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Photograph: (thesootr)
NEWS STRIKE: विधानसभा चुनाव हुए ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है, लेकिन बीजेपी चुपचाप बैठने को तैयार नहीं है। एक चुनाव हुए दो साल भी नहीं हुए हैं और दूसरे चुनाव में तीन साल का फासला है, लेकिन बीजेपी इस तरह तैयारियों में जुट गई है जैसे चुनाव तीन ही महीने बाद होने वाले हों।
प्रदेश का पूरा पॉलिटिकल सिनेरियो देखें तो चुनाव जीत चुकी बीजेपी अगले चुनाव के लिए एक्टिव दिख रही है और सिर्फ 66 सीटें जीती कांग्रेस अब भी स्पीड नहीं पकड़ पाई है। प्रदेश की आरक्षित सीटों की ताकत पहचान कर बीजेपी ने अभी से वहां पर पैठ जमाने की तैयारी कर ली है।
आओ और फिर बार-बार आते रहो
चुनाव में मतदाताओं को अपनी और खींचने की ताकत हर पार्टी करती है, लेकिन ये कोई बाजार नहीं है जहां पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर मतदाताओं का साथ मिलता है। यहां तो आओ और फिर बार-बार आते रहो और फिर वहीं बने रहो की तर्ज पर मतदाताओं को अपनी ओर खींचा जा सकता है। ये बात बीजेपी बखूबी समझ चुकी है।
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बीजेपी की लगातार सोशल इंजीनियरिंग जारी
महज एक प्रतिशत वोट के हेरफेर से साल 2018 का चुनाव हारने वाली बीजेपी प्रदेश में आरक्षित सीटों की ताकत बहुत अच्छे से जान चुकी है। उसके बाद से इन इलाकों में बीजेपी ने लगातार सोशल इंजीनियरिंग और पॉलिटिकल इंजीनियरिंग जारी रखी। नतीजा ये हुआ कि 2018 में सौ से ज्यादा सीटें हासिलक करने वाली कांग्रेस 66 पर सिमट कर रह गई और बीजेपी ने जीत हासिल की।
ये जीत बीजेपी ने सबक की तरह सीख भी ली है। उसे ये अंदाजा हो चुका है कि आरक्षित सीटों पर चुनाव नजदीक आने पर ही काम करते रहना काफी नहीं है। इन सीटों को अपना पक्का वोटबैंक बनाने के लिए एक सोची समझी रणनीति के तहत लगातार बने रहना जरूरी है। इस दिशा में तेजी से काम भी शुरू करने की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
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घर-घर संपर्क अभियान की प्लानिंग शुरू
बीजेपी ने उन सीटों की लिस्ट बनाई है जहां उसका परफोर्मेंस कमजोर रहा। जिसकी वजह से विधानसभा सीटें हाथ से निकल गईं या फिर कम वोटों के अंतर से जीत हासिल हुई। लोकसभा की बात करें तो बीजेपी सारी सीटें जीतने में कामयाब रही। फिर भी जहां जहां से वोट कम मिले। ऐसे इलाकों पर गौर कर रही है और जनधारा जुटाने के लिए खास अभियान चलाने की तैयारी में है।
इसकी अहम जिम्मेदारी पार्टी का अनुसूचित जनजाति मोर्चा संभालेगा। बार-बार जीतने के बाद और बड़ी जीत हासिल करने के बाद भी बीजेपी एससी एसटी सीटों पर खुद को कमजोर महसूस कर रही है। ये कमजोरी कभी भी हार में तब्दील हो सकती है। ये जानने के बाद बीजेपी ने तय कर लिया है कि इन सीटों पर रिस्क नहीं लेना है। इसलिए ऐसी सीटों पर बूथवार घर-घर संपर्क अभियान चलाने की प्लानिंग शुरू हो चुकी है।
इसके अलावा आरक्षित सीटों पर जनजाती से जुड़े जुन नायकों की जयंती भी मनाई जाएगी। जिसके बहाने पब्लिक गेदरिंग बढ़ेगी और सरकार की योजनाओं का प्रचार प्रसार होगा। साथ ही बीजेपी उनके प्रति अपने विजन और आइडियोलॉजी को भी साझा कर सकेगी।
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छोटे-छोटे ग्रुप्स में माइक्रो लोकल लेवल प्लानिंग
बिरसा मुंडा की जयंती पर भी ऐसी सीटों के गांव से लेकर शहर तक खास आयोजन किए जाने वाले हैं। समुदाय से जुड़े पार्टी के पुराने नेताओं और प्रतिष्ठित लोगों को भी एक मंच पर लाने की कोशिश है। गांव और शहरों तक ऐसे आयोजन करना फिर भी आसान होता है, लेकिन छोटे छोटे कस्बों और टोलों में पहुंच बनाना मुश्किल हो जाता है। बीजेपी इस पर भी गंभीरता से गौर कर रही है।
बीजेपी की प्लानिंग ये है कि वो किसी एक जगह पर बड़ा कार्यक्रम करने की जगह छोटे-छोटे ग्रुप्स में बंट कर माइक्रो लोकल लेवल तक पेनिट्रेट करेगी। प्लान ये है कि छोटी-छोटी टोलियां बनाई जाएंगी जो दूर दराज के गांव और कस्बो तक में जाएंगी और पार्टी की गतिविधियों की जानकारी लोगों तक देगी और उनकी जरूरतों को भी सुनेंगी।
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बीजेपी कुछ सीटों पर भी रिस्क लेने के मूड में नहीं
साल 2019 से बीजेपी ऐसी सीटों पर पहले से ज्यादा एक्टिव है जहां जनजातियों की आबादी घनी है। यहां लगातार बैठकें भी हो रही हैं पर आदिवासी बहुल इलाके भी बीजेपी की पहुंच से दूर हैं। ये वोटबैंक अब भी कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा है।
कांग्रेस चाहे तो आदिवासी वोटर्स को और मजबूती से अपनी ओर ला सकती है। वैसे तो कांग्रेस की पूरी कोशिश है कि वो प्रदेश में सत्ता में वापसी करे। इसके लिए कांग्रेस के भी अलग-अलग कैंप लग रहे हैं। उसके बावजूद मैदान में तेजी नदारद दिखती है।
बीते कुछ सालों में कांग्रेस का जो हाल है उसे देखकर ये भी नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस गुपचुप तरीके से किसी रणनीति पर काम कर रही है और आने वाले चुनाव में नतीजे बदल देगी। दूसरी तरफ बीजेपी कुछ सीटों पर भी रिस्क लेने के मूड में नहीं है। प्रदेश की सत्ता में रहते हुए बीजेपी को बीस साल हो चुके हैं। जाहिर तौर पर वापसी करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। विडंबना ये है कि तैयारियो में जो धार दिखनी चाहिए, वो भी कांग्रेस में अब तक नजर नहीं आ रही है।
आने वाले चुनाव में भी कांग्रेस की जीत होगी दूर की कौड़ी?
एक कहावत है कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। पर कांग्रेस का हाल तो ये है कि वो ठंडे छींके से भी खुद को जला चुकी है। बीते विधानसभा चुनाव में जीत पक्की मानकर कांग्रेस इतने आत्मविश्वास से भर गई कि चुनावी मैदान में एक्टिव ही नहीं दिखी और हार का मुंह देखना पड़ा। अब भी कांग्रेस ने सबक नहीं लिया तो हो और रफ्तार नहीं पकड़ी तो आने वाले चुनाव में भी जीत दूर की कौड़ी साबित हो सकती है।
News Strike Harish Divekar | न्यूज स्ट्राइक | न्यूज स्ट्राइक हरीश दिवेकर | एमपी बीजेपी | एमपी कांग्रेस
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