उत्तराखंड टेंडर विवाद : टूरिज्म प्रोजेक्ट के लिए तीन कंपनियों ने लगाई बोली, सभी के मालिक बाबा रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण

रामदेव के सहयोगी और पतंजलि के सह-संस्थापक आचार्य बालकृष्ण को उत्तराखंड के जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट में प्रमुख पर्यटन टेंडर मिला। तीनों बोली लगाने वाली कंपनियों में उनका प्रभुत्व विवादों की वजह बना है। पढ़िए पूरा मामला और विशेषज्ञों की राय।

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (thesootr)

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उत्तराखंड टेंडर विवाद: उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने दिसंबर 2022 में मसूरी के पास जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट में मसूरी एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा टेंडर निकाला। इस प्रोजेक्ट के लिए तीन कंपनियों ने बोली लगाई, जिनमें से सभी कंपनियों के नियंत्रक शेयरधारक बाबा रामदेव के करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण थे। इस खुलासे से विवाद उठ गया, क्योंकि टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता की चिंता जाहिर की गई है।

कंपनियों के नियंत्रण का मुद्दा

इस टेंडर में हिस्सा लेने वाली कंपनियों में से दो कंपनियां- प्रकृति ऑर्गेनिक्स इंडिया प्रालि और भड़ुवा एग्री साइंस प्राइवेट लिमिटेड- बालकृष्ण के 99 प्रतिशत से अधिक नियंत्रण में थीं, जबकि "राजास एरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड" में उनकी शुरुआती हिस्सेदारी 25 प्रतिशत थी, जिसे बाद में 69.43 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया। इसका सीधा मतलब यह है कि इन सभी कंपनियों का नियंत्रण एक ही व्यक्ति के पास था, जो सार्वजनिक टेंडर की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है।

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टेंडर में गड़बड़ी का आरोप

इस प्रकार के मामले में अक्सर यह सवाल उठता है कि क्या कंपनियों के बीच कोई साजिश या समझौता था, खासकर जब सभी कंपनियां एक ही व्यक्ति के नियंत्रण में हों।

टेंडर प्रक्रिया में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए यह जरूरी होता है कि सभी बोली लगाने वाली कंपनियों को यह प्रमाणित करना पड़े कि उन्होंने कोई प्रतिस्पर्धा-विरोधी साजिश नहीं की, लेकिन पतंजलि के बालकृष्ण द्वारा नियंत्रित कंपनियों के बीच साझेदारी के कारण यह नियम बनाया हो सकता है।

राज्य सरकार की सफाई

उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों का कहना है कि यह कोई असाधारण मामला नहीं है जब कुछ कंपनियां एक ही शेयरधारक के नियंत्रण में होती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार को पिछले दो वर्षों में इस परियोजना से जीएसटी के रूप में 5 करोड़ रुपए से अधिक की आय हुई है। हालांकि, इस मामले में पारदर्शिता की कमी को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं।

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टूरिज्म प्रोजेक्ट की जानकारी 

यह टेंडर जीतने वाली कंपनी को मसूरी के पास 142 एकड़ जमीन, पार्किंग, हेलीपैड, पांच लकड़ी के कुटीर, एक कैफे, दो म्यूजियम और एक वेधशाला जैसी सुविधाएं दी गई हैं। इसके एवज में सालाना एक करोड़ रुपए का कंसेशन शुल्क तय किया गया था। इस प्रोजेक्ट को लेकर यह चर्चा भी है कि बालकृष्ण की कंपनियों ने टेंडर प्रक्रिया में अपनी प्रभावशाली स्थिति का फायदा उठाया।

केस स्टडी 1:

उत्तराखंड के एडवेंचर टूरिज्म मॉडल में सरकारी निवेश और निजी क्षेत्र की भागीदारी

उत्तराखंड सरकार ने 2019 से 2022 तक जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट के आधुनिकीकरण के लिए एशियाई विकास बैंक से 23.5 करोड़ रुपए का ऋण लिया। इसका उद्देश्य पर्यटन स्थल सुधारना और एडवेंचर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना था।

इस प्रक्रिया में टेंडर की पारदर्शिता और कंपनियों के हिस्सेदारी की जांच महत्वपूर्ण रही, लेकिन बालकृष्ण की कंपनियों के शामिल होने से विवाद पैदा हो गया, क्योंकि यह परियोजना सरकारी संसाधनों और निजी कंपनियों के बीच साझेदारी का प्रयास था। हालांकि, इस मॉडल से प्रोजेक्ट की सफलता और लाभ तेजी से बढ़ा, लेकिन कॉम्पिटिशन की स्वतंत्रता पर सवाल उठने लगे।

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केस स्टडी 2:

टेंडर में कॉक्लूजन और सार्वजनिक हित

2019 में पुणे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के एक मामले में, प्रतिस्पर्धा आयोग ने तीन कंपनियों पर जुर्माना लगाया क्योंकि वे एक साथ मिलकर बोली लगा रही थीं, जिससे कॉम्पिटिशन खत्म हो गई थी। इसका मतलब है कि ये कंपनियां एक-दूसरे से मिलकर कीमतें बढ़ाने और बाजार पर अपना नियंत्रण बनाने की कोशिश कर रही थीं। इससे न सिर्फ कीमतें बढ़ती हैं, बल्कि सरकारी संसाधनों का भी गलत तरीके से इस्तेमाल होता है। उत्तराखंड के प्रोजेक्ट में भी यही चिंता उठ रही है कि क्या इस बार भी समान स्थिति है, यानी कंपनियों ने मिलकर बोली लगाने के लिए साजिश की है, जिससे प्रतियोगिता सही तरीके से नहीं हो पाई।

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टेंडर मामले में जानिए विशेषज्ञों के कोट्स...

प्रो. आनंद मिश्रा (कॉर्पोरेट लॉ विशेषज्ञ):

"टेंडर नियमों का उल्लंघन और कॉक्लूजन एक गंभीर समस्या है। इससे नागरिकों का विश्वास कमजोर होता है और बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को चोट पहुंचती है। ऐसे मामलों में जांच और सख्त कार्रवाई बेहद जरूरी होती है।"

डॉ. सीमा गर्ग (पर्यटन नीति विशेषज्ञ):

"पर्यटन विकास के लिए सरकारी और निजी भागीदारी जरूरी है, पर पारदर्शिता और नियम का पालन स्पष्ट होना चाहिए। यह स्पष्ट होना चाहिए कि टेंडर प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और सभी प्रतिभागियों के लिए जमीनी स्तर पर बराबर अवसर दे रही है।"

विलास पाटिल (प्रतिस्पर्धा आयोग के पूर्व अधिकारी):

"कोलूसन यानी सहकारी बोली लगाना सार्वजनिक निविदा प्रणालियों में एक बड़ी बाधा है। इससे बाजार की प्रतिस्पर्धा खत्म होती है। यह न केवल कानून का उल्लंघन है बल्कि निष्पक्ष सरकारी प्रक्रिया का भी हनन है।"

FAQ

उत्तराखंड में मसूरी के पास एडवेंचर टूरिज्म प्रोजेक्ट के टेंडर में विवाद क्यों है?
उत्तराखंड के मसूरी में एडवेंचर टूरिज्म के लिए निकाले गए टेंडर में विवाद इसलिए है क्योंकि तीन कंपनियों के नियंत्रक शेयरधारक आचार्य बालकृष्ण हैं। ये कंपनियां एक ही व्यक्ति के नियंत्रण में हैं, जो सार्वजनिक टेंडर के नियमों का उल्लंघन कर सकता है।
बालकृष्ण की कंपनियों को टेंडर कैसे मिला?
बालकृष्ण की कंपनियों ने टेंडर में भाग लिया और उन्हें 142 एकड़ जमीन और अन्य सुविधाओं के साथ यह प्रोजेक्ट मिला। इसके लिए एक करोड़ रुपए का कंसेशन शुल्क तय किया गया। हालांकि, इन कंपनियों का एक ही व्यक्ति के नियंत्रण में होना विवादास्पद है।

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