News Strike: सीएम मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती, सही फैसला बनाएगा राजनीति का चाणक्य !

मध्यप्रदेश की राजनीति में एक विवादित बयान के कारण ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ब्राह्मण-दलित राजनीति गरमा गई है। सीएम मोहन यादव पर स्थिति नियंत्रण में रखने का दबाव बढ़ रहा है। अगर मामला नहीं सुलझा तो बीजेपी को बिहार चुनाव में नुकसान हो सकता है।

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Harish Divekar
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news strike 13 october

Photograph: (The Sootr)

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मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आया है। हालात ये हैं कि प्रदेश में अगर मसला नहीं सुलझा तो बीजेपी को बिहार में नुकसान उठाना पड़ सकता है। मामला जुड़ा है उस एक बयान से जिसने ग्वालियर चंबल में ब्राह्मण वर्सेज दलित की राजनीति को गर्मा दिया है। बयानबाजी तो जमीनी स्तर पर हो रही है लेकिन उस पर लॉबिंग सोशल मीडिया पर शुरू हो गई है। इसी वजह से मामला तेजी से फैल भी रहा है। अब हालात ये हैं कि सीएम मोहन यादव पर लगातार हालात में काबू करने का प्रेशर बढ़ रहा है और दिल्ली से लगातार सवाल भी हो रहे हैं। डर इस बात का है कि राहुल गांधी का संविधान बचाने का मिशन कहीं ग्वालियर चंबल में भारी न पड़ जाए।

न्यूज स्ट्राइक के ही एक हालिया एपिसोड में हमने आप को आगाह किया था कि मध्यप्रदेश भी अब वर्ग संघर्ष की कगार पर पहुंच गया है। एक बयान से उठी चिंगारी सोशल मीडिया के जंगल में आग की तरह फैली और अब बात आंदोलन तक पहुंच गई है। हालात इस कदर चिंताजनक हैं कि इसका खामियाजा बीजेपी को बिहार चुनाव में नुकसान झेलकर भी उठाना पड़ सकता है। इसी चिंता के चलते खुद बीजेपी आलाकमान मध्यप्रदेश के हालात को लेकर फिक्रमंद है। खबर तो यहां तक हैं कि खुद अमित शाह इस मसले पर सीएम मोहन यादव से रोज की रिपोर्टिंग ले रहे हैं। और हालात नहीं सुधरे तो मोहन यादव समेत पूरी सरकार के सिर में दर्द हो जाएगा।

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मामले ने ऐसे पकड़ा तूल

हमने आपको ये बताया था कि वकील अनिल मिश्रा के बाबा साहेब अंबेडकर पर दिए बयान के बाद मामले ने कैसे तूल पकड़ा है। अनिल मिश्रा के बयान के बाद उनके खिलाफ एफआईआर हुई। लेकिन अनिल मिश्रा उस एफआईआर के डर से दुबके नहीं बल्कि अपने बयान पर कायम रहे। और, खुद ही गिरफ्तारी देने थाने पहुंच गए। थाने जाकर भी उन्होंने यही कहा कि संविधान अंबेडकर ने नहीं लिखा है। इस मामले पर कांग्रेस ने अंबेडकरवादियों का खुलकर पक्ष ले लिया है। लेकिन बीजेपी के लिए ये वर्ग संघर्ष गले की हड्डी बन गया है। क्योंकि बीजेपी वो पार्टी है जो एक बार माई का लाल जैसे बयान की आग में जल चुकी है।

शिवराज का 'माई का लाल' बयान

जो ये सियासी वाक्या भूल चुके हैं उन्हें एक बार फिर याद दिला दें कि साल2018 में ग्वालियर चंबल के क्षेत्र में ही इस वर्ग संघर्ष ने जोर पकड़ा था। तब मामला इतना बढ़ गया था कि इलाके में कर्फ्यू लगाने तक की नौबत आ गई थी। उस समय तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान को लगा था कि अगर ये वर्ग संघर्ष यूं ही जारी रहा तो दलितों के वोट हाथ से निकल सकते हैं। इसलिए उन्होंने एक चुनावी सभा में ये बयान दिया था कि कोई माई का लाल भी आरक्षण को नहीं मिटा सकता।

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2018 चुनाव में झेलना पड़ा नुकसान

लेकिन ये बयान बीजेपी पर बैकफायर कर गया। आरक्षित वर्ग को मनाने के चक्कर में बीजेपी ने सवर्ण और ब्राह्मणों की नाराजगी मोल ले ली। ग्वालियर चंबल में बीजेपी को सवर्णों के वोट से बुरी तरह नुकसान झेलना पड़ा। नतीजा ये हुआ कि पार्टी 2018 में सत्ता में वापसी नहीं कर सकी। उसके बाद से पार्टी ने हमेशा ऐसे हालातों से बचने की कोशिश की। लेकिन अब जो देशभर में ब्राह्मण वर्सेज दलित का नरेटिव जोरों पर है तो एमपी की फिजा भी उससे बच नहीं सकी है। यहां भी ये नरेटिव मजबूत हो रहा है। ग्वालियर चंबल के पानी में तो इस नरेटिव का उबाल है ही। सोशल मीडिया पर भी नरेटिव की वजह से सनीसनी फैली पड़ी है।

बीजेपी झेलनी पड़ेगी सवर्ण-दलित की नाराजगी

कुछ सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर सीरियसली मुद्दे पर टूट पड़े हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो इस मुद्दे के बहाने खुद को भुना रहे हैं। कुछ सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर ने पूरे मामले पर इतनी भद्दी पोस्ट शेयर की है कि बिना बीप के उन्हें आपके साथ शेयर कर पाना भी मुश्किल ही है। इतना ही नहीं अंबेडकरवादियों ने 15 अक्टूबर तक ग्वालियर पहुंचकर अनिल मिश्रा से आमना-सामना करने की चेतावनी भी दी है। ये खबर तेजी से फैली जिसके बाद पुलिस प्रशासन भी मुस्तैद हो गया है। ताजा खबर ये है कि पुलिस प्रशासन ने बाहरी लोगों की एंट्री ग्वालियर चंबल में बैन कर दी है। डर इस बात का है कि ये मुद्दा बड़े आंदोलन में तब्दील न हो जाए। ऐसा हुआ तो सवर्ण हो या दलित दोनों की नाराजगी बीजेपी को ही झेलनी पड़ेगी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में तो ये अंदेशा भी जताया जा चुका है कि ये नेपाल की तर्ज पर ग्वालियर चंबल में आंदोलन भड़कने की आशंका है। इसलिए अनिल मिश्रा के घर के इर्द-गिर्द भी चाकचौबंद चौकसी कर दी गई है। खुद पुलिस महकमे के बड़े अफसर मैदान में उतर चुके हैं।

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बिहार चुनाव पर असर डालेगा मामला

अब यहां सवाल ये उठता है कि ये मुद्दा इतना बड़ा कैसे बन सकता है। क्या इसके पीछे कोई पॉलिटिकल पावर नहीं है। इस मुद्दे के साथ-साथ अफवाहों का बाजार भी गर्म है। जहां ये अटकलें परोसी जा रही हैं कि बीजेपी के ही कुछ नेता गुपचुप तरीके से अनिल मिश्रा को सपोर्ट कर रहे हैं। इसके बाद ही इस नरेटिव पर इतना सियासी रंग चढ़ सका है। लेकिन, ये नरेटिव अगर कमजोर नहीं पड़ा तो मध्यप्रदेश में तो बाद में असर दिखाएगा। पहले बिहार के चुनाव पर असर डालेगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि ये आग भड़की तो राहुल गांधी के संविधान बचाओ मुहिम को ज्य़ादा ताकतवर बना देगी। बिहार में आरक्षित वर्ग की भी अच्छी खासी तादाद है। वो वोटर बीजेपी से नाराज हो सकता है। और, सवर्णों की भी वहां कमी नहीं है। इसलिए सवर्ण नाराज हुए तो बीजेपी को उसका भी नुकसान उठाना पड़ेगा। वैसे भी सवर्ण बीजेपी के कोर वोटर हैं। और, हम पिछले एपिसोड में बता ही चुके हैं कि वो किस कदर इस मुद्दे पर बीजेपी से खार खाए बैठे हैं।

बीजेपी को सोच-समझकर उठाना होगा कदम 

बात करें मध्यप्रदेश की तो बीजेपी को याद रखना चाहिए या याद ही होगा कि नगरीय निकाय चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं। ब्राह्मण वर्सेज दलित की ये आंधी नगर सरकार को कमजोर कर सकती है या फिर उखाड़ भी सकती है। ग्वालियर ऐसी सीट है जो सियासत और रियासत का तो मेल है ही। इसके साथ ही यहां पर ब्राह्मण, ओबीसी, क्षत्रिय सब मिलकर पार्टी या प्रत्याशी का भविष्य तय करते हैं। यही वो दिग्गज हैं जो लोकसभा और विधानसभा दोनों का मुकद्दर बनाते या बिगाड़ते हैं। इसलिए बीजेपी किसी भी वर्ग को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती। दूसरी तरफ कांग्रेस है जिसके पास खोने के लिए कुछ नहीं है। उल्टे वो दलित और आरक्षित वर्ग का साथ देकर उनके बीच अपनी पैठ और गहरी कर सकती है। इसलिए कांग्रेस खुलकर खेल रही है। बीजेपी को इस मामले में सोच समझ कर कदम उठाना जरूरी तो है ही, अपने ही घर के भेदियों को भी खोजना है।

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सीएम डॉ.मोहन यादव ने सूबे का सरदार बनने के बाद कई मुश्किल और कड़े फैसले लिए हैं। लेकिन असल सियासी परीक्षा अब उनके सामने खड़ी है। इसे पास कर गए तो उनका नाम भी सियासी रूप से चतुर और राजनीति के चाणक्य के रूप में पहचाना जा सकेगा।

इस नियमित कॉलम न्यूज स्ट्राइक (News Strike) के लेखक हरीश दिवेकर (Harish Divekar) मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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