छत्तीसगढ़ की जर्जर सड़कों पर हाईकोर्ट की सख्ती: शासन पर ठोका जुर्माना, मांगी प्रोग्रेस रिपोर्ट

छत्तीसगढ़ की खराब सड़कों पर बिलासपुर हाईकोर्ट ने शासन की लापरवाही पर सख्ती दिखाई। शपथपत्र न देने पर एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। सरकार को दिसंबर तक सड़कों की प्रगति रिपोर्ट देने का आदेश दिया है।

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Sanjay Dhiman
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Bilaspur highcourt order on road

Photograph: (the sootr)

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BILASPUR. बिलासपुर और अन्य शहरों की खराब सड़कों पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने शासन पर नाराजगी जाहिर की। इसे लेकर कोर्ट ने शासन से हलफनामा मांगा था। लेकिन, शासन की तरफ से कोई हलफनामा नहीं दिया गया।

कोर्ट ने इसपर नाराजगी जताते हुए छत्तीसगढ़ शासन पर एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। यह सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच ने की। कोर्ट ने आदेश दिया कि सरकार दिसंबर के पहले सप्ताह तक सड़कों की मरम्मत रिपोर्ट पेश करे। 

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सड़कों की हालत पर हाईकोर्ट ने लिया था संज्ञान

जब प्रदेश और खासकर बिलासपुर शहर की जर्जर सड़कों की स्थिति पर हाईकोर्ट ने खुद संज्ञान लिया। कोर्ट ने देखा कि सड़कों की स्थिति बहुत खराब है। शासन ने इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। इस पर कोर्ट ने शासन को आदेश दिया था कि वह सड़कों की मरम्मत कार्य की रिपोर्ट पेश करे। लेकिन सुनवाई के दौरान शासन की तरफ से कोई शपथपत्र नहीं प्रस्तुत किया।

कोर्ट ने इस ढिलाई और गैर-जिम्मेदाराना रवैये पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने साफ कह दिया कि यह लापरवाही अब नहीं चलेगी। कोर्ट ने शासन पर ₹1000 का जुर्माना लगा दिया। 

सड़कों को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार पर जुर्माना को ऐसे समझें 

  1. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने खराब सड़कों पर शासन से शपथपत्र मांगा, लेकिन शासन ने पेश नहीं किया।
  2. कोर्ट ने शासन पर 1000 रुपए का जुर्माना लगाया और रिपोर्ट देने का आदेश दिया।
  3. कोर्ट ने कहा कि सड़कों की मरम्मत पर पक्की रिपोर्ट दिसंबर तक देनी होगी।
  4. सरकार के दावे को कोर्ट ने नकारते हुए शपथपत्र के रूप में रिपोर्ट मांगी।
  5. सरकार को अब जवाबदेही तय करनी होगी, सड़क सुरक्षा और बुनियादी ढांचे पर निगरानी बढ़ेगी।

दिसंबर तक शासन को देनी होगी प्रोग्रेस रिपोर्ट

सोमवार को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस एनके चंद्रवंशी की बेंच में हुई। कोर्ट ने अब सरकार को अंतिम और कड़ी चेतावनी दी है। हाईकोर्ट ने कहा है कि दिसंबर के पहले हफ्ते तक रिपोर्ट देना जरूरी है।

सड़कों को ठीक करने और बनाने का पक्का ब्यौरा जमा करना ही होगा। यह रिपोर्ट एक शपथपत्र के रूप में पूरी जानकारी वाली होनी चाहिए। इसमें रतनपुर-केंदा और रतनपुर-सेंदरी रोड की हालत शामिल होनी चाहिए। रायपुर रोड पर कितना काम हुआ, इसकी भी पूरी डिटेल चाहिए। कोर्ट ने कहा अब हवा-हवाई बातें बिलकुल भी नहीं चलेंगी। जमीन पर क्या सच्चाई है, उसकी पक्की खबर अदालत को चाहिए। 

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सरकार के दावे और कोर्ट की सख्ती

सरकार के दावे और कोर्ट की सख्ती पर सुनवाई के दौरान कई अहम बातें सामने आईं। शासन के वकील ने कोर्ट को बताया कि रतनपुर-सेंदरी रोड लगभग पूरा बन चुका है। रायपुर रोड करीब 70 प्रतिशत तैयार हो चुकी है और 15 दिन में काम पूरा होने की बात कही गई। लेकिन, कोर्ट इन बातों से संतुष्ट नहीं हुई और कहा कि केवल बोलने से बात नहीं बनेगी। कोर्ट ने साफ कहा कि अब अगली सुनवाई से पहले पूरी रिपोर्ट लिखित रूप में देनी होगी।

अदालत ने आदेश दिया कि सड़कों की स्थिति का प्रमाणिक शपथ पत्र पेश किया जाए। जस्टिस ने कहा कि अब टालमटोल की नीति नहीं चलेगी, जिम्मेदारी तय होगी। कोर्ट का यह रुख सरकार के लिए सीधा संदेश है कि जवाबदेही जरूरी है। जनता के लिए यह राहत की बात है कि अब सड़कों की हालत पर निगरानी बढ़ेगी। सड़क सुरक्षा और बुनियादी ढांचे को सुधारना अब सरकार की प्राथमिकता बन गई है।

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