मालवा-निमाड़ में जो 55 फीसदी सीटें जीतेगा सरकार उसी की, इस बार बीजेपी में कांग्रेस की भितरघात और वोट कटव्वा की बीमारी का डर

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Sanjay gupta
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मालवा-निमाड़ में जो 55 फीसदी सीटें जीतेगा सरकार उसी की, इस बार बीजेपी में कांग्रेस की भितरघात और वोट कटव्वा की बीमारी का डर


BHOPAL. मध्यप्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 66 यानी 29 फीसदी करीब एक चौथाई से ज्यादा मालवा-निमाड़ के इंदौर-उज्जैन संभाग के 15 जिलों में समाहित हैं। इसलिए इसे किसी भी दल के लिए सत्ता का गलियारा कहा जाता है। इस गलियारे से कांग्रेस साल 1998 के 30 साल बाद 2018 में ही विजयी होकर निकल सकी थी, जब 66 सीटों में से उसने 35 पर जीत हासिल की। विंध्य में पिटने के बाद भी सत्ता में काबिज होने का एकमात्र कारण मालवा-निमाड़ था। बीजेपी साल 2013 में जहां यहां 57 सीट जीतकर सत्ता में काबिज हुई, वहीं 2018 में उसे 29 सीट का नुकसान हुआ और वह केवल 28 पर आ गई। उपचुनाव में फिर वापसी की और 7 में से 6 सीट जीतीं, एक गंवाई और 33 पर पहुंच गई। कांग्रेस 30 पर सिमटी। 3 सीट निर्दलीय के पास हैं।



साल 2023 के चुनाव में क्या अहम



साल 2023 के चुनाव में बीजेपी के लिए सबसे अहम होगा उम्मीदवार चुनना और भीतरघात से बचना, क्योंकि इस बार कांटे के चुनाव में पार्टी संगठन के साथ उम्मीदवार की इमेज और उसकी मैदानी पकड़ अहम होना है। क्योंकि कांग्रेस नेताओं को अपने खेमे में लेने और टिकट के लिए बनने वाले फॉर्मूले के बाद जो टिकट कटेंगे वह बीजेपी नेता पार्टी के लिए भारी साबित होने वाले हैं। क्योंकि यह गुजरात नहीं है जहां दूसरे बेदखल होने वाले नेता एकदम चुप बैठ जाएंगे। उधर कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने उम्मीदवार और नेताओं को बीजेपी से बचाना है तो वहीं आप और ओवैसी की पार्टी से कटने वाले वोटों की है। यहां की 10 सीटें ऐसी हैं जहां 3 हजार और इससे कम की हार-जीत है। यदि आप और ओवैसी का कार्ड चल गया तो कांग्रेस के लिए पुरानी सीट बचाना भी मुश्किल हो जाएगा।



आइए पहले 2018 की सीटों का गणित देखते हैं-



आदिवासी सीट- यहां पर प्रदेश की 47 आदिवासी सीटों में से 22 सीट मालवा-निमाड़ में हैं। बड़वानी, अलीराजपुर, झाबुआ जिले तो पूरी तरह से आदिवासी सीट वाले हैं, तो वहीं धार की सात में से 5 सीट एसटी की हैं। इन सीटों पर बीते चुनाव में कांग्रेस 15 पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी, बीजेपी 6 पर तो निर्दलीय एक पर थी।



अनुसूचित जाति- यहां 9 सीटें एससी कैटेगरी की हैं, जिसमें बीजेपी हावी रही है और उसने बीते चुनाव में 6 सीट जीती थी, इसमें उज्जैन जिला मुख्य तौर पर है।



सामान्य- सामान्य कैटेगरी में 35 सीट है, जिसमें बीजेपी मजूबत है और बीते चुनाव में 20 सीट हासिल की थी, कांग्रेस को 13 मिली और निर्दलीय के पास 2 सीट गई थी।



पहले समझते हैं बीजेपी के लिए चुनौतियां



1. उम्मीदवार की तलाश- यह बीजेपी के लिए सबसे बड़ा जी का जंजाल होने जा रहा है। एक सीट पर कई उम्मीदवार हैं। एक को टिकट मिलना, यही दूसरे की नाराजगी। सीएम शिवराज सिंह चौहान पीथमपुर नगर पालिका चुनाव में हुई गुटबाजी के लेकर चिंता जता चुके हैं तो खुद बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय बोल चुके हैं कि बीजेपी को डर बीजेपी से है। खरगोन जिला जिसमें बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी, धार जहां केवल एक सीट पा सकी थी, ऐसे जिले हैं जहां बीजेपी के उम्मीदवार की तलाश करना सबसे बड़ा काम होने जा रहा है। इस बार चुनाव में पार्टी के नाम के साथ उम्मीदवार की छवि का भी अहम रोल होने जा रहा है, केवल पार्टी के दम पर चुनाव जीतना आसान नहीं होगा।



2. कांग्रेसियों का बीजेपी में आना- कांग्रेसियों के बीजेपी में आने के बाद कई मूल बीजेपी नेताओं के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो गया है। जैसे सांवेर में डॉ. राजेश सोनकर की सीट गई और अब कांग्रेस से बीजेपी में आए तुलसीराम सिलावट काबिज हो गए। हाटपिपलिया में दीपक जोशी बाहर हो चुके हैं। इसी तरह बदनावर, मांधाता, सुवासरा, नेपानागर भी सीट है जहां अब मूल बीजेपी नेता का अस्तित्व संकट में है। ऐसे में बीजेपी के लिए सबसे बडा डर यही है कि बीजेपी के नेता कहीं वोट कटुआ नहीं बन जाएं और भितरघात के चलते पार्टी मुश्किल में नहीं आ जाए। कांग्रेस की यह बीमारी का वायरस इस बार बीजेपी को अधिक सता रहा है, कांग्रेस तो इसके आदी हो चुके हैं और एंटीडोज बना हुआ है बीजेपी इसकी आदी नहीं है।



3. कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका, कितना फ्री हैंड- कम से कम मालवा-निमाड़ की बात करें तो बीजेपी कैलाश विजयवर्गीय की भूमिका से इनकार नहीं कर सकती है। बीते चुनाव के समय वह पूरी तरह से पश्चिम बंगाल में व्यस्त थे। इस क्षेत्र में उनके जितना बड़ा हिंदुत्व का चेहरा पार्टी के पास नहीं है और मैदानी पकड़ भी उनकी है। लेकिन फिर बात यही है कि क्या पार्टी और सीएम ठाकुर यानी विजयवर्गीय के हाथ को खुला छोड़ेंगे (विजयवर्गीय जब प्रदेश में मंत्री थे, तब एक आयोजन में कहा था कि उनके हाथ ठाकुर की तरह बंधे हुए हैं)।



4. विजयवर्गीय और सिंधिया की जुगलबंदी- बीजेपी में इसके साथ विजयवर्गीय और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जुगलबंदी पर भी मुख्य जोर होगा। यदि सिंधिया को आगे जाकर सीएम के लिए दावा जताना है तो उन्हें भी चाहिए होगा कि उन्हें पसंद करने वालों को टिकट भी मिले और वहां प्रचार कर जीत भी दिलवाएं तभी वह आगे जाकर मजबूत होंगे और इन सब के लिए उन्हें लगेगी विजयवर्गीय की जरूरत। ऐसे में यह जोड़ी बीजेपी के लिए अहम साबित होने जा रही है।



कांग्रेस को चुनौती अपने नेताओं के बीजेपी का गमछा पहनने से रोकना



कांग्रेस को इस बार अपने लिए सत्ता की फसल लहलहाती दिख रही है, लेकिन उसकी समस्या यह है कि इसे काटकर बीजेपी ले जाती है। हाथ आया लेकिन मुंह को नहीं आया वाली कहावत उस पर बिल्कुल फिट बैठती है। बीजेपी सत्ता में आने के लिए अपने मूल नेताओं को दरकिनार कर उनके बड़े और जीतने वाले उम्मीदवारों को ऐन वक्त पर अपने साथ लेने में कोई कोताही नहीं बरतेगी। इसमें गाहे-बगाहे सबसे बड़ा नाम तो इंदौर से विधायक संजय शुक्ला और विशाल पटेल का ही चलता है। बड़वाह से सचिन बिरला तो चले ही गए, वहीं सत्ता बदलने के दौरान कांग्रेस के सिलावट, दत्तीगांव, डंग आदि ने भी बीजेपी का गमछा पहन लिया।



उधर पेसा एक्ट आने के बाद और बीजेपी जिस तरह से आदिवासी सीटों पर जोर मार रही है, ऐसे में कांग्रेस के लिए 22 में से 15 जीती सीटों के इतिहास को दोहराना बड़ी चुनौती होगी। बीजेपी का पूरा जोर है कि वह आदिवासी वोटों को अपने पास कर ले। बीजेपी का सीधा गणित है, ध्रुवीकरण कर हिंदू वोट अपने पाले में किए जाएं और आदिवासी भी हिंदू ही है यह बताना है।



ओवैसी और आप बिगाड़ेंगे खेल- कांग्रेस के लिए गुजरात मॉडल वाला चुनाव भी चुनौती है। बुरहानपुर नगर निगम कांग्रेस के हाथ से ओवैसी की पार्टी को गए उनके वोट के कारण हाथ से निकला। ऐसे ही मालवा-निमाड़ में कम से कम 10 सीट ऐसी हैं जहां जीत का अंतर 3 हजार से कम था। ऐसे में ओवैसी हो या आप इनके खाते में यदि किसी सीट पर 3 से 5 हजार वोट चले जाते हैं तो कांग्रेस के लिए थोड़े से एडवांटेज वाली सीट जीतना भी मुश्किल हो जाएगा।



कांग्रेस को 10 में से 6 लेकिन बीजेपी को भी देंगे साढ़े पांच



वर्तमान हालत में बात करें तो 10 में से अभी कांग्रेस के पाले में 6 अंक दिखते हैं, लेकिन बीजेपी को चार की जगह साढ़े पांच अंक की स्थिति है, क्योंकि वह कांग्रेस से इतनी पीछे भी नहीं है। कांग्रेस को 6 अंक इसलिए, क्योंकि यदि वह बीते रिकॉर्ड को भी दोहरा लेती है तो यही उसकी जीत है और अभी के हाल में वह उसके आसपास ही दिख रही है। वहीं बीजेपी को यहां चुनौती 66 में से 30-35 सीट लाना नहीं है, उसकी असल जीत और बढ़त तब होगी जब वह यहां 45-50 सीटों पर जीत हासिल करती है, तभी वह मजबूत बनकर उभरेगी, जैसे वह साल 2003, 2008, 2013 में करती आई है।


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