/sootr/media/media_files/2025/10/15/news-strike-9-2025-10-15-20-14-14.jpeg)
Photograph: (thesootr)
न्यूज स्ट्राइक (NEWS STRIKE) : मध्यप्रदेश बीजेपी में मोहन और हेमंत की टीम में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कद घटाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि हेमंत खंडेलवाल की लिस्ट पर दिल्ली ने ही सवाल उठा दिए हैं।
पहले मोहन कैबिनेट में सिंधिया समर्थकों की कमी, फिर ग्वालियर की लगातार अनदेखी पर नाराजगी और अब सिंधिया समर्थकों को बीजेपी की तरफ से ये तीसरा झटका होगा। खंडेलवाल की बनाई लिस्ट के ऐलान पर ब्रेक लगने की वजह से ये संशय गहरा गया है कि अब सिंधिया खेमे के खूंटे एक-एक कर उखाड़ने शुरू कर दिए गए हैं।
बीजेपी के नियमों के तहत ही बनेगी कार्यकारिणी
शिवराज सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके खेमे का बोलबाला रहा। सिंधिया ने जितने चाहे उतने समर्थकों को कैबिनेट में जगह दी। सिर्फ जगह ही नहीं दी गई, मनचाहे विभाग भी उन्हीं के सुपुर्द किए गए। ऐसा ही बीजेपी कार्यकारिणी में भी हुआ था।
सिंधिया के साथ हुए मासिव दल बदल के बाद बीजेपी की जो कार्यकारिणी बनी। उसमें भी बड़ी संख्या में सिंधिया समर्थकों को एडजस्ट किया गया। जिसकी वजह से कार्यकारिणी काफी बड़ी हो गई, लेकिन इस बार आलाकमान ने साफ संकेत दे दिए हैं कि कार्यकारिणी बीजेपी के नियमों के तहत ही बनेगी। यानी इस बार जंबो कार्यकारिणी रखना हेमंत खंडेलवाल के लिए आसान नहीं होगा।
ये खबर भी पढ़ें...
News Strike: सीएम मोहन यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती, सही फैसला बनाएगा राजनीति का चाणक्य !
आलाकमान ने लौटाई जंबो कार्यकारिणी की लिस्ट
हम 'द सूत्र' पर आपको पहले ही ये बता चुके हैं कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल अपनी कार्यकारिणी फाइनल कर चुके हैं। इस लिस्ट को वो दिल्ली तक भी पहुंचा चुके हैं, लेकिन लिस्ट पूरी देखने से पहले आलाकमान ने कार्यकारिणी की सदस्य संख्या देखकर ही उसे लौटा दिया।
अंदरखानों की खबर ये है कि खंडेलवाल ने अपनी लिस्ट में करीब 38 प्रमुख पदाधिकारी रखे थे। इन पदाधिकारियों में 1 संगठन महामंत्री, 5 महामंत्री, 14 उपाध्यक्ष और 14 संगठन मंत्री शामिल किए गए थे। जबकि बीजेपी का संविधान ये है कि उपाध्यक्ष और मंत्री सिर्फ दस-दस ही रखे जा सकते हैं। एक बार टोकने के बाद इस संख्या को 14 से घटाकर 12 कर दिया गया था, लेकिन आलाकमान उस पर भी राजी नहीं हुए। बताया जा रहा है कि दिल्ली ने 12 का आंकड़ा भी खारिज कर दिया है। यानी खंडेलवाल को दस पर अपनी टीम को समेटना ही होगा।
ये खबर भी पढ़ें...
सिंधिया समर्थकों के नाम कटने की खबर ज्यादा
इसके बाद खंडेलवाल के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो चुकी है। वो आखिर किस दिग्गज के चहेते नेता का या समर्थक का पत्ता कट करेंगे ये आसान काम नहीं है। क्योंकि ये बात तो जाहिर है कि कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर और शिवराज सिंह चौहान सरीखे नेता जरूर ये चाहेंगे कि उनके खास नेता बीजेपी की कार्यकारिणी का हिस्सा बने रहे। इस मामले में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी पीछे नहीं रहेंगे, लेकिन उनके समर्थकों के ही नाम कटने की संभावना सबसे ज्यादा नजर आ रही है। क्योंकि पार्टी क्राइटेरिया पर बात आई और नए पुराने नेताओं में से चुनने की शर्त रख दी गई तो सिंधिया समर्थक ही सब से पहले कार्यकारिणी से बाहर होंगे।
ये खबर भी पढ़ें...
अब बीजेपी में सिंधिया युग का सूरज ढल रहा है!
वैसे भी पहले जंबो कार्यकारिणी की परमिशन सिर्फ खास परिस्थिति में दी गई थी। सिंधिया के पार्टी में शामिल होने के बाद पार्टी ने उनकी हर शर्त मानी। सभी जगह उनके समर्थक एडजस्ट हुए। जिसका मैसेज पूरे देश की राजनीति में कुछ यूं गया कि दल बदल करके आने वाले नेताओं को बीजेपी में पूरा मान सम्मान और हक अधिकार मिलते हैं, लेकिन अब बीजेपी को ऐसे किसी दिखावे की जरूरत नहीं है। इसलिए ये कहा जाए कि सिंधिया युग का सूरज अब बीजेपी में धीरे-धीरे ढल रहा है तो शायद मेरी इस बात का कोई बुरा भी नहीं मानेगा।
आप अगर मोहन सरकार बनने के बाद से लेकर अब तक की सियासी जमावट पर गौर करें तो आप भी यही कहेंगे कि अब सिंधिया युग बीजेपी में खत्म होने की कगार पर हैं। इस बार मोहन मंत्रिमंडल में भी सिर्फ तीन सिंधिया समर्थकों को जगह मिली है। जिसमें तुलसीराम सिलावट, प्रद्युम्न सिंह तोमर और गोविंद सिंह राजपूत शामिल हैं।
निगम मंडलों की नियुक्ति की बात करें तो उसका ऐलान कब होगा ये कहा नहीं जा सकता। क्या इमरती देवी जैसे सिंधिया समर्थकों को इस बार कोई लाभ का पद मिल सकेगा या सिंधिया खुद उन्हें कोई पद दिलवा सकेंगे इस पर भी संशय ही बना हुआ है। ग्वालियर की अनदेखी भी लगातार नाराजगी का विषय बनी हुई है। इस मामले में तो सिंधिया के खासमखास प्रद्युम्न सिंह तोमर का भी दर्द छलक ही उठा है कि ग्वालियर को जरूरत के हिसाब से तवज्जो नहीं मिल रही है।
ये खबर भी पढ़ें...
सिंधिया के गढ़ और उनके समर्थक दोनों ही इग्नोर
तोमर इस बात पर भी नाराजगी जता चुके हैं कि ग्वालियर को जितने उद्योग मिलने चाहिए उतने नहीं मिल रहे हैं। सामाजिक न्याय मंत्री नारायण सिंह कुशवाह भी कह चुके हैं कि सिंधिया भले ही गुना शिवपुर के सांसद हैं, लेकिन उन्हें ग्वालियर पर भी ध्यान देना ही होगा। जिससे ये साफ है कि सिंधिया के गढ़ और उनके समर्थक दोनों ही इग्नोर हो रहे हैं।
मध्यप्रदेश में होने वाले पीएम नरेंद्र मोदी या गृह मंत्री अमित शाह के कार्यक्रम में भी सिंधिया नजर नहीं आए। जिसके ये मायने निकाले जा रहे हैं कि मोहन और हेमंत के युग की भाजपा में अब सिंधिया का कद घटाने की तैयारी पूरी हो चुकी है।