छत्तीसगढ़ में करोड़ों का NGO घोटाला: मंत्री और 7 IAS अफसरों के नाम आए सामने... CBI ने तेज की जांच

छत्तीसगढ़ के चर्चित NGO घोटाले की जांच अब तेज मोड़ पर पहुँच गई है। CBI ने समाज कल्याण विभाग के दफ्तर से तीन बंडल दस्तावेज जब्त कर लिए हैं और जांच की आंच अब मंत्री से लेकर IAS अधिकारियों तक पहुँच रही है।

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Harrison Masih
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Raipur. छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित NGO घोटाले की जांच अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने इस मामले (CG SRC NGO Scam) में कार्रवाई की रफ्तार बढ़ा दी है। बुधवार को CBI की टीम माना स्थित समाज कल्याण विभाग के कार्यालय पहुंची और वहां से स्टेट रिसोर्स सेंटर (SRC) से संबंधित कई अहम दस्तावेजों की फोटोकॉपी जब्त की। टीम ने स्पष्ट किया कि इन दस्तावेजों की जांच के बाद आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।

इस पूरे मामले में अब तक एक पूर्व मंत्री, 7 IAS और 6 राज्य प्रशासनिक सेवा (RAS) अधिकारियों सहित कुल 14 लोगों के नाम सामने आ चुके हैं।

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CBI की जांच तेज- समाज कल्याण विभाग से जुटाए सबूत

CBI अधिकारियों ने विभाग से NGO के संचालन, फंड ट्रांसफर और नियुक्तियों से जुड़े तीन बड़े बंडल दस्तावेज मांगे। जांच एजेंसी यह पता लगा रही है कि बिना मान्यता के चल रहे NGO को केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं के तहत करोड़ों रुपए कैसे ट्रांसफर किए गए।

NGO की कहानी: दिव्यांगों के नाम पर बना फर्जी संगठन

इस NGO की स्थापना वर्ष 2004 में तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री रेणुका सिंह और कई वरिष्ठ IAS अफसरों ने की थी।
संस्थापक सदस्य: रेणुका सिंह (पूर्व मंत्री), रिटायर्ड IAS विवेक ढांढ, एम.के. राउत, डॉ. आलोक शुक्ला, सुनील कुजूर, बी.एल. अग्रवाल, सतीश पांडे और पी.पी. श्रोती।

इस NGO का उद्देश्य दिव्यांगों को सुनने की मशीन, ट्राईसाइकिल, कैलिपर और कृत्रिम अंग उपलब्ध कराना था। लेकिन ये संस्थान सिर्फ कागज़ों पर अस्तित्व में था, जमीनी स्तर पर इसका कोई कार्यालय या कार्य नहीं था।

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बिना मान्यता के करोड़ों की हेराफेरी

छत्तीसगढ़ समाज कल्याण विभाग से मान्यता प्राप्त किए बिना NGO (Fake NGO) को करोड़ों रुपए मिलते रहे। यह फंडिंग 2004 से लेकर 2018 तक जारी रही — यानी करीब 14 साल तक बिना ऑडिट, बिना बैठक और बिना चुनाव के। नियमों के अनुसार, कोई सरकारी अधिकारी NGO का सदस्य नहीं बन सकता, लेकिन इस संस्था में कई वरिष्ठ अधिकारियों के नाम दर्ज थे।

RTI से खुला घोटाले का राज

SRC NGO घोटाला की पोल 2016 में खुली, जब मठपुरैना स्वावलंबन केंद्र (PRRC) के संविदा कर्मचारी कुंदन ठाकुर ने RTI लगाई। उन्होंने पाया कि उनके नाम से एक और जगह से 2012 से वेतन निकाला जा रहा है। RTI से खुलासा हुआ कि रायपुर में 14 और बिलासपुर में 16 ऐसे कर्मचारी हैं, जिनके नाम पर डबल सैलरी ली जा रही थी।

फाइलों की जांच में सामने आया कि एक व्यक्ति को दो से तीन जगह पदस्थ दिखाया गया, जबकि वह वास्तव में कहीं काम नहीं कर रहा था। इस तरह फर्जी नियुक्तियां कर लाखों का वेतन कागज़ों पर बांटा गया। सिर्फ 5 साल में 1.70 करोड़ रुपए का वेतन फर्जी कर्मचारियों को दिया गया दिखाया गया।

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जांच में उजागर हुआ पूरा खेल

हाईकोर्ट के आदेश पर तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने जांच की जिम्मेदारी डॉ. कमलप्रीत सिंह को सौंपी थी।
रिपोर्ट में सामने आया —

NGO के रजिस्ट्रेशन के बाद कभी ऑडिट नहीं हुआ। फर्जी नियुक्तियां की गईं और वेतन नकद में दिया गया। कर्मचारियों के नाम पर दो जगह से सैलरी निकाली गई। 17 साल तक कोई प्रबंध समिति की बैठक नहीं हुई, और चुनाव भी नहीं कराए गए। सरकार ने कोर्ट में जवाब दिया कि “सेंटर भौतिक रूप से संचालित था और 2012–18 के बीच 4000 दिव्यांग मरीजों को कृत्रिम अंग लगाए गए।” लेकिन भुगतानों में अस्पष्टता को स्वीकार किया गया।

छत्तीसगढ़ NGO घोटाला: 5 Points में पूरा मामला

  1. फर्जी NGO की शुरुआत (2004) – मंत्री और 7 IAS अफसरों ने दिव्यांगों के नाम पर NGO बनाया, जो सिर्फ कागज़ों पर चला।

  2. 14 साल तक करोड़ों का घोटाला – बिना मान्यता के NGO के खाते में सरकारी योजनाओं से करोड़ों ट्रांसफर हुए।

  3. फर्जी नियुक्ति और डबल सैलरी – एक ही कर्मचारी को दो जगह पदस्थ दिखाकर दोहरी सैलरी ली जाती रही।

  4. RTI से हुआ खुलासा – संविदा कर्मचारी कुंदन ठाकुर ने RTI के जरिए पूरा मामला उजागर किया।

  5. CBI जांच तेज़ – हाईकोर्ट के आदेश पर CBI ने जांच शुरू कर दी है, मंत्री और IAS अफसरों पर शिकंजा कस रहा है।

अब जांच की आंच बड़े नामों तक पहुंचेगी

CBI अब इस जांच को अगले चरण में ले जा रही है। अगले 15 दिनों में सभी दस्तावेज जब्त करने का काम पूरा किया जाएगा।
एजेंसी की नजर अब इन पर है —

  • NGO के फाउंडर IAS अधिकारी और मंत्री, जिनके नाम पंजीयन में दर्ज हैं।
  • RAS अफसर, जिनके हस्ताक्षर फंड ट्रांसफर में मिले हैं।
  • जिला स्तर के अधिकारी, जिनके जरिए सरकारी योजनाओं का पैसा NGO तक पहुंचा।
  • SRC में दर्ज कर्मचारी, जिनके नाम पर डबल सैलरी ली गई।
  • ऑडिट रोकने वाले अधिकारी, जिन्होंने 14 साल तक कोई जांच या चुनाव नहीं होने दिया।

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संभावना: और बड़े खुलासे आने बाकी

CBI फिलहाल शुरुआती स्तर की जांच में है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक जब बाकी जिलों के दस्तावेजों की जांच पूरी होगी, तो कई और बड़े नाम उजागर हो सकते हैं। यह मामला सिर्फ आर्थिक घोटाले तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रशासनिक भ्रष्टाचार और नियमों की अनदेखी का सबसे बड़ा उदाहरण सामने आ रहा है।

FAQ

छत्तीसगढ़ NGO घोटाला क्या है?
यह घोटाला समाज कल्याण विभाग से जुड़ा है, जहाँ 2004 में बने NGO के जरिए 14 साल तक करोड़ों रुपए की फर्जी नियुक्तियों और डबल सैलरी के नाम पर हेराफेरी की गई।
CG NGO घोटाले में CBI जांच में कौन-कौन शामिल है?
CBI की जांच में एक पूर्व मंत्री, 7 IAS अधिकारी और कई जिला स्तरीय अफसरों के नाम सामने आए हैं। अब सभी से पूछताछ और दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
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