टाटा ग्रुप में लीडरशिप बदलना चाहते है नोएल टाटा!, सीईओ चंद्रशेखरन से बढ़ी दूरियां, जानें क्या है पूरा मामला

नोएल टाटा द्वारा प्रस्तावित लीडरशिप फ्रेमवर्क में चंद्रशेखरन के तीसरे कार्यकाल के खिलाफ विरोध, जानिए क्या है टाटा ग्रुप की लीडरशिप में चल रहे बदलावों के पीछे की कहानी।

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Sanjay Dhiman
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TATA Group CEO

Photograph: (the sootr)

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टाटा ग्रुप, जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित और सफल व्यापार समूहों में से एक है, पिछले कुछ समय से नेतृत्व परिवर्तन की चर्चा में रहा है। रतन टाटा (Ratan Tata) के बाद नोएल टाटा ने टाटा ट्रस्ट्स का नेतृत्व किया और उसके बाद नटराजन चंद्रशेखरन (Natarajan Chandrasekaran) ने 2017 में टाटा संस के चेयरमैन का पद संभाला।

इन तीनों ने टाटा ग्रुप को अपने-अपने तरीके से आगे बढ़ाया, लेकिन अब यह सवाल उठ रहा है कि टाटा ग्रुप का नेतृत्व किस दिशा में जाएगा। खासकर अब जब नोएल टाटा ने टाटा ग्रुप के लिए एक नया लीडरशिप फ्रेमवर्क पेश किया है।  उनके इस प्लान में 2027 के बाद चंद्रशेखरन के लिए चेयरमैन पद पर रहना कठिन हो जाएगा, लेकिन कुछ ट्रस्टी इससे सहमत नहीं है। 

टाटा ग्रुप में नया लीडरशिप फ्रेमवर्क

नोएल टाटा, जो कि टाटा ट्रस्ट्स के अध्यक्ष हैं, ने हाल ही में एक नया लीडरशिप फ्रेमवर्क पेश किया है, जिसमें उन्होंने टाटा संस के चेयरमैन पद को तीन अलग-अलग पदों—सीईओ (CEO), एमडी (MD), और डिप्टी सीईओ (Deputy CEO)—में विभाजित करने का सुझाव दिया है। उनका मानना है कि इस मॉडल से टाटा ग्रुप के नेतृत्व में और स्पष्टता और प्रभावशीलता आएगी।

नोएल टाटा का यह भी कहना है कि चंद्रशेखरन को 2027 के बाद टाटा संस के चेयरमैन पद पर बने रहने का अवसर नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि उनकी आयु उस समय 65 साल के पार हो जाएगी, जोकि रिटायरमेंट की सामान्य उम्र मानी जाती है।  

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चंद्रशेखरन की उपलब्धियां और ग्रुप में योगदान

टाटा ग्रुप सीईओ चंद्रशेखरन के कार्यकाल में टाटा ग्रुप ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं। फरवरी 2017 में जब उन्होंने टाटा संस के चेयरमैन का पद संभाला, तब उन्होंने 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज को घटाया और टाटा स्टील, टाटा मोटर्स जैसे प्रमुख ग्रुप कंपनियों को लाभ में लाया। उनके नेतृत्व में, टाटा ग्रुप ने डिजिटल, एविएशन और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्र में भी कदम रखा।

चंद्रशेखरन के नेतृत्व में टाटा ग्रुप का राजस्व और लाभ में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। खासकर एयर इंडिया की खरीदारी और "वन टाटा" रणनीति को लागू करने के बाद ग्रुप की छवि और व्यवसाय में नया जोश आया। चंद्रशेखरन ने सेमीकंडक्टर और बैटरी गीगा-फैक्ट्रियों जैसे क्षेत्रों में भी निवेश किया, जिससे टाटा ग्रुप ने नए व्यवसायों में कदम रखा। 

टाटा ग्रुप में नोएल टाटा और चेयरमैन चंद्रशेखरन के मामले को

ऐसे समझें 

  • नोएल टाटा ने टाटा ग्रुप के लिए नया लीडरशिप फ्रेमवर्क पेश किया, जिसमें चेयरमैन की भूमिका को तीन पदों (सीईओ, एमडी, डिप्टी सीईओ) में विभाजित करने का सुझाव दिया है।
  • नोएल टाटा चाहते हैं कि चंद्रशेखरन 2027 के बाद टाटा संस के चेयरमैन पद पर न बने रहें, जबकि कुछ ट्रस्टी इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं और चंद्रशेखरन को तीसरा कार्यकाल देने की मांग कर रहे हैं।
  • चंद्रशेखरन ने 2017 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद संभालने के बाद कर्ज घटाने, लाभ बढ़ाने, और एयर इंडिया जैसी प्रमुख संपत्तियों की खरीदारी की।
  • उनके कार्यकाल में टाटा ग्रुप ने डिजिटल, एविएशन, और सेमीकंडक्टर जैसे नए क्षेत्रों में निवेश किया और "वन टाटा" रणनीति को लागू किया।
  • टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी चाहते हैं कि चंद्रशेखरन को तीसरे कार्यकाल के लिए भी मौका दिया जाए, हालांकि उनका रिटायरमेंट उम्र 65 साल होने वाली है।

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क्या चाहते हैं ट्रस्टी?

टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी, विशेषकर जो पुराने सदस्य हैं, नोएल टाटा के इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं। उनका कहना है कि चंद्रशेखरन को 2027 के बाद भी तीसरा कार्यकाल दिया जाए। ट्रस्टी का यह भी मानना है कि चंद्रशेखरन ने टाटा ग्रुप को जो दिशा दी है, वह बहुत सफल रही है और उनके नेतृत्व में ग्रुप को और अधिक सफलता मिलेगी। ट्रस्टी यह भी चाहते हैं कि चंद्रशेखरन को अपने कार्यकाल में कोई बदलाव न हो। 

चंद्रशेखरन के साथ क्या आने वाला है?

चंद्रशेखरन की लीडरशिप में टाटा ग्रुप को कई नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया गया है। अब यह देखना होगा कि क्या नोएल टाटा के नए लीडरशिप फ्रेमवर्क को लागू किया जाएगा या चंद्रशेखरन को एक और कार्यकाल का मौका मिलेगा। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी इस बदलाव के खिलाफ हैं और वे चाहते हैं कि चंद्रशेखरन को तीसरा कार्यकाल मिले। 

क्या बदलाव की जरूरत है?

कई लोगों का मानना है कि टाटा ग्रुप के लिए एक नया लीडरशिप फ्रेमवर्क जरूरी है, क्योंकि ग्रुप को अब और अधिक पेशेवर और स्पष्ट नेतृत्व की जरूरत है। इस फ्रेमवर्क के लागू होने से टाटा ग्रुप के संचालन में और अधिक पारदर्शिता और प्रभावशीलता आ सकती है। हालांकि, यह तय करना अभी बाकी है कि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलेगी या नहीं।

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