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छत्तीसगढ़ के जल जीवन मिशन के अंतर्गत एक बार फिर पीएचई (लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग) का सिस्टम सवालों के घेरे में है। दुर्ग जिले के रुदा ग्राम पंचायत में करीब एक करोड़ रूपए की लागत से बनी अधूरी पानी टंकी अब भ्रष्टाचार और लापरवाही की मिसाल बनकर सामने आई है। मामला सामने आने के बाद स्थानीय जनप्रतिनिधियों और ग्रामीणों ने खुलकर नाराजगी जताई है।
करोड़ों खर्च, लेकिन पानी की एक बूंद नहीं!
रुदा गांव में बनी टंकी में अभी तक वर्टिकल वॉल यानी पानी भंडारण की मुख्य संरचना (टंकी) तक तैयार नहीं है। सिर्फ कॉलम, बीम और स्लैब बनाकर करीब एक करोड़ की राशि खर्च कर दी गई। ग्रामीणों ने जब पीएचई अधिकारियों से सवाल किया तो उन्हें कहा गया कि “टंकी अलग से लगाई जाएगी।”
तकनीक या तिकड़म?
पीएचई अफसरों के अनुसार, अब रुदा में जिंक एल्युमिनियम की ओवरहेड टंकी लगाई जाएगी, जो एक नई तकनीक है और इससे लागत में कमी आएगी। लेकिन विशेषज्ञों और पुराने अफसरों का कहना है कि जब पूरा स्ट्रक्चर आरसीसी (RCC) का है, तो वर्टिकल वॉल को भी उसी से बनाना तकनीकी और लागत दोनों में बेहतर होता। जिंक एल्युमिनियम टंकी की उम्र सिर्फ 15-20 साल होती है, जबकि आरसीसी टंकी की आयु 50 से 70 साल तक होती है।
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Corruption in Jal Jeevan Mission
कागज़ों में टंकी पूरी, जमीन पर अधूरी
जनपद पंचायत के पूर्व सदस्य रूपेश देशमुख और गांव के सरपंच नंद कुमार साहू ने बताया कि 2021 में मई से अक्टूबर के बीच इस काम के वर्क ऑर्डर जारी हुए थे और अक्टूबर 2022 में इसे पूरा भी दिखा दिया गया। सामान्य सभा में भी यह घोषणा कर दी गई कि काम पूर्ण हो चुका है। लेकिन हकीकत यह है कि आज तक गांव के लोगों को पानी नहीं मिल पाया है।
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अधिकारियों के तर्क
संजीव बृजपुरिया, अधीक्षण अभियंता, दुर्ग पीएचई का कहना है कि “सिविल वर्क पूरा हो चुका है, बस टंकी की सप्लाई में देरी के कारण पूरा काम अधूरा रह गया है।”
तत्कालीन ईई उत्कर्ष पांडे ने कहा कि “नई तकनीक से जिंक एल्युमिनियम टंकी लगाने से लागत एक चौथाई कम हो जाती है, इसलिए वही टंकी लगाई जा रही है।”
जल जीवन मिशन घोटाला Ruda village Durg
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रुदा गांव में अधूरी पानी टंकी दुर्ग का रुदा गांव
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13 गांवों में था टंकी निर्माण का आदेश
2021 में जल जीवन मिशन के अंतर्गत दुर्ग जिले के 13 गांवों – आमटी, मासाभाट, आलबरस, भोथली, झोला, खाड़ा, रुदा, निकुम, तिरगा, बिरेझर, चंगोरी, थनौद और अंजोरा में पानी टंकी बनाने के लिए वर्क ऑर्डर जारी किए गए थे। योजना के अनुसार अक्टूबर 2022 तक सभी काम पूरे होने थे।
लेकिन रुदा में सामने आए इस मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अन्य गांवों में भी इसी तरह की अधूरी और कागजी योजनाओं को पूरा दिखा दिया गया?
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