संजय गुप्ता @INDORE.
जबलपुर हाईकोर्ट ने राज्य सेवा परीक्षा 2022 के प्री के दो सवालों को लेकर लगी याचिका पर सुनवाई करने के बाद मेरिट के आधार पर फैसला लेते हुए उम्मीदवारों की याचिका खारिज कर दी। इसमें आयोग द्वारा दोनों प्रश्नों के जवाब विकल्प में मेल नहीं खाने के चलते इन्हें डिलीट किया गया था, इस पर जबलपुर हाईकोर्ट ने इस फैसले को सही बताया है। लेकिन इस मामले में अब नया पेंच उन 71 उम्मीदवारों के लिए आ गया है जिन्हें इंदौर हाईकोर्ट ने अंतरिम राहत देते हुआ आयोग को इनके मेंस के फार्म भरवाने के आदेश दिए। अब आयोग के ऊपर विधिक रूप से यह बाध्यता नहीं रहती कि वह इनके फार्म भरवाए, अब इसी मुद्दे पर आयोग विधिक विचार कर रहा है और इसके बाद ही आगे फैसले लेगा।
फैसला नहीं हुआ तो फिर क्या संभव होगा-
यदि आयोग को इंदौर हाईकोर्ट के अंतरिम राहत वाले आदेश को मानना हुआ तो फिर ऐसे में यह भी तय है कि भले ही यह उम्मीदवार मैंस में बैठ जाएं, लेकिन इंदौर हाईकोर्ट की अगली सुनवाई जब भी होगी तो पीएससी द्वारा जबलपुर हईकोर्ट का मेरिट के आधार पर हुआ फैसला रखा जाएगा और ऐसे में इन उम्मीदवारों की कॉपियां चेक नहीं की जाएंगी और इन्हें बाहर ही माना जाएगा।
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जबलपुर हाईकोर्ट ने क्यों माना भारत छोड़ो आंदोलन आठ अगस्त से ही
- पीएससी ने प्री में सवाल किया था कि भारत छोड़ो आंदोलन कब हुआ, इसमें विकल्प में सात अगस्त 1942, नौ अगस्त 1942, 10 अगस्त 1942 और 6 अगस्त 1942 का विकल्प था।
हाईकोर्ट ने यह माना- इसमें आयोग ने पहले आंसर की में नौ अगस्त को सही विकल्प माना लेकिन फिर दावे आपत्तियों के बाद सवाल को डिलीट कर दिया। हाईकोर्ट में विशेषज्ञ कमेट की रिपोर्ट पेश की गई और हाईकोर्ट ने माना कि एनसीआरटीई की बुक में हैं कि आठ अगस्त की आधी रात को मूवमेंट शुरू हुआ और नौ अगस्त को कांग्रेस लीडर गिरफ्तार हो गए। यानि जवाब आठ अगस्त है जो विकल्प में नहीं था इसलिए आयोग का फैसला सही है।
- वहीं एक सवाल था कि मप्र में राज्य निर्वाचन आयोग कब अस्तित्व में आया, इसमें विकल्प थे कि 15 जनवरी 1994, एक फरवरी 1994, 15 मार्च 1994 और 15 अप्रैल 1994.
हाईकोर्ट ने यह माना- हाईकोर्ट ने माना कि विशेषज्ञ कमेटी के पास आए दस्तावेज के आधार पर तय है कि गठन एक फरवरी को हुआ लेकिन अस्तित्तव में आयोग 15 फरवरी को आया जो विकल्प में नहीं है। इसलिए आयोग का इन प्रश्न को डिलीट करना जायज है।
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हाईकोर्ट ने इसलिए खारिज की याचिका-
हाईकोर्ट ने इसके बाद यह याचिका हस्तक्षेप योग्य नहीं मानी। हाईकोर्ट का साफ कहना है कि राहत मांगने वाले उम्मीदवारों ने जो दोनों जवाब दिए वह गलत ही थे, इसलिए उन्हें राहत नहीं मिल सकती। विकल्प में यह थे ही नहीं। इसलिए याचिका खारिज की जाती है। उम्मीदारों का कहना था कि यह दो प्रशन हमारे सही थे, इनके चार अंक जुड़ते तो हम भी मैंस के लिए क्वालीफाइ कर जाते। लेकिन हाईकोर्ट ने तर्क को खारिज कर दिया। यदि हाईकोर्ट आयोग के पक्ष को गलत मानकर फैसला सुनाता तो फिर पूरा प्री का रिजल्ट ही बदल जाता, क्योंकि नए सिरे से इन दोनों प्रशन के अंक जुड़ते हैर नए सिरे से मेरिट बनती। आयोग ने दोनों प्रश्न को हटाकर सौ की जगह 98 अंकों में से सभी उम्मीदवारों की मार्किंग की थी। इसमें अनारक्षित मेल के लिए कटऑफ 160 अंक गए थे।