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Effect of pesticides on honey production : शहद अपनी मिठास खोती जा रही है। इतना ही नहीं शहद में कड़वापन भी आने लगा है। दिन प्रतिदिन गिरती जा रही क्वालिटी का असर ये हुआ कि किसानों ने शहद संग्रहण का काम ही छोड़ दिया। शहद प्रसंसकरण केंद्र पर ताले लटक रहे हैं। लाखों की मशीने जंग खा रही हैं। यह सब हुआ है आलू और मिर्च की फसल की वजह से।
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कीटनाशकों से भीगे फूलों बैठकर मधुमक्खियां मर रहीं
छत्तीसगढ़ में जशपुर की शहद प्रसिद्ध है। जशपुर नाम से ही यहां कि शहद हाथों- हाथ बिक जाती थी। अब हालात पहले जैसे नहीं रहे। जशपुर की शहद की क्वालिटी अब खराब बताई जाने लगी है। इसकी वजह है आलू और मिर्च की फसल।
दरअसल, जशपुर के किसान आलू व मिर्च की खेती बड़े पैमाने पर करने लगे हैं। इन फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक कीटनाशकों और खाद का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जा रहा है। कीटनाशकों से भीगे फूलों बैठकर मधुमक्खियां मर रही हैं। शहद का बड़ी मुश्किल से उत्पादन हो पा रहा है। जो उत्पादन होता भी है तो उसमें कड़वापन है।
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शहद प्रसंस्करण केंद्र पर लगा ताला
जशपुर के नजदीक पनचक्की में शहद प्रसंस्करण केंद्र पर पिछले पांच साल से ताला लगा हुआ है। किसानों ने शहद का काम छोड़ दिया है। नतीजा, कच्चा माल लेकर अब कोई प्रसंस्करण केंद्र आता ही नहीं है। एक समय ऐसा था कि यहां पर करीब 24 स्वसहायता समूहों के जरिए लोग शहद लेकर आते थे।
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शहद की क्वालिटी खराब आ रही थी
पनचक्की स्थित प्रसंस्करण केंद्र के मैनेजर आशीष यदुवंशी का कहना है कि शहद की क्वालिटी ठीक नहीं आ रही थी। इसलिए प्रसंस्करण बंद करना पड़ा था। अभी भी क्वालिटी में सुधार नहीं आया है। हालांकि, उनका कहना है कि मशीनें खराब नहीं हुई हैं। जब संग्राहक बेहतर क्वालिटी के शहद लेकर पहुंचेंगे तो फिर से इसे शुरू किया जा सकता है।
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