समझिए सिंपली- आखिर होती क्या है इमरजेंसी ?

1975 में भारत में लगाए गए आपातकाल की आज 50वीं वर्षगांठ है। इस अवसर पर समझिए क्या होती है इमरजेंसी और भारत के संविधान में इसे लेकर क्या प्रावधान है...

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Shreya Nakade
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आपातकाल का मतलब क्या है
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असामान्य स्थिति से निपटने के लिए संविधान निर्माताओं ने सरकार को कुछ अधिकार दिए हैं। उनका मानना था कि, भविष्य में ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है कि सरकार को कठोर कदम उठाने पड़ जाएं। संविधान के भाग 18 में अनुच्छेद 352 से 360 तक उन प्रावधानों का जिक्र है जिसके तहत देश में आपातकाल ( emergency ) लगाया जा सकता है। इंदिरा गांधी ने भी इन्हीं प्रावधानों के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी। आइये जानते हैं आखिर इंदिरा गांधी ने क्यों आपातकाल लगाया ( why indira gandhi implemented emergency ) और संविधान में आपातकाल के लिए क्या प्रावधान ( emergency in indian constitution ) हैं।

भारत का संविधान अलग - अलग देशों के संविधान का अध्ययन करने के बाद तैयार किया गया था। मौलिक अधिकार जहां अमेरिकी संविधान से लिए गए वहीं संसदीय व्यवस्था ब्रिटेन की दें है। इसी तरह आपातकाल के प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से प्रेरित हैं। वाइमर संविधान के अध्ययन के बाद ही भारत के संविधान में इन्हे शामिल किया गया।

आपातकाल क्यों और कब लगा इससे पहले जानते हैं कि, संविधान आपातकाल के बारे में क्या कहता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352, 356 और 360 में आपातकाल के प्रावधानों का जिक्र है। इसके तहत राष्ट्रीय, संवैधानिक और वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। अपेक्षा  की जाती है कि, इन प्रावधानों का उपयोग तभी हो जब वास्तव में स्थिति गंभीर हो। बावजूद इसके कई बार इन प्रावधानों का उपयोग राज्य सरकार को गिराने और सत्ता को बचाने  किया गया।

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अनुच्छेद 352 के तहत अपातकाल

इसके तहत ‘युद्ध’, ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। इसे राष्ट्रीय आपातकाल ( national emergency ) भी कहा जाता है। इसे राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया जाता है और घोषणा के एक महीने के भीतर संसद की मंजूरी आवश्यक होती है। एक बार घोषित होने के बाद 6 महीने के लिए यह लागू रह सकता है। जरुरत पड़ने पर इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। आपातकाल के दौरान आर्टिकल 20 और 21 को छोड़कर सभी अधिकार निलंबित रहते हैं।

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अनुच्छेद 356 के तहत अपातकाल 

इसे संवैधानिक आपतकाल कहा जाता है। अगर किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल हो जाए राष्ट्रपति उस राज्य में आपातकाल लगा सकते हैं। एक बार घोषणा के बाद यह 6 महीने तक लागू रहती है। आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति राज्य विधानमंडल को भंग कर सकते हैं और जरुरत के अनुसार कुछ अधिकारों को निलंबित भी कर सकते हैं। 356 के तहत आपातकाल लगाए जाने के बाद के बाद राज्य पर पूरा कंट्रोल केंद्र सरकार के पास चला जाता है।

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अनुच्छेद 360 के तहत अपातकाल

अनुछेद 360 के तहत राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल ( financial emergency ) की घोषणा कर सकते हैं। भारत में अब तक वित्तीय आपातकाल की घोषणा नहीं की गई है। एक बार अगर राष्ट्रपति इसकी घोषणा कर दें तो दो महीने के भीतर संसद की मंज़ूरी आवश्यक है। इसके तहत केंद्र और राज्य के बीच राजस्व वितरण में संशोधन होता है। वेतन में कटौती जैसे निर्णय भी लिए जा सकते हैं।

प्रावधानों का गलत उपयोग 

बता दें कि, पहले संविधान में अनुच्छेद 352 के तहत 'आंतरिक अशांति' के आधार पर भी आपातकाल लगाया जा सकता था। आंतरिक अशांति का अर्थ इतना व्यापक था कि, कोई भी इसका गलत उपयोग कर सकता था। और साल 1975 में ऐसा हुआ भी। आंतरिक अशांति का हवाला देकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की ( indira gandhi emergency )। इसके बाद भविष्य में ऐसे दुरूपयोग से बचने के लिए 44 वें संविधान संशोधन के माध्यम से 'आंतरिक अशांति' की जगह 'सशस्त्र विद्रोह' को संविधान में शामिल किया गया।

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भारत में कितनी बार लगा आपातकाल 

भारत में अब तीन बार आपातकाल लगाया जा चुका है। पहली बार आपातकाल साल 1962 में लगा जब भारत - चीन का युद्ध चल रहा था। बाहरी आक्रमण का हवाला देकर आपातकाल की घोषणा की गई थी। दूसरी बाद साल 1971 में भारत - पाकिस्तान युद्ध के समय आपातकाल लगाया गया। तीसरी बार आपातकाल की घोषणा 25 जून 1975 को लगाई गई। इस बार कारण 'आंतरिक अशांति' (internal disturbance) बताया गया। यह अपातकाल 21 मार्च 1977 तक जारी रही।

इमरजेंसी की 50वीं वर्षगांठ

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