कचरे के डिब्बे में क्यों पड़ी रहीं माननीयों की सिफारिशें, क्यों परेशान हैं मंत्री और कौन हैं किस्मत के मारें

छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत उठापटक चल रही है। सरकार होने के बाद भी सत्ताधारी पार्टी के माननीय दुखी हैं। उनकी सिफारिशों को मंत्री कचरे के डिब्बे में फेंक देते हैं। अब वे संगठन से शिकायत कर रहे हैं।

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Arun Tiwari
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रायपुर : छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत उठापटक चल रही है। सरकार होने के बाद भी सत्ताधारी पार्टी के माननीय दुखी हैं। उनकी सिफारिशों को मंत्री कचरे के डिब्बे में फेंक देते हैं। अब वे संगठन से शिकायत कर रहे हैं। वहीं माननीय ही नहीं मंत्रीजी भी परेशान हैं। उनके साथ ऐसे लोग बैठे हैं जिनसे उनकी पटरी नहीं बैठ पा रही। कुछ लोग मुकद्दर के सिकंदर होते हैं तो कुछ लोग किस्मत के मारे। प्रदेश के कई नेता और अफसर अपनी किस्मत से परेशान हैं। दुखी तो वे लोग भी हैं जिनको लाखों के चढ़ावे के बाद भी मनमुताबिक पोस्टिंग नहीं मिली। प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों की ऐसी ही अनसुनी खबरों के लिए पढ़िए द सूत्र का साप्ताहिक कॉलम सिंहासन छत्तीसी। 

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ताबदले में नहीं चली माननीयों की

बीजेपी के माननीय अपनी सरकार बहुत मायूस हैं। उनकी मायूसी का कारण हाल ही में चला तबादलों का दौर है। तबादलों के लिए पाबंदी हटी और फिर मियांद खत्म हुई तो पांच दिन और बढ़ा दिए। मसला ये है कि तबादलों के इस दौर में माननीयों यानी विधायकों की नहीं चली। उन्होंने अपने करीबियों के ट्रांसफर पोस्टिंग की सिफारिशी चिट्ठियां मंत्रियों के पास भेजी लेकिन उनका काम नहीं हुआ। मंत्री बंगलों के करीबियों ने उनको बताया कि आपकी सिफरिश तो कूड़ेदान में पड़ी हैं। उन पर कोई गौर नहीं किया गया। यह कोई एक या दो विधायकों की पीड़ा नहीं है बल्कि अधिकांश विधायकों के साथ यही हुआ।

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अपनी सरकार से दुखी माननीय अब संगठन से शिकायत कर इस मामले में कुछ कदम उठाने की मांग कर रहे हैं। अब गेंद संगठन के पाले में है कि वो माननीयों की मायूसी दूर करने के लिए क्या कदम उठाता है क्योंकि आने वाले दिनों में संगठन के कार्यक्रमों का पूरा कैलेंडर तैयार है और यदि विधायकों ने इस पर ध्यान नहीं दिया तो आयोजन फ्लॉप हो जाएंगे और बीजेपी की बड़ी किरकिरी होगी।

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सीएम की लगाम,मंत्री परेशान 

विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बने करीब डेढ़ साल हो गया और अब वे अपनी कार्यशैली बदलने लगे है। वे अब ज्यादा टफ लुक में दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने सत्ता की लगाम खींचनी शुरु कर दी है। इसका असर ये हो रहा है कि इससे मंत्री परेशान हो रहे हैँ। विष्णु सरकार के आधे ज्यादा मंत्री अपने सेक्रटरी से खुश नहीं हैं। यानी मंत्री और और उनके सचिवों की पटरी नहीं बैठ पा रही है। तीन मंत्रियों को छोड़ दें तो बाकी मंत्रियों और सचिवों में अनबन चल रही है।

कहा तो ये भी जा रहा है कि इस तरह की पोस्टिंग जानबूझकर और सोच समझकर की गई है ताकि माननीयों की मनमानी की शिकायतों पर लगाम कस सके। कुछ तेज तर्रार सेक्रेटरी के चलते तो मंत्रियों को खुद ही दस,बीस हजार का हिसाब करना पड़ रहा है। इस बात की शिकायत सीएम हाउस तक पहुंची है लेकिन जब जमावट ही इस तरह की गई हो तो फिर इन शिकायतों से क्या फर्क पड़ता है। 

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लाखों के चढ़ावे के बाद भी मनमाफिक प्रसाद नहीं 

तबादलों के इस दौर में लाखों का खेल चला है। एक डॉक्टर ने मोटी रकम देकर अपनी पोस्टिंग दूसरी जगह करवाई। लेकिन ज्वाइनिंग के कुछ दिन बाद ही वहां पर दूसरे डॉक्टर की पोस्टिंग कर दी गई। खबर ये आई कि दूसरे ने पहले से ज्यादा चढ़ावा चढ़ाकर पोस्टिंग पा ली। लेकिन अब पहले वाले डॉक्टर साहब का पैसा तो डूब गया क्योंकि वे अब पैसा मांग भी नहीं पा रहे। इसके अलावा सूबे के 46 इंस्पेक्टर प्रमोट होकर डीएसपी बने।

इस प्रमोशन के लिए उन्हें बड़े पापड़ बेलने पड़े। दावेदारों ने व्यवस्था कर पांच-छह पेटी खर्च किया। पीएससी से लेकर मंत्रालय तक फाइल खिसकाने के लिए खासी तीमारदारी करनी पड़ी। लेकिन इनके सिर मुंडाते ही ओले पड़ गए। आधे को अफसर बनाकर बस्तर पटक दिया। अब वे पछता रहे हैं कि इससे अच्छे तो वे थानेदार ही थे, कम से कम रौब तो चलता था। 

किस्मत के मारे ये बेचारे

किस्मत का भी अजीब खेल है, थोड़ी सी नजर बची और दुर्घटना घटी। छत्तीसगढ़ की राजनीति में कुछ इसी तरह के नजीर देखने को मिल रहे हैं। लेकिन कहा जाता है कि किस्मत पर किसका जोर है। सीएस वाले मामले में ही देख लीजिए। एक साहब दूल्हा बनकर मंडप में बैठने ही वाले थे लेकिन पहले वाले उठे ही नहीं। अब तीन महीने बाद क्या होता है ये कौन जाने। ये तो ताजा उदाहरण है लेकिन किस्मत की रेखाओं का इतिहास बहुत पुराना है।

सीएम पद के दावेदार दिलीप सिंह जूदेव की किस्मत ने उन्हें स्टिंग कांड में फंसा दिया और रमन सिंह सीएम बन गए। किस्मत के मारे टीएस सिंहदेव वादे के बाद भी ढाई साल सीएम नहीं बन पाए। किस्मत तो भूपेश बघेल के साथ थी। इसी तरह बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे अरुण साव तो खुद को सीएम मान चुके थे लेकिन अचानक बगिया से विष्णुदेव का राजयोग सामने आ गया।

रमन सिंह ने भी नहीं सोचा था कि 15 साल के सीएम के अनुभव के बाद उनको यह मौका नहीं मिलेगा। किस्मत की एक और रोचक बात है। मंत्रिमंडल में अमर अग्रवाल,अजय चंद्राकर और राजेश मूणत जैसे नेता नहीं होंगे और टंकराम वर्मा और श्याम बिहारी जायसवाल मंत्रिमंडल के सदस्य होंगे यह भी कल्पना से परे था। लेकिन यही हैं किस्मत के लेखे,जो लोगों ने देखे।

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