6 साल की उम्र में माता-पिता की मौत, 8 साल की उम्र में दिहाड़ी मजदूरी। न सिर पर छत, न तन पर ढंग के कपड़े। काम करते-करते जहां थक गए वहीं रात गुजार ली। एक के बाद एक कई शहर बदले, काम बदले, लोगों द्वारा किया गया अपमान सहा। लेकिन हौसला नहीं खोया, हिम्मत नहीं हारी। एक बार जो फौज में ऑफिसर बनने का सपना देखा तो उसे पूरा कर के ही दम लिया।ये कहानी है आर्मी ऑफिसर राकेश वालिया की।
10 साल की उम्र से फौज का मन बनाया
1971 में पाकिस्तान के साथ वॉर चल रहा था। फौज के जवान वॉर के लिए तैयारी कर रहे थे। उन्हें हर जगह ‘भारत माता की जय’ की गूंज सुनाई देती थी। वर्दी में दौड़ लगाते जवान दिख रहे थे। अखबार भी जवानों की खबरों और तस्वीरों से भरे रहते थे। ये सबकुछ राकेश को इंस्पायर करता था। तब उनकी उम्र 10 साल रही होगी। उनका मानना था कि अपनी मां तो नही रही और अब जो हैं वे भारत माता ही है। उन्होने मन बना लिया कि अब तो फौज में जाना ही है।
दुकानो पर की पढ़ाई
वालिया ने जवानों के कैंप में जाकर उनसे बात की और आर्मी में भर्ती होने के बारे में पूछा। उन्हें बताया गया कि 10वीं का एग्जाम पास करना होगा तभी फौज में भर्ती हो सकेंगे। उनके पास न तो किताब खरीदने के पैसे थे न ही पढ़ने की व्यवस्था, लेकिन सेना में जाने की जिद थी। उन्होंने मजदूरी के साथ पढ़ाई शुरू की। जब भी उन्हें वक्त मिलता वे पढ़ाई करने लगते। उनके पास किताब खरीदने के पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होने पुरानी किताबें बेचने वाली दुकान पर ही देर रात तक रुककर पढ़ाई करनी शुरु कर दी। 10वीं पास करने के बाद राकेश मुंबई चले गए। वहां कुछ दिन काम करने के बाद वापस दिल्ली लौट आए। उनका एक ही सपना था कि कुछ भी करके ग्रेजुएशन करना है और आर्मी ऑफिसर बनना है। इसी तरह साल दर साल बीतते गए और वे नौकरियां बदलते रहे। 1981 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया।
तीसरी बार में हुए कामयाब
राकेश वालिया ने तीन बार UPSC की परीक्षा दी। तीसरी बार में उन्होंने SSB की परीक्षा पास कर ली। UPSC दफ्तर पहुंच कर पता चला कि उन्हें ट्रेनिंग के लिए चेन्नई जाना होगा।उनके पास ट्रेनिंग के लिए पैसे नहीं थे। जैसे तैसे 700 रुपए इकट्ठा किए और ट्रेनिंग के लिए गए। ट्रेनिंग में उन्होंने रनिंग से लेकर शूटिंग तक सबसे बेहतर प्रदर्शन किया था। ट्रेनिंग के बाद उन्हें गोरखा रेजिमेंट में शामिल किया गया।
युवाओं का मार्गदर्शन
राकेश वालिया ने क्रेयॉन्स कैन स्टील कलर, शाहीन मस्ट डाई सहित 4 किताबें लिखी हैं। अभी वे अपनी पांचवीं किताब लिख रहे हैं। भारत के साथ ही दूसरे देशों में भी वे बतौर लाइफ कोच और मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में जाने जाते हैं। युवाओं को मोटिवेट करते हैं। अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया के जरिए भी वे युवाओं को गाइड करने का काम करते हैं।