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हिंदू पंचांग के मुताबिक फुलेरा दूज, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन को अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है क्योंकि यह होली की तैयारियों की शुरुआत का संकेत देता है। इस साल ये 1 मार्च (यानी आज) मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी के साथ वृंदावन में फूलों की होली खेली थी।
इस कारण इस दिन को प्रेम, उमंग और भक्तिभाव से भरपूर पर्व के रूप में देखा जाता है। खासतौर पर उत्तर भारत में इस दिन से होलिका दहन के लिए लकड़ियों और उपलों (गुलरियों) को एकत्र करने की परंपरा शुरू हो जाती है।
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शुभ मुहूर्त और मान्यता
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, इस पावन तिथि को अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे अबोध मुहूर्त कहा जाता है। इसका अर्थ है कि इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना किसी विशेष मुहूर्त के किया जा सकता है। विशेष रूप से विवाह के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना जाता है।
धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधा का विवाह हुआ था, इसलिए इस दिन शादी करना अत्यंत मंगलकारी होता है।धार्मिक मान्यता के मुताबिक, इस वर्ष फुलेरा दूज की द्वितीया तिथि 1 मार्च को सुबह 3:16 बजे से शुरू होकर 2 मार्च 2025 को रात 12:09 बजे तक रहेगी। क्योंकि, सनातन धर्म में उदयातिथि को अधिक महत्व दिया जाता है, इसलिए इस दिन के सभी शुभ कार्य 1 मार्च को किए जाएंगे।
फूलों की होली
धार्मिक मान्यता के मुताबिक, फुलेरा दूज का नाम ‘फुलेरा’ शब्द से लिया गया है, जिसका संबंध फूलों से है। इस दिन विशेष रूप से वृंदावन, बरसाना और मथुरा में फूलों की होली खेली जाती है। यह एक बेहद अनोखी परंपरा है जिसमें अबीर-गुलाल के स्थान पर विभिन्न प्रकार के फूलों का उपयोग किया जाता है। यह परंपरा इस बात का प्रतीक है कि प्रेम और भक्ति के रंग किसी भी रंग से अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। इस अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, भगवान को भव्य भोग अर्पित किया जाता है और कीर्तन-भजन होते हैं।
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इस दिन की खास परंपराएं
गांवों में इस दिन विशेष परंपराएं निभाई जाती हैं। महिलाएं गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी उपलियां (गुलरियां) तैयार करती हैं और उन्हें धूप में सुखाती हैं। इन गुलरियों को बाद में धागे में पिरोकर माला बनाई जाती है, जिसे होलिका दहन के दिन अर्पित किया जाता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, यह परंपरा समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक मानी जाती है। इसके अलावा, इस दिन घरों और मंदिरों को विशेष रूप से फूलों और रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी को विशेष भोग जैसे पंचामृत, पोहा, मिठाइयां अर्पित की जाती हैं।
शुभ कार्यों के लिए अंतिम दिन
इस दिन को शादी, गृह प्रवेश, वाहन या नई संपत्ति खरीदने, नए व्यापार शुरू करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता के मुताबिक, होली के बाद खरमास की अवधि शुरू हो जाती है, जिसमें विवाह और अन्य शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस कारण, फुलेरा दूज को शादी के लिए आखिरी शुभ मुहूर्त भी माना जाता है। जो लोग अपने विवाह की तिथि निश्चित नहीं कर पा रहे होते, वे इस दिन बिना किसी ज्योतिषीय सलाह के शादी कर सकते हैं क्योंकि यह दिन स्वयं सिद्ध-अबूझ मुहूर्त होता है।
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होली के स्वागत का पर्व
यह दिन केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह होली के रंगों और आनंद की पहली झलक होती है। इस दिन से होली के उल्लास का आरंभ माना जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत में लोग इस दिन से होलिका दहन की तैयारियों में जुट जाते हैं। महिलाएं होलिका के लिए सामग्री इकट्ठा करती हैं और मंदिरों में विशेष आरती व भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। इस प्रकार, यह दिन होली के महोत्सव का पहला संकेत देता है और सभी के जीवन में आनंद और खुशियों का संदेश लाता है।
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