बिलासपुर ट्रेन हादसा: साइको टेस्ट में फेल लोको पायलट को मिली थी ट्रेन की जिम्मेदारी, जांच में बड़ा खुलासा

बिलासपुर के भीषण ट्रेन हादसे ने रेलवे की सेफ्टी सिस्टम पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। पता चला है कि जिस लोको पायलट के हाथों यात्रियों की ज़िंदगी सौंपी गई थी, वह मानसिक योग्यता की परीक्षा में असफल था। फिर भी नियमों को ताक पर रखकर उसे ट्रेन चलाने भेजा गया।

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Harrison Masih
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Bilaspur. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में हुए 4 नवंबर के भीषण ट्रेन हादसे के बाद रेलवे प्रशासन की गंभीर लापरवाही सामने आई है। जांच में खुलासा हुआ है कि जिस लोको पायलट विद्यासागर के जिम्मे मेमू लोकल ट्रेन दी गई थी, वे रेलवे के साइकोलॉजिकल टेस्ट में असफल हो चुके थे। इसके बावजूद उन्हें पैसेंजर ट्रेन परिचालन की जिम्मेदारी दी गई- जो रेलवे नियमों का खुला उल्लंघन है।

हादसे की जांच में खुलासा: ‘फेल पायलट’ चला रहा था ट्रेन

विद्यासागर पहले मालगाड़ी चलाते थे और लगभग एक माह पहले ही उन्हें पैसेंजर ट्रेन परिचालन के लिए प्रमोशन दिया गया था। रेलवे के नियमों के अनुसार, किसी भी चालक को मालगाड़ी से पैसेंजर ट्रेन में प्रमोशन देने से पहले साइकोलॉजिकल टेस्ट (Psychological Test) पास करना जरूरी होता है। यह टेस्ट चालक की मानसिक स्थिति, त्वरित निर्णय क्षमता और आपात स्थिति में प्रतिक्रिया का मूल्यांकन करता है।

लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों को विद्यासागर के टेस्ट में असफल होने की जानकारी थी, फिर भी उन्होंने उन्हें ट्रेन चलाने की अनुमति दी। यह वही ट्रेन थी जो 4 नवंबर की शाम हादसे का शिकार हुई।

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बिलासपुर रेल हादसा: 11 की मौत, 20 घायल

4 नवंबर की शाम लगभग 4 बजे, गेवरा रोड और बिलासपुर स्टेशन के बीच मेमू लोकल ट्रेन और मालगाड़ी की जोरदार टक्कर हो गई। इस हादसे में 11 यात्रियों की मौत हुई और 20 से अधिक घायल हुए। दुर्घटना के बाद ट्रेन की अगली बोगी मालगाड़ी के ऊपर चढ़ गई थी। घायल यात्रियों का इलाज रेलवे अस्पताल, सिम्स और अपोलो अस्पताल में जारी है।

तकनीकी खामी और सिग्नल सिस्टम भी बने वजह

रेलवे की पांच सदस्यीय जांच टीम ने प्राथमिक जांच में पाया कि हादसे की मुख्य वजह ऑटो सिग्नलिंग सिस्टम की तकनीकी खामियां और कंट्रोलिंग में लापरवाही थी। सिग्नल सिस्टम ने ग्रीन लाइट दिखाई, जबकि ट्रैक पर पहले से मालगाड़ी खड़ी थी।

CRS जांच: अफसरों से घंटेभर चली पूछताछ

कमिश्नर ऑफ रेलवे सेफ्टी (CRS) बी.के. मिश्रा ने 6 नवंबर को जांच शुरू की। पहले दिन 10 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों से पूछताछ की गई, जिसमें एरिया बोर्ड के एससीआर, एआरटी और एआरएमवी इंचार्ज, कंट्रोलर और लाइन प्रबंधन विभाग शामिल थे।

पूछताछ के दौरान CRS ने अधिकारियों से यह सवाल किए —

  • हादसे के समय कौन ड्यूटी पर था?
  • राहत-बचाव दल (ART, ARMV) कब रवाना हुआ और कितनी देर में पहुंचा?
  • मेडिकल वेन में पर्याप्त संसाधन थे या नहीं?
  • कंट्रोलर सिस्टम में ट्रेनों की स्थिति और दूरी की जानकारी कैसे मॉनिटर की जा रही थी?

पूछताछ रात 10 बजे तक चली, और आज शेष अधिकारियों के बयान दर्ज किए जा रहे हैं।

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गहरी प्रशासनिक चूक का मामला

CRS की जांच रिपोर्ट के प्रारंभिक निष्कर्ष बताते हैं कि रेलवे अधिकारियों ने सुरक्षा मानकों की अनदेखी की। एक ऐसे लोको पायलट को ट्रेन सौंप दी गई जो मानसिक परीक्षण में असफल था- यह न केवल लापरवाही है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा से खुला खिलवाड़ है।

जांच जारी, जिम्मेदारों पर गिरेगी गाज

CRS की टीम अब इस पूरे प्रकरण की फाइनल रिपोर्ट तैयार कर रही है। संभावना है कि रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेजने के बाद संबंधित अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई और सस्पेंशन की सिफारिश की जाएगी।

यह हादसा सिर्फ एक तकनीकी चूक नहीं, बल्कि रेलवे की जवाबदेही और सुरक्षा प्रणाली पर सवाल खड़ा करता है। जहां लाखों यात्रियों की जिंदगी रोज ट्रेनों पर निर्भर है, वहीं ऐसे मामलों ने सुरक्षा प्रोटोकॉल की विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।

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