पितरों की शांति के लिए पितृपक्ष में दो या तीन नहीं 12 प्रकार से होते हैं श्राद्ध, जानें हर एक का महत्व

हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है, जो इस साल 7 सितंबर से 21 सितंबर 2025 तक चलेगा। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए केवल उनकी मृत्युतिथि पर ही नहीं, बल्कि कुल 12 प्रकार के श्राद्ध किए जाते हैं।

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Kaushiki
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Pitru Paksha:हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का बहुत ही खास महत्व है। यह वह समय होता है जब हम अपने दिवंगत पूर्वजों और पितरों को श्रद्धापूर्वक याद करते हैं और उनके प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पितर (पितरों का श्राद्ध) विभिन्न रूपों में धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण और पिंडदान को ग्रहण करते हैं। इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हुआ है और 21 सितंबर 2025 तक चलेगा। इस अवधि को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है।

ऐसे में अधिकतर लोग केवल अपने पितरों की मृत्यु तिथि के मुताबिक ही श्राद्ध करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि सनातन परंपरा में श्राद्ध के कुल 12 प्रकार बताए गए हैं?

हर एक श्राद्ध का अपना अलग महत्व और उद्देश्य होता है। आइए जानें उन 12 प्रकार के श्राद्ध और उनके महत्व के बारे में ताकि आप अपने पितरों को संतुष्ट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।

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श्राद्ध का अर्थ और महत्व

शास्त्रों के मुताबिक 'श्राद्ध' शब्द 'श्रद्धा' से बना है जिसका अर्थ है 'श्रद्धापूर्वक किया गया कर्म'। यह एक ऐसा अनुष्ठान है जो जीवित लोगों द्वारा अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और संतुष्टि (श्राद्ध कर्म) के लिए किया जाता है।

माना जाता है कि श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और आरोग्य का आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान, पितरों को जल, तिल, अन्न, फल और भोजन अर्पित किया जाता है।

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सनातन परंपरा में श्राद्ध के 12 प्रकार

गरुड़ पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में श्राद्ध के 12 प्रकारों का उल्लेख मिलता है जो अलग-अलग परिस्थितियों और उद्देश्यों के लिए किए जाते हैं। आइए इन सभी के बारे में विस्तार से जानते हैं:

नित्य श्राद्ध

  • यह श्राद्ध प्रतिदिन किया जाता है। इसमें किसी विशेष तिथि या समय की आवश्यकता नहीं होती।
  • इस श्राद्ध में केवल जल, तिल, फल और भोजन से पितरों को प्रसन्न किया जाता है।
  • यह श्राद्ध पितरों के प्रति निरंतर सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक तरीका है।

नैमित्तिक श्राद्ध

  • इस श्राद्ध को एकोदिष्ट श्राद्ध भी कहा जाता है। यह श्राद्ध किसी विशेष उद्देश्य या अवसर पर किया जाता है।
  • इसमें केवल एक ही पिंड अर्पित किया जाता है और एक ही ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है।
  • यह श्राद्ध किसी एक विशेष व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।

काम्य श्राद्ध

  • यह श्राद्ध किसी विशेष इच्छा या कामना की पूर्ति के लिए किया जाता है।
  • अगर कोई व्यक्ति किसी विशेष कार्य में सफलता या किसी मनोकामना को पूरा करना चाहता है, तो वह यह श्राद्ध कर सकता है।

वृद्धि श्राद्ध

  • इस श्राद्ध को नंदी श्राद्ध भी कहते हैं।
  • यह श्राद्ध परिवार में किसी शुभ कार्य, जैसे विवाह, संतान प्राप्ति या धन-धान्य में वृद्धि होने पर किया जाता है। 
  • यह एक तरह से पितरों को शुभ समाचार देने और उनका आशीर्वाद लेने का तरीका है।

सपिंडन श्राद्ध

  • यह श्राद्ध मृतक की आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाकर पितृ योनि में प्रवेश कराने के लिए किया जाता है।
  • यह श्राद्ध मुख्य रूप से किसी व्यक्ति की मृत्यु के 12वें दिन किया जाता है, ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सके।

पार्वण श्राद्ध

  • यह श्राद्ध पर्व के दिनों जैसे अमावस्या, पूर्णिमा या संक्रांति पर किया जाता है।
  • यह एक सामूहिक श्राद्ध होता है, जिसमें सभी पितरों को याद किया जाता है।
  • इस श्राद्ध में तीन पीढ़ियों के पितरों (पिता, दादा, परदादा) को पिंडदान अर्पित किया जाता है।

गोष्ठ श्राद्ध

  • यह श्राद्ध गोमाता के लिए किया जाता है।
  • हिन्दू धर्म में गाय को अत्यंत पूजनीय माना गया है।
  • गायों को भोजन कराकर और उनकी सेवा करके यह श्राद्ध किया जाता है, जिसे बहुत ही पुण्यदायी माना गया है।

शुद्धार्थ श्राद्ध

  • यह श्राद्ध विशेष रूप से परिवार में सुख-समृद्धि और आरोग्य के लिए किया जाता है।
  • योग्य ब्राह्मणों के माध्यम से मंत्रों और विधि-विधान के साथ इस श्राद्ध को करने से पितर प्रसन्न होते हैं।

कर्मांग श्राद्ध

  • यह श्राद्ध किसी विशेष संस्कार, जैसे गर्भाधान, पुंसवन या सीमंतोनयन आदि के समय किया जाता है।
  • इसका उद्देश्य आने वाले वंशज को पितरों का आशीर्वाद दिलाना है।

दैविक श्राद्ध

  • यह श्राद्ध देवताओं को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है।
  • विशेष रूप से किसी लंबी यात्रा पर जाने से पहले या किसी शुभ कार्य की शुरुआत में यह श्राद्ध करना शुभ माना जाता है।
  • इसमें पितरों के साथ-साथ देवताओं को भी प्रसन्न किया जाता है।

औपचारिक श्राद्ध

  • यह श्राद्ध एक व्यक्ति के स्वस्थ शरीर और दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है।
  • इसमें व्यक्ति अपने जीवनकाल में ही अपने पितरों को प्रसन्न करने का प्रयास करता है।

सांवत्सरिक श्राद्ध

  • यह श्राद्ध मृतक की पुण्यतिथि पर किया जाता है।
  • इसे बरसी श्राद्ध भी कहते हैं। 
  • यह श्राद्ध सबसे महत्वपूर्ण और श्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि यह सीधे तौर पर दिवंगत आत्मा को समर्पित होता है।

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श्राद्ध की विधि और नियम

ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, श्राद्ध करते समय कुछ नियमों का पालन करना बहुत जरूरी होता है:

  • साफ-सफाई: श्राद्ध करने से पहले घर और पूजा स्थल की अच्छी तरह साफ-सफाई करें।

  • पवित्रता: श्राद्ध करने वाला व्यक्ति स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करे।

  • पिंडदान: श्राद्ध के दौरान, पितरों को जौ, चावल और तिल से बने पिंड (पितृपक्ष में पिंडदान) अर्पित किए जाते हैं।

  • ब्राह्मण भोजन: श्राद्ध के बाद योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दक्षिणा दी जाती है।

  • पशु-पक्षियों को भोजन: श्राद्ध का भोजन गाय, कुत्ते और कौए को भी खिलाया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि पितर इन्हीं रूपों में धरती पर आते हैं। पिंडदान महत्व

डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।

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