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संजय गुप्ता, INDORE. जीएसटी (GST) को लागू हुए एक जुलाई को पांच साल पूरे हो जाएंगे और इसी के साथ केंद्र का पांच साल तक क्षतिपूर्ति (कंपनसेशन) देने का लिखित वादा भी 30 जून को पूरा हो जाएगा। केंद्र ने जीएसटी लागू होते समय हर राज्य को हर साल 14 फीसदी रिवेन्यू ग्रोथ का आश्वासन देते हुए इसमें कमी पर भरपाई की बात कही थी। इसी के तहत मप्र को हर साल केंद्र से क्षतिपूर्ति राशि मिलती रही, जो इस समय के रिवेन्यू कलेक्शन (Revenue Collection) के हिसाब से करीब नौ हजार करोड़ प्रति साल बैठती है। जीएसटी काउंसिल (GST Council) की 28-29 जून को चंडीगढ़ में होने वाली बैठक में कई राज्य क्षतिपूर्ति (Compensation) दो साल और बढ़ाने की मांग करेंगे। मप्र को भी इससे राजस्व (Revenue) में बढ़ी राहत मिलेगी। कारण है कि मप्र का राजस्व बीते सालों में इतनी तेजी से नहीं बढ़ा है, हालत यह है कि आबादी में तीन गुना छोटे हरियाणा का टैक्स कलेक्शन भी मप्र से करीब दोगुना ज्यादा है। हरियाणा का हर माह औसतन टोटल टैक्स कलेक्शन पांच से छह हजार करोड़ के करीब होता है, वहीं मप्र का यह ढाई से तीन हजार करोड़ रुपए के बीच होता है। देश में सबसे ज्यादा जीएसटी कलेक्सन महाराष्ट्र राज्य से औसतन 20 हजार करोड़ प्रति माह करीब होता है। वहीं यह तय है कि जीएसटी काउंसिल लग्जरी वस्तुओं पर सेस अभी लेना जारी रखेगा, जिससे कि राज्यों को की गई भरपाई के लिए हुए बैंक लोन की भरपाई की जा सके।
बैठक में टैक्स स्लैब बदलने की उम्मीद नहीं, ऑनलाइन गेमिंग पर टैक्स
सूत्रों के अनुसार बैठक में टैक्स स्लैब बदलने की उम्मीद नहीं है, महंगाई को देखते हुए अभी इस बारे में काउंसिल बड़े फैसले नहीं लेना चाहता है। हालांकि ऑनलाइन गेमिंग, घुड़दौड आदि पर टैक्स 28 फीसदी करने का प्रस्ताव है। वहीं ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स द्वारा टैक्स चोरी रोकने के कुछ और प्रस्ताव काउंसिल में रखे जाएंगे, जिससे कंपनसेशन बंद होने के बाद भी राज्यों के राजस्व पर अधिक फर्क नहीं पड़े।
सोने-चांदी के परिवहन पर भी ईवे बिल की मांग
केरल जैसे राज्यों ने सोने-चांदी के परिवहन पर ईवे बिल लाने की मांग की है। दो लाख से अधिक मूल्य के सोने-चांदी, मंहगे रत्न आदि के परिवहन पर इसे लाने की मांग है, लेकिन सूत्रों के अनुसार केंद्र इस मामले में राज्यों को ही बोल सकता है कि वह अपने स्तर पर राज्य में ईवे बिल लागू कर दें, जिससे राज्य के भीतर एक जिले से दूसरे जिले के बीच परिवहन के लिए यह जरूरी हो लेकिन केंद्र इसे अपने स्तर पर लागू नहीं करेगा।