मकर संक्रांति का पर्व सूर्य के उत्तरायण में आने का प्रतीक है। ये समय शीत ऋतु के जाने और बसंत ऋतु के आगमन का होता है। इसी दौरान खेतों में खड़ी फसलों की कटाई भी होती है। मकर संक्रांति के दिन तिल का महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है, जिसे पूरे भारत में विभिन्न रूपों में खाया और बांटा जाता है। ये न केवल शरीर को गर्मी और ऊर्जा प्रदान करता है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति के लिए भी लाभकारी है। इसलिए इस दिन तिल का सेवन और दान करना प्राचीन परंपराओं का हिस्सा बन चुका है। ये हमें शनि के कुप्रभावों से बचने और जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करता है। तो आइए, जानते हैं तिल के महत्व के पीछे के धार्मिक और वैज्ञानिक कारणों के बारे में।
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धार्मिक कनेक्शन
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, तिल का दान और सेवन शनि के कुप्रभाव को कम करने में सहायक होता है। तिल मिला जल से स्नान करने से पापों का नाश होता है और जीवन में निराशा की समाप्ति होती है। श्राद्ध और तर्पण में तिल का उपयोग असुरों और दुष्टात्माओं से सुरक्षा प्रदान करता है। मकर संक्रांति को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक कहा जाता है। इस दिन तिल के लड्डू, चिक्की और बर्फी खाने की परंपरा है। ये पर्व तिल से जुड़ी सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती है।
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पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, शनि देव को मकर राशि के स्वामी कहा जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव का मकर राशि में प्रवेश होता है। तो ऐसे में माना जाता है कि, सूर्य के इस कदम से शनि देव की उपस्थिति में होने वाली सभी कष्टों से बचने के लिए तिल का दान और सेवन विशेष रूप से किया जाता है। मान्यता है कि, इस दिन तिल का सेवन करने से शनि देव के कुप्रभावों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, माघ महिना में तिल से भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कष्ट समाप्त होते हैं। इस दिन तिल के महत्व के कारण ही मकर संक्रांति को 'तिल संक्रांति' भी कहा जाता है।
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तिल में छिपे गुण
तिल में आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, फास्फोरस और विटामिन बी 1 जैसे कई महत्वपूर्ण तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। ये शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण रक्त में अच्छे लिपिड प्रोफाइल को बनाए रखते हैं। तिल का सेवन गठिया के दर्द से भी राहत दिलाने में मदद करता है और यह शरीर में मौजूद बैक्टीरिया और कीटाणुओं को भी खत्म करता है। इसके अलावा, तिल का तेल भी त्वचा को नमी प्रदान करता है, जिससे शीतलता और सर्दियों के प्रभाव से बचाव होता है।
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आयुर्वेद में तिल का स्थान
आयुर्वेद के मुताबिक, तिल शीत ऋतु में विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। ये शरीर को पोषण देने के साथ-साथ विभिन्न शारीरिक समस्याओं को दूर करने में भी सहायक होते हैं। तिल में मौजूद कड़वा, मधुर और कसैला स्वाद इसे औषधीय गुणों से भरपूर बनाता है। आयुर्वेद में इसे अपच, गैस, और पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए भी उपयोगी माना गया है।
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो, तिल गर्म होता है और इसका सेवन सर्दियों में शरीर को गरम बनाए रखने में सहायक होता है। सर्दियों के मौसम में शरीर का तापमान गिर सकता है, जिससे तिल और गुड़ जैसी गर्म चीजों का सेवन करने से शरीर को अंदर से गर्मी मिलती है। इसके अलावा, तिल के तेल से शरीर को नमी मिलती है, जो सर्दी में त्वचा की सुरक्षा करती है।
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