दिल्ली-NCR में प्रदूषण कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा है। कोर्ट ने इस दौरान बताया कि पटाखों के बैन से प्रदूषण 30 प्रतिशत तक कम हुआ है। हालांकि, एक याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दावा किया कि पटाखों में सल्फर (sulfur) होने से हवा शुद्ध होती है, और यह तर्क सुनकर जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइंया ने उन्हें फटकार लगाई।
याचिकाकर्ता का दावा: सल्फर से शुद्ध होती है हवा
याचिकाकर्ता का कहना था कि पटाखों में मौजूद सल्फर से हवा को शुद्ध किया जा सकता है, लेकिन कोर्ट ने उनके इस तर्क को नकारते हुए कहा कि क्या आप NEERI (National Environmental Engineering Research Institute) से भी बड़े एक्सपर्ट हैं?" इसके बाद, जजों ने कहा कि यह याचिकाकर्ता की पहली ऐसी हरकत थी, इसलिए उन पर जुर्माना नहीं लगाया जा रहा था।
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पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों की गुणवत्ता पर भी चर्चा की। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीन पटाखे अन्य पटाखों की तुलना में केवल 30 प्रतिशत कम प्रदूषण करते हैं। इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट इन तर्कों से संतुष्ट नहीं हुआ और पूरे साल के लिए पटाखों पर लगे बैन को बरकरार रखा।
क्या पटाखों पर बैन विदेशियों के दबाव में लगाया जा रहा है?
एक याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि विदेशी एजेंसियों के इशारे पर पटाखों पर रोक लगाई जा रही है। इस पर जजों ने कहा कि यह एक ध्रुवीकरण (Polarization) की रणनीति का हिस्सा है और इसे खारिज कर दिया।
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सुप्रीम कोर्ट का मानवाधिकार पर विचार: प्रदूषण और स्वास्थ्य
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वायु प्रदूषण (air pollution) किस तरह से लोगों के स्वास्थ्य पर असर डालता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। कोर्ट ने बताया कि अधिकांश लोग जो सड़कों पर काम करते हैं, वे प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 21 का हवाला देते हुए कहा कि हर नागरिक को एक स्वस्थ वातावरण (Healthy Environment) में रहने का अधिकार है।