हरीश दिवेकर, BHOPAL. क्या वाकई सरकार चाहती है कि अधिकारी-कर्मचारियों को प्रमोशन मिल जाए। या फिर सरकार अनारक्षित और आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन का सपना दिखाकर उनके साथ खेल रही है। ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि प्रमोशन में आरक्षण के नए नियमों के प्रस्ताव को इधर से उधर घुमाया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि सरकार चुनावी साल में प्रमोशन में आरक्षण का जिन्न बोतल से बाहर नहीं निकालना चाहती। यही वजह है कि सीनियर सेक्रेटरी कमेटी से प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने के बाद उक्त प्रस्ताव को कैबिनेट में नहीं भेजा, उलटा इस प्रस्ताव पर नए सिरे से चर्चा करने की एबीसीडी शुरू कर इसे विवाद में डालने की तैयारी कर ली।
सरकार की सोची-समझी रणनीति
सबकुछ सोची-समझी रणनीति के साथ हुआ। सीनियर सेक्रेटरी कमेटी से मंजूर हो चुके पदोन्नति में नए नियमों के प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए जीएडी ने मंगलवार को गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की अध्यक्षता में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर की बैठक रखी। इसमें जल संसाधन मंत्री तुलसी सिलावट, सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया और सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री इंदर सिंह परमार मौजूद रहे। बैठक में नए नियमों के प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए अजाक्स और अपाक्स संगठनों के प्रतिनिधियों को बुलाया गया था। जैसा कि पहले से तय था बैठक शुरू होती उससे पहले ही अजाक्स के अध्यक्ष एवं अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया ने कहा कि उन्हें तो 15 मिनट पहले ही बैठक की जानकारी मिली है। उन्होंने तो अब तक पदोन्नति नियम 2012 के प्रस्ताव को पढ़ा ही नहीं है। ऐसे में बिना पढ़े कैसे अपनी बात रख सकेंगे। कंसोटिया ने इस पर दो दिन का समय मांग लिया। इस पर जल संसाधन मंत्री सिलावट बोले दो दिन बाद नहीं दिवाली के बाद बैठक कर लेंगे। आप इसे पढ़ लीजिए। सिलावट ने ये भी कहा कि दोनों पक्ष बीच का रास्ता निकाल लीजिए जिससे ये नए पदोन्नति नियम जल्द से जल्द लागू कर सकें। इस पर सपाक्स के अध्यक्ष केएस तोमर ने कहा कि हम तैयार हैं, आप नियमों में ये प्रावधान कर दीजिए कि कोई भी जूनियर अधिकारी आरक्षण के नाम पर अपने सीनियर के ऊपर पदोन्नत नहीं होगा। तोमर ने ये भी कहा कि आईएएस, आईपीएस और डिप्टी कलेक्टर की तरह राज्य के अधिकारी कर्मचारियों के प्रमोशन टाइम बाउंड कर दिए जाएं। सारा विवाद खत्म हो जाएगा। इस पर थोड़ी बहस हुई बाद में बैठक खत्म हो गई।
नए कानून या नियम बनाने की ये होती है प्रक्रिया
सरकार जब भी कोई नया कानून या नियम बनाती है तो उसकी प्रक्रिया निर्धारित है। इसके लिए सबसे पहले प्रभावित पक्ष से चर्चा कर उसकी राय ली जाती है या फिर उक्त प्रस्ताव को प्रकाशित कर आमजन से नीयत समय में आपत्ति सुझाव आमंत्रित किए जाते हैं। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद प्रस्ताव तैयार होता है। इस प्रस्ताव को सीनियर आईएएस की अध्यक्षता वाली सीनियर सेक्रेटरी की कमेटी में चर्चा के लिए लाया जाता है जिसमें वित्त और लॉ के अफसर भी शामिल होते हैं। सीनियर सेक्रेटरी कमेटी से प्रस्ताव फाइनल होने के बाद इसे मुख्य सचिव को भेजा जाता है। मुख्य सचिव इस प्रस्ताव को सीएम को भेजकर कैबिनेट में रखने का आग्रह करते हैं। मुख्यमंत्री उक्त प्रस्ताव से सहमत होते हैं तो इसे सीधा कैबिनेट में लाया जाता है। जहां सामूहिक चर्चा के बाद से मंजूर या निरस्त किया जाता है लेकिन सीनियर सेक्रेटरी कमेटी से प्रस्ताव मंजूर होने के बाद फिर से इसे प्रभावित पक्ष से चर्चा के लिए नहीं रखा जा सकता। कारण ये कि यदि ऐसा किया जाता है तो प्रस्ताव पर कभी सहमति ही नहीं बनेगी।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
पूर्व प्रमुख सचिव जीएडी एमके वार्ष्णेय सीनियर सेक्रेटरी कमेटी की मंजूरी और लॉ डिपार्टमेंट की सहमति के बाद प्रस्ताव को सीधे कैबिनेट के लिए ही भेजा जाता है। प्रस्ताव पर प्रभावित पक्ष से जो भी चर्चा करनी होती है, ये प्रक्रिया का शुरुआती हिस्सा होता है। सीनियर सेक्रेटरी कमेटी की मंजूरी के बाद उलट प्रभावित पक्ष से चर्चा के लिए प्रस्ताव नहीं रखा जाता है। यदि ऐसा है तो ये प्रैक्टिस ही गलत है।