छत्तीसगढ़ में आदिवासियों ने मांगा अलग धर्मकोड,संघ ने की आदिवासियों को हिंदुत्व के धागे में पिरोने की तैयारी

जनगणना के समय पास आते ही आदिवासियों के अलग धर्मकोड पर बहस छिड़ गई है। कांग्रेस के आदिवासी नेताओं ने भी यह विषय उठाया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता भी मानते हैं कि जनजाति समाज की बेहतरी के लिए अलग कोड होना चाहिए।

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Arun Tiwari
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रायपुर: जनगणना के समय पास आते ही आदिवासियों के अलग धर्मकोड पर बहस छिड़ गई है। कांग्रेस के आदिवासी नेताओं ने भी यह विषय उठाया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता भी मानते हैं कि जनजाति समाज की बेहतरी के लिए अलग कोड होना चाहिए। वहीं विजयादशमी से संघ एक कार्यक्रम शुरु करने जा रहा है। इस मिशन के तहत आदिवासियों को हिंदुत्व के धागे में पिरोने की तैयारी है।

संघ की टोली छत्तीसगढ़ के 20 हजार गांव और 50 लाख लोगों के घरों तक पहुंचेगी। एक हाथ में भारत माता की तस्वीर और दूसरे हाथ में हिंदुत्व किताब लेकर राष्ट्र प्रेम के साथ हिंदुत्व की अलख जगाएगी। स्वयंसेवक प्रत्येक घर में जाकर लोगों से संवाद करेंगे, उन्हें हिंदुत्व की भावना और समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करेंगे। दरअसल इसके पीछे संघ का बड़ा एजेंडा है। संघ आदिवासियों के बीच तू में एक रक्त यानी हम सब एक हैं और सभी हिंदु हैं, इस एजेंडे पर काम कर रहा है। 

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छत्तीसगढ़  की आदिवासी राजनीति में धर्मकोड : 

आजकल आदिवासियों पर खूब राजनीति हो रही है। 32 फीसदी आदिवासी आबादी वाले छत्तीसगढ़ में इसका ज्यादा शोर है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आदिवासी हैं तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज इसी वर्ग से आते हैं। इन दिनों आदिवासी नेताओं के बयानों ने राजनीति के तार को झनझना दिया है।

आदिवासी हिंदु हैं या नहीं बहस अब इस छिड़ गई है। दीपक बैज ने आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग है वहीं मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष आदिवासी नेता उमंग सिंघार ने भी कि आदिवासी हिंदु नहीं हैं। इन बयानों साफ जाहिर है कि ये नेता आदिवासियों को लेकर अलग राजनीति कर रहे हैं। इसी धुंध को साफ करने का बीड़ा अब संघ ने उठाया है।

संघ अनुषांगिक संगठन जनजाति परिषद एकलव्य को आदर्श मानता है। उसका ध्येय वाक्य है कि तू मैं एक रक्त। यानी आदिवासी और हिंदु एक ही खून हैं। आदिवासियों को यही समझाने के लिए संघ  विजयादशमी मिशन शुरु करने जा रहा है। 

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आदिवासी धर्मकोड की मांग : 

देश में होने जा रही जनगणना के समय एक मुद्दा बहुत जोर से उठा है। ये मुद्दा है धर्म कोड का। सर्वआदिवासी समाज की महिला विंग की अध्यक्ष सविता साय कहती हैं कि जनजाति समाज की बेहतरी के लिए अलग कोड होना  जरुरी है। यह कैसा होगा यह बड़ा मुद्दा है। हिंदुओं से अलग होगा या फिर हिंदुओं में भी एक अलग कोर्ड बनाया जाए जो आदिवासी वर्ग के लिए हो।

लेकिन अगर जैन और पारसी समाज के लिए अलग धर्मकोड हो सकता है तो फिर आदिवासियों के लिए क्यों नहीं हो सकता। वे कहती हैं कि अलग धर्मकोड से आदिवासियों का धर्मांतरण रुकेगा,उन पर ज्यादा फोकस होगा और यह आदिवासियों की बेहतरी के लिए जरुरी भी है। 

आदिवासी आइडेंटिटी के लिए जरुरी :

बड़े आदिवासी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम कहते हैं कि आदिवासियों की पहचान बनाए रखने के लिए अलग धर्म कोड होना चाहिए। नेताम कहते हैं कि उन्होंने नागपुर में हुए संघ के कार्यक्रम में भी यही बात कही थी। यदि दूसरे धर्म को इसमें मान्यता मिलती है तो फिर आदिवासियों को अलग धर्म कोड क्यों नहीं मिलना चाहिए।

नेताम कहते हैं कि धर्म कोर्ड से बहुत ज्यादा बदलाव हो या न हो लेकिन जनजाति वर्ग की आइडेंटिटी बनी रहेगी नहीं तो इस वर्ग की पहचान ही खत्म हो जाएगी। 

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क्या है धर्मकोड : 

अलग धर्म कोड, जिसे मुख्य रूप से सरना धर्म कोड के नाम से जाना जाता है, भारत में आदिवासी समुदायों द्वारा अपनी विशिष्ट धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को जनगणना में अलग से दर्ज कराने की मांग है, ताकि उनकी आस्था को औपचारिक मान्यता मिल सके. यह कोड प्रकृति की पूजा करने वाले आदिवासी समुदायों की पहचान को सही ढंग से दर्शाने के लिए है, जो मौजूदा हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्मों के कॉलम में फिट नहीं बैठते हैं। अलग धर्मकोड की मांग इसलिए हो रही है क्योंकि आदिवासी समूह अपनी एक अलग धार्मिक पहचान रखना चाहते हैं, क्योंकि उनकी प्रकृति पूजा और रीति-रिवाज अन्य धर्मों से भिन्न हैं। 

वर्तमान में जनगणना में आदिवासी समुदाय के लिए कोई अलग कॉलम नहीं है। उन्हें हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध या जैन में से कोई एक चुनना पड़ता है, या फिर 'अन्य' विकल्प का चयन करना होता है। अलग धर्म कोड की मांग करने वाले मानते हैं कि इससे जनगणना में उनकी वास्तविक संख्या और धार्मिक पहचान सही ढंग से दर्ज हो सकेगी, जो उनके हकों और अधिकारों को सुनिश्चित करेगा। यह कोड आदिवासियों की सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करेगा, जो कि अनुच्छेद 25 के तहत सुनिश्चित है।

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संघ का विजयादशमी मिशन :

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने छत्तीसगढ़ में हिंदुत्व और राष्ट्रभक्ति का संदेश आमजन तक पहुंचाने के लिए बड़ा अभियान शुरू किया है। संगठन ने घोषणा की है कि 25 सितंबर से 15 अक्टूबर तक प्रदेश के 19 नगरों, 666 बस्तियों और 1,601 मंडलों में विजयदशमी उत्सव मनाया जाएगा। इसके बाद एक नवंबर से संघ के स्वयंसेवक 50 लाख घरों में जाकर भारत माता की तस्वीरें बांटेंगे और संगठन के विचारों से जनता को जोड़ने का प्रयास करेंगे।

संघ के पदाधिकारियों ने बताया कि यह अभियान केवल तस्वीर वितरण तक सीमित नहीं रहेगा। स्वयंसेवक प्रत्येक घर में जाकर लोगों से संवाद करेंगे, उन्हें हिंदुत्व की अवधारणा, समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक करेंगे। संगठन का मानना है कि राष्ट्र निर्माण के लिए समाज में राष्ट्रीयता की भावना मजबूत होना आवश्यक है। इसीलिए व्यापक गृह संपर्क अभियान के तहत घर-घर पहुंचकर विचार साझा किए जाएंगे। 

सत्ता की चाबी आदिवासी :

छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी माने जाने वाली आदिवासी सीटों पर बीजेपी ने इस बार पिछले चुनाव के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। बीजेपी ने 29 में 17 आदिवासी सीट जीती। चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक, आदिवासी इलाकों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा की रैलियां, आदिवासी इलाकों से पार्टी की दो परिवर्तन यात्राओं की शुरुआत और चुनाव पूर्व वादों ने बीजेपी के पक्ष में काम किया।

छत्तीसगढ़ की 90 सदस्यीय विधानसभा में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। राज्य की लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है। कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 25 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की थी जो इस बार यह घटकर 11 रह गई। यही कारण है 2018 में सत्ता हासिल करने वाली कांग्रेस 2023 में सत्ता से बाहर हो गई।

छत्तीसगढ़ आदिवासी समुदाय मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम धर्मकोड
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