4 टोल-प्लाजा पर वाहनों को फ्री दिखाकर वसूल रहे पैसे, करोड़ों का घोटाला

देशभर के 12 राज्यों के 200 टोल प्लाजा में फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हुआ है। STF को लगातार टोल प्लाजा में फर्जीवाड़े की शिकायतें मिल रही थीं।

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Kanak Durga Jha
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4 toll plazas  collected fake money scam worth crores
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देशभर के 12 राज्यों के 200 टोल प्लाजा में फर्जी सॉफ्टवेयर के जरिए करोड़ों रुपए का घोटाला उजागर हुआ है। छत्तीसगढ़ के कुम्हारी, भोजपुरी, महाराजपुर और मुदियापारा टोल प्लाजा भी इस घोटाले की चपेट में हैं। उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने इस घोटाले का भंडाफोड़ करते हुए करोड़ों की गड़बड़ी सामने लाई है।

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कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश?

STF को लगातार टोल प्लाजा में फर्जीवाड़े की शिकायतें मिल रही थीं। गुप्त जांच के बाद 21 जनवरी को यूपी के मिर्जापुर स्थित शिवगुलाम टोल प्लाजा पर छापा मारा गया। छापेमारी में गड़बड़ी का खुलासा हुआ और टोल प्लाजा के मैनेजर राजीव कुमार मिश्रा (प्रयागराज), टोल कर्मी मनीष मिश्रा (मध्य प्रदेश), और मास्टरमाइंड आलोक सिंह (वाराणसी) को गिरफ्तार किया गया।

कैसे काम करता था गिरोह?

गिरोह ने टोल प्लाजा के कंप्यूटर में NHAI के बजाय खुद का फर्जी सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर रखा था। बिना फास्टैग वाले वाहनों से वसूला गया शुल्क सीधे उनके निजी खातों में जमा होता था। NHAI की बजाय फर्जी सॉफ्टवेयर से टोल पर्ची काटी जाती थी। NHAI बिना फास्टैग वाले वाहनों से जुर्माना वसूलता है, लेकिन ये गिरोह उसे मुफ्त दिखाकर पैसा अपनी जेब में रखता था।

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कौन है इसका मास्टरमाइंड?

घोटाले का मास्टरमाइंड आलोक सिंह वाराणसी का रहने वाला है। MCA पास आलोक ने पहले रिद्धि-सिद्धि कंपनी के साथ काम किया था, जहां से उसने टोल प्लाजा की तकनीकी जानकारी हासिल की। इसके बाद उसने खुद का सॉफ्टवेयर तैयार किया और देश के 42 टोल प्लाजा पर इसे इंस्टॉल करवा दिया।

इन राज्यों में हुआ फर्जीवाड़ा

उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम, जम्मू-कश्मीर, गुजरात, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल समेत 12 राज्यों के टोल प्लाजा इस घोटाले की चपेट में आए।

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छापेमारी में मिली ये चीजें?

STF अधिकारियों ने कार्रवाई में 2 लैपटॉप, 5 मोबाइल, 1 प्रिंटर, 1 कार और 19,000 रुपए नकद जब्त किए। इसके अलावा, सॉफ्टवेयर का एक्सेस आलोक के लैपटॉप से लिंक था।

छत्तीसगढ़ में भी सक्रिय था गिरोह

छत्तीसगढ़ के चार बड़े टोल प्लाजा में भी यह गड़बड़ी पाई गई। NHAI को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ। अब जांच के दायरे में टोल प्लाजा के आईटी कर्मी और ठेका लेने वाली कंपनियां भी आ रही हैं।

सरकार और एजेंसियां सतर्क

घोटाले के बाद NHAI ने सख्ती बढ़ाते हुए सभी टोल प्लाजा की तकनीकी जांच शुरू कर दी है। साथ ही टोल प्रबंधन और कंपनियों की भूमिका की भी गहन जांच की जा रही है।

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FAQ

देशभर में टोल प्लाजा घोटाले का खुलासा कैसे हुआ?
टोल प्लाजा में फर्जीवाड़े की शिकायतें मिलने के बाद उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने गुप्त जांच शुरू की। 21 जनवरी को मिर्जापुर के शिवगुलाम टोल प्लाजा पर छापा मारा गया, जहां फर्जी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर घोटाले का खुलासा हुआ। इस कार्रवाई में टोल प्लाजा मैनेजर और कर्मियों को गिरफ्तार किया गया।
टोल प्लाजा में फर्जीवाड़ा कैसे किया जा रहा था?
गिरोह ने NHAI के कंप्यूटर सिस्टम में खुद का फर्जी सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया था। बिना फास्टैग वाले वाहनों से वसूला गया शुल्क NHAI को देने के बजाय गिरोह के सदस्य अपनी निजी जेब में डाल रहे थे। इस सॉफ्टवेयर से टोल पर्चियां काटी जाती थीं और वाहनों को फ्री दिखाया जाता था।
टोल प्लाजा घोटाले का मास्टरमाइंड कौन था और उसने इसे कैसे अंजाम दिया?
इस घोटाले का मास्टरमाइंड आलोक सिंह है, जो वाराणसी का रहने वाला है। आलोक ने MCA किया है और पहले एक टोल कंपनी में काम कर चुका है। वहीं से उसने तकनीकी जानकारी जुटाई और एक फर्जी सॉफ्टवेयर तैयार किया। इस सॉफ्टवेयर को 12 राज्यों के 42 टोल प्लाजा में इंस्टॉल कर घोटाले को अंजाम दिया।

 

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