SATNA: क्या सिद्धार्थ का बाड़ा तोड़ पाएगा सईद का हाथी! 90 के दशक से BSP क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही

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Sachin Tripathi
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SATNA: क्या सिद्धार्थ का बाड़ा तोड़ पाएगा सईद का हाथी! 90 के दशक से BSP क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति दर्ज करा रही

Satna. नगर निगम (nagar nigam satna) के महापौर के चुनाव में लाख टके का सवाल यह है कि क्या सईद (saeed Ahmad) का हाथी सिद्धार्थ (siddhartha kushwaha) के बाड़े को तोड़ पाएगा? क्योंकि सिद्धार्थ आज भले ही कांग्रेस में हो लेकिन उनकी पहचान अभी भी बहुजन समाज पार्टी से है। इसकी वजह यह रही कि सिद्धार्थ के पिता स्वर्गीय सुखलाल कुशवाहा (sukhlal kushwaha) की राजनीति बहुजन समाज पार्टी के गर्भनाल से जुड़ी रही। इसी बहुजनी परिवेश में सिद्धार्थ का लालन-पालन हुआ है। सुखलाल ने सतना लोकसभा में कांग्रेसी के चक्रव्यूह को तोड़ने का तिलिस्म भी कर चुके हैं। उन्होने ने सिद्धार्थ को बीएसपी के बीजमंत्र सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय का ही पाठ पढ़ाया। ऐसे में महापौर (mayor) के चुनाव में कांग्रेसी कुनबे से विधायक सिद्धार्थ और पिछले दिनों तक इसी पार्टी प्रदेश उपाध्यक्ष रहे सईद अहमद के बीच वोट की लड़ाई लाजिमी है। रही बात बीजेपी की तो उसने योजनाओं के सहारे बीएसपी के कोर वोट पर पहले ही सेंध लगा चुकी है। हालांकि यह सब रिजल्ट में पता चलेगा। 





12 साल पहले शहर में घुसा था हाथी  





सतना की शहर सरकार में वर्ष 2010 से पहले भगवा झंडा लहरा रहा था। तब बीजेपी की विमला पांडेय महापौर थीं। इसी वर्ष बहुजन समाज पार्टी ने क्षत्रप पुष्कर सिंह तोमर को महापौर पद के लिए राजी कर लिया। 11 जनवरी 2010 को पुष्कर महापौर की कुर्सी में बैठ गए। बीजेपी की ओर से पूर्व जिलाअध्यक्ष राजकुमार मिश्रा मैदान में थे। यहीं से गहरी नीली क्रांति ने शहर की राजनीति में प्रवेश किया था लेकिन एक ऐसा वक्त आया कि हाथी सवार महापौर को न्याय की ड्योढ़ी तक जाना पड़ा। उसी साल कार्यकाल के आठवें माह कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। दो माह  इंतजार के बाद फिर कुर्सी मिली तब तक गहरा नीला रंग भगवा चोले में बदल गया था। उस दौरान बीएसपी से सांसद रहे स्वर्गीय सुखलाल कुशवाहा और हरिजनों के बीच खासे लोकप्रिय बैजनाथ चौधरी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। 





कौन सा 'हाथ' थमेगा सईद की विजय पताका 





दलों के असंतुष्टों को 'कैश' कराने की राजनीति में माहिर बीएसपी के हाथी ने तिरछी चाल चली है। कांग्रेस पार्टी से नाराज चल रहे प्रदेश उपाध्यक्ष सईद अहमद को बीएसपी ने पूंछ पकड़ा दी। पिछले दिनों सईद ने कांग्रेस से नाता तोड़ दिया। अब उन पर बीएससी वर्ष 2010 वाले पुष्कर सिंह की जीत वाला फार्मूला लगा रही है लेकिन अब न सुखलाल कुशवाहा है न ही बैजनाथ चौधरी। सुखलाल का देहांत हो चुका है। जबकि उनका बेटा सिद्धार्थ कुशवाहा स्वयं प्रतिद्वंदी है। यही नहीं बीजेपी ने भी बीएसपी (bahujan samaj party)  के कोर वोट बैंक को आवास और मुफ्त में अनाज देकर लगभग अपनी ओर कर लिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि सईद की विजय पताका को कौन साथ हाथ थमेगा? आपको बता दें कि सईद के वालिद मरहूम बैरिस्टर गुलशेर अहमद है। वह कांग्रेस (all india congress) की ओर से एमएलए, विधानसभा अध्यक्ष और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल तक रहे। 





चित्रकूट के रास्ते 29 साल पहले दी थी दस्तक 





बहुजन समाज पार्टी की गर्भनाल भले ही उत्तरप्रदेश में गड़ी हो लेकिन इसका असर मध्यप्रदेश के सीमाई जिलों में देखने को मिलता आ रहा है। अकेले सतना जिले में बहुजन समाज पार्टी 90 के दशक से अपनी जबरदस्त उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही है। यही कारण है कि उसने अपने कोर वोट जिसमें हरिजन समाज ज्यादा आता है, इसके बूते एक सांसद और तीन-तीन विधायक दे चुकी हैं। आज से 29 साल पहले हाथी ने चित्रकूट के रास्ते सतना में जोरदार दस्तक दी थी। वर्ष 1993 में चित्रकूट विधानसभा से बीएसपी का विधायक चुना गया था। गणेश बारी को बीएसपी ने अपना प्रत्याशी बनाया था। तब गणेश बारी ने 18744 वोट पाए थे और तब के जनता दल के कदवर नेता और दो बार के विधायक रामानंद सिंह को 5261 मतों से हरा दिया था। इसी साल रामपुर बाघेलान से बीएसपी के प्रत्याशी रामलखन सिंह ने हर्ष सिंह को पटखनी दी थी।





रामलखन को 31306 और कांग्रेस के हर्ष सिंह को 22732 मत मिले थे। इसके बाद चित्रकूट में खाता नहीं खुला लेकिन 2008 में एक बार फिर रामलखन सिंह रामपुर बाघेलान के विधायक चुने गए। उस समय भी हर्ष सिंह निकटतम प्रतिद्वंदी थे लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। रामलखन के अलावा ऊषा चौधरी भी विधायक चुनी गई। उन्होने वर्ष 2013 में रैगांव विधानसभा में बसपा का परचम लहराया था। बसपा की ऊषा को तब 42 610 वोट, भाजपा प्रत्याशी पुष्पराज बागरी को 38501 और कांग्रेस के गया प्रसाद बागरी को 27708 वोट मिले थे। पुष्पराज बागरी पूर्व मंत्री स्वर्गीय जुगल किशोर बागरी के बड़े बेटे हैं। इससे पहले 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रत्याशी सुखलाल कुशवाहा ने जीत दर्ज की थी। तब मैदान में प्रदेश के दसवें मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सखलेचा भारतीय जनता पार्टी की ओर से लोकसभा प्रत्याशी थे और कांग्रेस से अलग होकर बनी तिवारी कांग्रेस की ओर से प्रदेश के बारहवें मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी मैदान में थे। इन दो मुख्यमंत्रियों को पछाड़ते हुए बीएसपी के प्रत्याशी सुखलाल ने जीत दर्ज की थी। सुखलाल को तब 182497, वीरेंद्र  कुमार सखलेचा को 160259 और अर्जुन सिंह को 125653 वोट मिले थे। 





कहीं वोट कटुआ न साबित हो बीएसपी 





सतना नगर निगम के महापौर के चुनाव में निर्णायक वोट ब्राह्मण का माना जाता है। निगम क्षेत्र में करीब 35 हजार ब्राह्मण मतदाता है लेकिन नगर सीमा में बसे हरिजन-आदिवासी का वोट भी मायने रखता है। बीएसपी का पहला महापौर को भी सीमाई जनसंख्या ने भी खुल कर वोट किया था। जबकि इस पर की स्थितियां विपरीत हैं। कोर सिटी में बीजेपी का दबदबा है जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी का सीमाई जनसंख्या में अच्छी खासी उठक बैठक है।  यही बीएसपी को कोर वोट है लेकिन सईद अहमद के प्रत्याशी घोषित होने के बाद बीएसपी का यह वोट छिटक सकता है। राजनीतिक पंडित यही मान रहे हैं कि बीएसपी के प्रत्याशी का सीधा असर कांग्रेस के वोट बैंक पर पड़ेगा। 



 



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