही सोशल मीडिया पर ‘दो जून की रोटी’ वाले जोक्स और कहावतें जमकर वायरल होने लगती हैं। आपने कभी इस महीने के नाम पर ‘दो जून की रोटी’ के बारे में सुना है। जो हर साल 2 तारीख को ट्रेंड होने लगता है तो वहीं पर सबके मन में ख्याल आता है कि, आखिर इसका क्या मतलब होता है। आज हम जानते है ये कहावत क्यों बोली जाती है।

आखिर क्या होता है इसका मतलब

जी हां, दो जून यह वही जून है जिसका इस्तेमाल आप अक्सर अपनी कहावत (दो जून की रोटी) में करते हैं। इसमें से कुछ लोग बताते हैं कि आखिर में दो जून की रोटी कमाना कितना मुश्किल है तो कुछ कहते हैं कि वे बहुत भाग्यशाली हैं कि वे दो जून की रोटी खा पा रहे हैं। हर कोई इसका अलग-अलग ढंग से इस्तेमाल करता है। हम आपको बताते हैं इसका मतलब और बताते हैं कि इसकी शुरुआत कहां से हुई। 

दरअसल, दो जून की रोटी से  मतलब दो वक्त के खाने से होता है। जिन लोगों को दिन में दो टाइम का खाना मिलता है वह खुशनसीब हैं क्योंकि उन्हें 'दो जून की रोटी' मिल रही है। वैसे इस बारे में अब तक यह सही से नहीं पता कि इस मुहावरे की शुरुआत कहां से हुई है लेकिन इसका शाब्दिक अर्थ जरूर सामने है। जानकारों के अनुसार, यह कहावत कोई साल दो साल या फिर दस बीस साल से नहीं कही सुनी जा रही.  यह बात हमारे पूर्वज बीते करीब 600 साल से प्रयोग कर रहे हैं।

ये खबर भी पढ़ें... Ladli bahana Yojana : 1.29 करोड़ लाड़ली बहनों के लिए जरूरी खबर, जानें कब आएगी 13वीं किस्त

ये खबर भी पढ़ें... दूसरे युवक के साथ बनाई रील तो बीवी को मार डाला, शौहर बोला जानवर खा जाएंगे सोचकर कर दिए टुकडे़

जून का मतलब वक्त यानी समय

अवधी भाषा में ‘जून’ का मतलब ‘वक्त’ यानी समय से होता है, जिसे वे दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर कहते थे। इस कहावत को इस्तेमाल करने का मतलब यह होता है कि इस महंगाई और गरीबी के दौर में दो टाइम का भोजन भी हर किसी को नसीब नहीं होता। इंसान की जो सबसे आम जरूरत है, वह भोजन ही है। खाने के लिए ही इंसान क्या नहीं करता है। नौकरी, बिजनेस करने वाले से लेकर गरीब तक, हर शख्स भोजन के लिए ही काम करता है। हिंदी बेल्ट के इलाकों में इस  2 जून की रोटी की कहावत का खूब इस्तेमाल किया जाता है। 

ये खबर भी पढ़ें...मृत व्यक्ति का SPERM भी दे सकता है नया जीवन, Bhopal AIIMS में नया शोध

ये खबर भी पढ़ें... नए नियम के चलते आम श्रद्धालुओं के लिए आसान नहीं भस्म आरती

पूर्वी यूपी में दो जून कहावत काफी मशहूर

उत्तर भारत में खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में दो जून काफी मशहूर है। क्योंकि इस भाषा का इस्तेमाल इसी भाषा में होता है। यह कहावत तब प्रचलन में आई जब मुंशी प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद जैसे बड़े साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में इसका इस्तेमाल किया। प्रेमचंद की कहानी 'नमक का दरोगा' में इसका जिक्र किया गया है। इतिहासकारों और जानकारों का कहना है कि जून गर्मी का महीना होता है। इस महीने अक्सर सूखा पड़ता है। जिसकी वजह से चारे-पानी की कमी हो जाती है।  इस समय किसान बारिश के इंतजार और नई फसल की तैयारी के लिए तपते खेतों में काम करता है। इस चिलचिलाती धूप में खेतों में उसे ज्यादा मेहनत करना पड़ता है। इन्हीं हालातों में 'दो जून की रोटी' प्रचलन में आई होगी। 

thesootr links

सबसे पहले और सबसे बेहतर खबरें पाने के लिए thesootr के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें। join करने के लिए इसी लाइन पर क्लिक करें

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

2 जून की रोटी, दो जून की रोटी की कहावत, भोपाल न्यूज, 2 June ki roti, Proverb of 2 june ki roti, Bhopal News

भोपाल न्यूज Proverb of 2 june ki roti Bhopal News 2 जून की रोटी की कहावत 2 जून की रोटी