40 साल बाद बरी हुआ सौ रूपए की रिश्वत का आरोपी,छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला,जानें पूरा मामला

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 1986 से लंबित एक पुराने भ्रष्टाचार मामले में बड़ा फैसला सुनाया। एमपीएसआरटीसी के बिल असिस्टेंट जागेश्वर प्रसाद अवस्थी पर आरोप था कि उन्होंने 100 रुपये रिश्वत मांगी थी।

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Harrison Masih
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100 Rupee Bribe Case: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 1986 से लंबित एक पुराने भ्रष्टाचार मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। अदालत ने एमपीएसआरटीसी (मध्यप्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम) में बिल असिस्टेंट रहे जागेश्वर प्रसाद अवस्थी को बरी कर दिया है। हाईकोर्ट ने साफ किया कि सबूतों की कमी के कारण ट्रायल कोर्ट का फैसला टिक नहीं सकता। जागेश्वर पर 100 रूपए की रिश्वत मांगी 100 रूपए की रिश्वत मांगने का आरोप था।

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ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी सजा

इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2004 में जागेश्वर प्रसाद अवस्थी को दोषी ठहराते हुए एक साल कैद और जुर्माना की सजा सुनाई थी। उन पर आरोप था कि उन्होंने निगम के कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा से बकाया वेतन बिल पास करने के लिए 100 रूपए की रिश्वत मांगी थी। शिकायत के आधार पर लोकायुक्त ने जाल बिछाया और अवस्थी को रंगे हाथ पकड़े जाने का दावा किया था।

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गवाहों के बयान में विरोधाभास

हाईकोर्ट (CG High Court) ने पूरे केस की सुनवाई के दौरान पाया कि, रिश्वत की मांग और स्वीकार करने के पुख्ता सबूत पेश नहीं किए जा सके। गवाहों के बयान आपस में मेल नहीं खाते थे। कहीं 100 रूपए के एक नोट का जिक्र था तो, कहीं दो 50-50 रूपए के नोट की बात कही गई। इतना ही नहीं, ट्रैप टीम दूरी पर खड़ी थी और उन्होंने पूरे लेन-देन या बातचीत को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा।

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केवल नोटों की बरामदगी से नहीं साबित होता अपराध

हाईकोर्ट ने आदेश में साफ कहा कि, सिर्फ नोटों की बरामदगी से भ्रष्टाचार का अपराध सिद्ध नहीं होता। जब तक यह साबित न हो कि आरोपी ने पैसे मांगे और स्वीकार किए, तब तक दोष सिद्ध नहीं माना जा सकता।

100 रूपए रिश्वत मामला क्या है: ऐसे समझें पूरा केस

1. मामला कब का है

यह भ्रष्टाचार मामला 1986 का है, जिसमें एमपीएसआरटीसी के बिल असिस्टेंट जागेश्वर प्रसाद अवस्थी पर आरोप था।

2. आरोप क्या था

आरोप था कि अवस्थी ने निगम के कर्मचारी अशोक कुमार वर्मा से बकाया वेतन का बिल पास करने के लिए 100 रूपए रिश्वत मांगे थे।

3. ट्रायल कोर्ट का फैसला

ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2004 में अवस्थी को दोषी ठहराते हुए एक साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई थी।

4. हाईकोर्ट की जांच

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि गवाहों के बयान विरोधाभासी थे और ट्रैप टीम ने लेन-देन को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा।

5. फैसला और कारण

हाईकोर्ट ने सिर्फ नोटों की बरामदगी से अपराध साबित नहीं होता मानते हुए अवस्थी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

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संदेह का लाभ देते हुए बरी

इन्हीं आधारों पर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और जागेश्वर प्रसाद अवस्थी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि इस केस में प्रस्तुत सबूत आरोप को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

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