न्याय की आस में भटक रहे सहायक शिक्षक

छत्तीसगढ़ में सहायक शिक्षकों का एक समूह हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जीत का परचम लहराने के बावजूद दर-दर भटकने को मजबूर हैं। उनकी गुहार अब उपमुख्यमंत्री अरुण साव तक पहुंची है, मगर सवाल वही है क्या अब भी इंसाफ मिलेगा?

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Krishna Kumar Sikander
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Assistant teachers wandering in the hope of justice the sootr
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छत्तीसगढ़ में न्याय का पहिया धीरे-धीरे घूमता है और कभी-कभी तो वह रुक-सा जाता है। सहायक शिक्षकों का एक समूह, जिन्होंने न केवल मेहनत और लगन से अपनी नियुक्ति हासिल की, बल्कि कोर्ट की लंबी लड़ाई जीतकर अपने हक को साबित भी किया, आज भी न्याय की बाट जोह रहा है। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जीत का परचम लहराने के बावजूद ये शिक्षक दर-दर भटकने को मजबूर हैं। उनकी गुहार अब उपमुख्यमंत्री अरुण साव तक पहुंची है, मगर सवाल वही है क्या अब भी इंसाफ मिलेगा?

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एक उम्मीद के साथ साव के दरबार में

धमतरी, बलौदाबाजार, गरियाबंद और प्रदेश के कई जिलों से आए सहायक शिक्षकों ने उपमुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री अरुण साव से मुलाकात की। ये वही शिक्षक हैं, जिन्हें 2014 में नगरीय प्रशासन विभाग के तहत नगर निगम स्कूलों में सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। पूरी प्रक्रिया के तहत चयनित इन शिक्षकों की खुशी महज 50 दिन की मेहमान थी। बिना किसी कारण, बिना नोटिस के उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। तब से शुरू हुआ उनका संघर्ष आज भी जारी है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष आया। इसके बावजूद नियुक्ति की राह में अड़चनें बरकरार हैं। इन शिक्षकों ने उपमुख्यमंत्री साव से मुलाकात की और उन्हें15 अप्रैल 2025 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने की गुहार लगाई, जिसमें उनकी बहाली का स्पष्ट निर्देश दिया गया है।

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सिलसिलेवार समझिए, कहां अटकी कहानी


2 जून 2013: नगरीय प्रशासन विभाग ने नगर निगम स्कूलों में सहायक शिक्षकों के 98 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया।

2014: 98 उम्मीदवारों की चयन सूची जारी हुई, जिसमें से 45 ने पदभार ग्रहण किया।

29 नवंबर 2014: अचानक विभाग ने चयन सूची को निरस्त कर 45 शिक्षकों की सेवा समाप्त कर दी।

16 अप्रैल 2019: हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने शिक्षकों के पक्ष में नियुक्ति का आदेश दिया।

2 मार्च 2022: राज्य सरकार की अपील पर हाई कोर्ट की डबल बेंच ने भी शिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाया।

15 अप्रैल 2025: सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम सुनवाई में शिक्षकों की बहाली का आदेश दिया।

लेकिन कोर्ट के इस स्पष्ट निर्देश के बाद भी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो सकी। सरकार और प्रशासन के बीच फंसे ये शिक्षक अब दो विभागों-नगरीय प्रशासन और शिक्षा विभाग-की आपसी खींचतान का शिकार हो रहे हैं।

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नियम बदले, शिक्षक फंसे

2013 में जब ये नियुक्तियां हुई थीं, तब नगर निगम, पालिका और पंचायतों के स्कूल नगरीय प्रशासन विभाग के अधीन थे। लेकिन 2019 में नियमों में बदलाव के बाद सभी स्कूल शिक्षा विभाग को हस्तांतरित कर दिए गए। यही बदलाव इन शिक्षकों के लिए मुसीबत बन गया। कोर्ट में उनकी याचिका नगरीय प्रशासन के विज्ञापन के तहत नियुक्ति और बर्खास्तगी के खिलाफ थी, लेकिन अब विभागों के बीच का यह उलझा हुआ ताना-बाना उनकी बहाली में रोड़ा बन रहा है।

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तीन सरकारें, एक जैसा दर्द

रमन सिंह की बीजेपी सरकार में शुरू हुआ यह मामला भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार में भी अनसुलझा रहा। अब विष्णु देव साय की बीजेपी सरकार में भी इन शिक्षकों को न्याय की आस टूटी-सी नजर आ रही है। गवेन्द्र कुमार साहू, घनश्याम साहू, विकास कोसरे, पुरुषोत्तम यादव, कृष्णकुमार, योगेश ढीढी जैसे शिक्षकों का दर्द उनकी बातों में साफ झलकता है। हमने कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी, जीत हासिल की, फिर भी हमें अधिकार से वंचित किया जा रहा है।

एक मार्मिक अपील

इन शिक्षकों की कहानी सिर्फ नियुक्ति और बर्खास्तगी की नहीं, बल्कि उम्मीद, संघर्ष और टूटते भरोसे की है। ये वे लोग हैं, जिन्होंने न केवल अपनी मेहनत से नौकरी हासिल की, बल्कि कोर्ट में लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर अपने हक को साबित किया। फिर भी, व्यवस्था की उदासीनता ने उन्हें सड़कों पर ला दिया। उपमुख्यमंत्री साव के सामने रखा उनका ज्ञापन सिर्फ कागज का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि उनकी जिंदगी की वो उम्मीद है, जो अब तक अधूरी है।