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DELHI. देशभर में तेजी से बढ़ते Online Betting और गेमिंग एप्स अब सुप्रीम कोर्ट की नजर में आ गए हैं। अदालत ने इन एप्स पर रोक लगाने और उनकी वैधानिकता को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि ये ऐप्स युवाओं को जुए और सट्टेबाजी की लत में धकेल रहे हैं। इससे न केवल आर्थिक बल्कि मानसिक हानि भी हो रही है।
26 नवंबर होगी मामले की अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की डिविजनल बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने यह मामला उन्हीं याचिकाओं के साथ टैग किया है। इनमें ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन और रेगुलेशन एक्ट 2025 को चुनौती दी गई है। अब अगली सुनवाई 26 नवंबर 2025 को तय की गई है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि यदि कोई टूर्नामेंट या खेल पूर्णतः कौशल आधारित है। उसमें जुआ या सट्टे का तत्व नहीं है, तो उसे प्रतिबंधित श्रेणी में नहीं माना जाएगा।
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याचिका में सुप्रीम कोर्ट से की गई यह मांग
याचिका Centre for Accountability Systemic Change और अन्य संस्थाओं द्वारा दाखिल की गई है। इसमें कहा गया है कि देशभर में करीब 2,000 से अधिक ऑनलाइन ऐप्स सक्रिय हैं। जो गेमिंग के नाम पर अवैध बेटिंग प्लेटफॉर्म के रूप में काम कर रहे हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि केंद्र सरकार आईटी एक्ट, 2000 की धारा 69A के तहत ऐसे ऐप्स को तत्काल ब्लॉक करे।
आरबीआई, एनपीसीआई और यूपीआई सर्विस प्रोवाइडर्स को निर्देश दिया गया है। वे अवैध प्लेटफॉर्म्स पर किसी भी प्रकार का लेन-देन न करें।
सभी राज्य सरकारों को तमिलनाडु की तरह सख्त कानून बनाना चाहिए। इन अपराधों को MCOCA (महाराष्ट्र ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) की श्रेणी में शामिल किया जाए।
ऑनलाइन गेमिंग एक्ट 2025-क्या है इसके प्रावधान
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में पारित ऑनलाइन गेमिंग प्रमोशन और रेगुलेशन एक्ट 2025 में रियल-मनी गेम्स (जहां खिलाड़ी पैसे लगाकर जीतते हैं) पर प्रतिबंध का प्रावधान किया गया है।
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अधिनियम के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं -
- बिना अनुमति चलने वाले गेमिंग प्लेटफॉर्म्स पर तीन साल तक की सजा और एक करोड़ रुपए तक जुर्माना।
- विज्ञापन देने वालों पर दो साल की सजा और 50 लाख तक जुर्माना।
- अधिनियम देश के भीतर और विदेश में स्थित उन सभी ऑनलाइन गेमिंग सेवाओं पर लागू होगा जो भारत में संचालित हैं।
- सरकार को ऐसे प्लेटफॉर्म्स को ब्लॉक करने और वित्तीय लेनदेन रोकने का अधिकार दिया गया है।
ऑनलाइन गेमिंग का बढ़ता खतरा और सामाजिक असर
याचिका में यह भी कहा गया है कि इन ऐप्स ने युवाओं को जुए की लत में फंसा दिया है। कई मामलों में छात्र और बेरोजगार युवा कर्ज में डूब चुके हैं। सामाजिक संगठनों का कहना है कि ये ऐप्स गेमिंग के नाम पर गैम्बलिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। वहीं, उद्योग जगत का तर्क है कि सख्त प्रतिबंध से देश में ई-स्पोर्ट्स और गेमिंग स्टार्टअप्स को नुकसान पहुंचेगा।
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अब क्या होगी आगे की कार्यवाही
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस अधिनियम और ऑनलाइन गेमिंग पर जारी किए गए दिशा-निर्देशों का विस्तृत विवरण मांगा है। सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि कौन-से गेम्स को “रियल मनी गेम्स” की श्रेणी में रखा गया है। कौन से खेल केवल मनोरंजन या प्रतियोगिता आधारित माने जाएंगे।
26 नवंबर को होने वाली अगली सुनवाई में यह तय हो सकता है कि क्या इन एप्स पर पूर्ण प्रतिबंध लागू होगा या नियमों में कुछ रियायत दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई भारत के डिजिटल मनोरंजन उद्योग के लिए अहम है। यह कदम युवाओं को लत और धोखाधड़ी से बचाने की दिशा में है। यह सवाल भी उठता है कि "गेमिंग" और "गैम्बलिंग" की सीमाएं कहां तय होंगी।
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