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छत्तीसगढ़ सरकार ने बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने और क्षेत्र को विकास के रास्ते पर लाने के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई हैं। इनमें सड़क, बिजली, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं का विस्तार शामिल है।
सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने और बस्तर को शांति के साथ-साथ समृद्धि बनाने का लक्ष्य रखा है। इसी कड़ी में बस्तर संभाग में 213 सड़कों का निर्माण 2026 तक करने की योजना बनाई गई है। ये सड़कें सुदूर गांवों को मुख्यधारा से जोड़ेगी।
इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को सरकार की अपनी नीतियां और प्रशासनिक व्यवस्था ही पंगु बना रही हैं। अभी तक केवल 57 सड़कों का निर्माण कार्य शुरू हो पाया है, और इसका प्रमुख कारण ठेकेदारों को समय पर भुगतान न होना बताया जा रहा है।
बस्तर में विकास की राह में सड़क निर्माण की अहमियत
बस्तर संभाग, जिसमें बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, नारायणपुर, कोंडागांव, और कांकेर जिले शामिल हैं, लंबे समय से नक्सलवाद का गढ़ रहा है। इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति, घने जंगल, और सुदूर इलाकों तक सड़कों की कमी ने नक्सलियों को सुरक्षित ठिकाने प्रदान किए हैं। सड़कें न केवल विकास की रीढ़ हैं, बल्कि सुरक्षा बलों की पहुंच को बढ़ाने और स्थानीय लोगों को आर्थिक अवसरों से जोड़ने में भी महत्वपूर्ण हैं।
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छत्तीसगढ़ सरकार ने इस बात को समझते हुए बस्तर में सड़क निर्माण को प्राथमिकता दी है। हाल के वर्षों में, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में 275 किलोमीटर लंबी 49 सड़कें और 11 पुल बनाए गए हैं, जिससे आवागमन सुगम हुआ है। इसके अलावा, 'नियद नेल्ला नार' (आपका अच्छा गांव) योजना के तहत 54 सुरक्षा शिविरों के 10 किलोमीटर दायरे में स्थित 327 से अधिक गांवों में सड़क, बिजली, स्कूल, और स्वास्थ्य केंद्र जैसी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।
सरकार की योजना 2026 तक बस्तर संभाग में 213 नई सड़कों का निर्माण करने की है, जो सुदूर गांवों को मुख्य सड़क नेटवर्क से जोड़ेगी। इन सड़कों से न केवल स्थानीय लोगों को बाजार, स्कूल, और अस्पताल तक पहुंचने में आसानी होगी, बल्कि सुरक्षा बलों को नक्सलियों के खिलाफ अभियानों में भी मदद मिलेगी।
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ठेकेदारों को भुगतान में देरी सबसे बड़ी बाधा
इन सड़कों के निर्माण में गंभीर समस्याएं सामने आ रही हैं। अभी तक केवल 57 सड़कों का निर्माण कार्य शुरू हो पाया है, और शेष परियोजनाएं ठप पड़ी हैं। इसका सबसे बड़ा कारण ठेकेदारों को समय पर भुगतान न होना है। ठेकेदारों का कहना है कि सरकार द्वारा स्वीकृत फंड समय पर जारी नहीं किए जा रहे हैं, जिसके कारण निर्माण कार्य रुक गया है।
कई ठेकेदारों ने कार्य शुरू करने के बाद सामग्री और मजदूरी के लिए अपने संसाधनों का उपयोग किया, लेकिन भुगतान में देरी के कारण वे अब आगे काम करने में असमर्थ हैं।स्थानीय ठेकेदारों ने बताया कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करना पहले से ही जोखिम भरा है। नक्सलियों के हमले का खतरा, सामग्री की आपूर्ति में कठिनाई, और दूरदराज के इलाकों में संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने काम शुरू किया।
लेकिन भुगतान में देरी ने उनकी आर्थिक स्थिति को और कमजोर कर दिया है। एक ठेकेदार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हमने सरकार के भरोसे काम शुरू किया, लेकिन महीनों से बिल अटके हुए हैं। बिना फंड के हम कैसे काम पूरा करें?"
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प्रशासनिक लापरवाही और नीतिगत खामियां
ठेकेदारों को भुगतान में देरी के पीछे प्रशासनिक लापरवाही और नीतिगत खामियां भी जिम्मेदार हैं। सूत्रों के अनुसार, सड़क निर्माण के लिए आवंटित फंड का उपयोग अन्य योजनाओं में डायवर्ट किया जा रहा है, जिसके कारण ठेकेदारों के बिल लंबित हैं।
इसके अलावा, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में काम करने के लिए विशेष अनुमति और सुरक्षा व्यवस्था की जरूरत होती है, जिसमें समन्वय की कमी देखी जा रही है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की 'नक्सल मुक्त छत्तीसगढ़' नीति और विकास योजनाओं के बीच तालमेल का अभाव है।
एक तरफ सरकार नक्सलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई और आत्मसमर्पण नीति पर जोर दे रही है, वहीं दूसरी तरफ विकास कार्यों में देरी नक्सलियों को फिर से मजबूत होने का मौका दे सकती है।
नक्सल उन्मूलन और विकास का आपसी संबंध
नक्सलवाद के खिलाफ सरकार ने आर या पार लड़ाई छेड़ रखी है। गत डेढ़ वर्षों में विभिन्न मुठभेड़ों में 453 नक्सलियों को ढेर किया जा चुका है। हालांकि, नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म करने के लिए सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ विकास कार्यों को गति देना जरूरी है।
सड़कें, स्कूल, और स्वास्थ्य केंद्र न केवल स्थानीय लोगों का जीवन स्तर सुधारते हैं, बल्कि नक्सलियों के प्रभाव को कम करने में भी मदद करते हैं। बस्तर में सड़क निर्माण की धीमी गति इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सबसे बड़ी बाधा बन रही है।
प्रभाव और चुनौतियां
सड़क निर्माण में देरी का असर न केवल स्थानीय लोगों पर पड़ रहा है, बल्कि नक्सल उन्मूलन की रणनीति पर भी सवाल उठ रहे हैं। बस्तर के सुदूर गांवों में सड़कों की कमी के कारण लोग अब भी बाजार, स्कूल, और अस्पतालों तक पहुंचने के लिए जूझ रहे हैं। इससे नक्सलियों को स्थानीय लोगों के बीच असंतोष फैलाने का मौका मिलता है।
इसके अलावा, ठेकेदारों के बीच बढ़ता असंतोष भी एक नई चुनौती बन रहा है। कई ठेकेदारों ने निर्माण कार्य छोड़ने की धमकी दी है, जिससे परियोजनाओं के और लटकने का खतरा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा की कमी और भुगतान में देरी ने ठेकेदारों का विश्वास कम किया है, जिसके कारण नए ठेकेदार इन परियोजनाओं में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
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