Bhopal.
द सूत्र ने 20 अप्रैल को सूत्रधार में आपको खबर दिखाई थी कि हरदा जिले में किसानों का खरीफ 2020-21 में फसल के औसत उत्पादन का डेटा क्रैश हो गया और इसकी वजह से हरदा जिले के किसानों को आने वाले पांच सालों तक फसल बीमा का लाभ मिलने में दिक्कत होगी, क्योंकि इस डेटा का इस्तेमाल फसल बीमा के आंकलन में किया जाता है। आरटीआई के जरिए मांगी गई जानकारी में ये जवाब मिला था, लेकिन जब शिकायतकर्ता ने अपील की तो सुनवाई में हरदा कलेक्टर ने चौंकाने वाला जवाब दिया कि ना केवल हरदा बल्कि पूरे प्रदेश का फसल के औसत उत्पादन का डेटा क्रैश हो गया... इस जानकारी के मिलने के बाद जब द सूत्र ने इस पूरे मामले की पड़ताल की तो किसान संगठनों के उन आरोपों को बल मिल रहा है कि बीमा वितरण में 12 हजार करोड़ का फर्जीवाड़ा हुआ है... और कई सवाल खड़े हो गए है। साथ ही हरदा कलेक्टर डेटा कैश होने की अपनी बात से पलट गए। उन्होंने कहा कि गलती से यह शब्द इस्तेमाल हो गया।
डेटा क्रैश का मतलब...50 लाख किसान 5 साल तक बीमा से वंचित
द सूत्र के पास जैसे ही हरदा कलेक्टर का वह पत्र हाथ लगा जिसमें मध्यप्रदेश का डेटा क्रैश होने की बात कही गई थी, उसके बाद द सूत्र ने पूरे मामले की पड़ताल की। यह जरूरी इसलिए भी था कि यदि हरदा कलेक्टर की बात सच होती तो इसका मतलब यह था कि आने वाले 5 सालों तक मध्यप्रदेश के 50 लाख से अधिक किसान फसल बीमा से वंचित ही हो जाते। क्योंकि 2020—21 के फसल औसत उत्पादन के जिस डेटा के क्रैश होने की बात की जा रही थी, उसका उपयोग आने वाले 5 साल तक फसल बीमा की गणना करने के लिए होना था।
द सूत्र की पड़ताल के बाद कलेक्टर ने मानी गलती
मामला बेहद गंभीर था, इसलिए द सूत्र ने इसकी पड़ताल शुरू की। पड़ताल शुरू करते ही हड़कंप मच गया। प्रदेश में औसत फसल उत्पादन का डेटा स्टोर मैपआईटी यानी मध्य प्रदेश एजेंसी फॉर प्रमोशन ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी करता है। द सूत्र ने सच का पता लगाने के लिए मैपआईटी के सीईओ नंद कुमारम से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि डेटा क्रैश नहीं हुआ है। उन्होंने टेक्नीकल टीम से भी इसे क्रॉसचेक करवाया तो डेटा सुरक्षित होने की बात सामने आई। फिर सवाल यह उठता था कि हरदा कलेक्टर को डेटा क्रैश होने की जानकारी किसने दी और उन्होंने कैसे इसका असेसमेंट किया कि पूरे प्रदेश का डेटा ही क्रैश हो गया। हालांकि बाद में हरदा कलेक्टर ऋषि गर्ग ने यह कहा कि डेटा क्रैश शब्द का गलत इस्तेमाल हुआ है। पहले यह जिले की लोकल लॉगइन पर नहीं दिख रहा था पर अब एसएलआर यानी भू अभिलेख वेबसाइट पर दिखाई देर रहा है। मामले में बड़ी लापरवाही का अंदेशा होने पर हरदा कलेक्टर ने द सूत्र को दोबारा कॉल किया और पूरे मामले में सफाई दी।
ऐसे समझे पूरे मामले को
दरअसल फसल बीमा के निर्धारण के लिए एक निर्धारित फार्मूला है, जिसकी मदद से कोई भी किसान यह आंकलन कर सकता है कि उसे बीमा की राशि कितनी मिलनी थी और मिली कितनी। इसके लिए किसान के पास संबंधित पटवारी हल्के में औसत फसल उत्पादन के आंकड़े होना चाहिए, यह आंकड़े सारा पोर्टल ऐप के माध्यम से पटवारी फसलवार दर्ज करते हैं, पूरा खेल इन्ही आंकड़ों से जुड़ा है। प्रशासन इस डेटा को देने में आनाकानी कर रहा है। किसानों का आरोप है कि प्रशासन यह डेटा इसलिए नहीं दे रहा क्योंकि यदि ये डेटा किसानों के हाथ लग गया तो पूरा फर्जीवाड़ा ही सामने आ सकता है। हरदा में इस डेटा को लेने के लिए एडवोकेट अनिल जाट ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन दिया। जिसके बाद भू अभिलेख शाखा हरदा से डेटा क्रैश होने की बात कही गई। अनिल जाट ने मामले में अपील की, जहां सुनवाई के दौरान हरदा कलेक्टर ने भी डेटा क्रैश होने की बात का उल्लेख अपने आदेश में किया।
द सूत्र के सवाल...
हरदा कलेक्टर ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्हें इस तरह की रिपोर्ट दी गई थी, जिसके आधार पर उन्होंने ऐसा आदेश किया, तो क्या वे गलत रिपोर्ट देने वाले अधिकारी पर कार्रवाई करेंगे। हरदा कलेक्टर ने खुद कहा कि डेटा क्रैश शब्द का प्रयोग गलत हुआ, लेकिन इसी शब्द का प्रयोग भू अभिलेख शाखा ने भी किया था, तो क्या यह पहले से तय था कि इस तरह के आवेदन के जवाब में डेटा नहीं देने का कारण क्रैश होना ही बताना है, ताकि सामान्य किसान इस डेटा को लेने के लिए आगे अपील ही न करे या विभाग तक संपर्क न करे। सवाल यह भी है कि यदि फसल बीमा वितरण में गड़बड़ी नहीं है तो इसे देने में अधिकारी आनाकानी क्यों कर रहे हैं, कहीं यह कोई बड़े भ्रष्टाचार को छुपाने की कोशिश तो नहीं।