उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में दिखा यूरेशियन ओटर, सालों से हो रही थी खोज

उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में पहली बार ‘जलीय बाघ’ कहे जाने वाले यूरेशियन ओटर की मौजूदगी कैमरे में कैद हुई है। यह रिकार्डिंग जंगल की जैव विविधता के लिए किसी बड़ी जीत से कम नहीं है।

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Kanak Durga Jha
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Eurasian Otter seen in Udanti-Sitanadi Tiger Reserve
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उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में पहली बार ‘जलीय बाग’ कहे जाने वाले यूरेशियन ओटर की मौजूदगी कैमरे में कैद हुई है। यह रिकार्डिंग जंगल की जैव विविधता के लिए किसी बड़ी जीत से कम नहीं है। जिस जीव को वर्षों तक सिर्फ किस्सों और संदिग्ध निशानों के सहारे खोजा जा रहा था, वो अब कैमरा ट्रैप में साफ-साफ नजर आ गया है। इस दुर्लभ क्षण को संभव बनाया है छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की टीम ने, जो बीते तीन वर्षों से इस रहस्यमयी जीव की तलाश में जंगल-जंगल खाक छान रही थी।

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डीएफओ वरुण जैन के अनुसार, यूरेशियन ओटर की मौजूदगी जंगल की सेहत और फूड चेन की मजबूती का प्रमाण है। जहां यह जीव रहता है, वहां पानी और पर्यावरण का संतुलन बेहतर होता है। यह रिकार्डिंग न केवल छत्तीसगढ़ के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए जैव विविधता के लिहाज से ऐतिहासिक है।

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कैसे हुआ यह मिशन सफल

पीसीसीएफ सुधीर अग्रवाल की अनुमति, जैव विविधता बोर्ड के सेक्रेटरी राजेश चंदेले और पीसीसीएफ अरुण पांडेय के सहयोग से यह मिशन चला। वहीं, डीएफओ वरुण जैन और उनकी टीम एसीएफ जगदीश दर्रो, रेंजर ठाकुर, डिप्टी रेंजर नाग के मार्गदर्शन में जंगल में कैमरा ट्रैप लगाए गए।

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वैज्ञानिक टीम की खोजी यात्रा

छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा की इस टीम में जूलॉजिस्ट निधि सिंह, बाटनिस्ट दिनेश कुमार, एनवायरनमेंट साइंटिस्ट डा. वाय.के. सोना, पक्षी विज्ञानी सर्वज्ञा सिंह, जनविज्ञानी विश्वास मेश्राम और प्राचार्य फ्रैंक अगस्टिन नंद जैसे विशेषज्ञ शामिल रहे। इनकी संयुक्त मेहनत ने इस ‘वाटर मिस्ट्री’ को उजागर कर दिया। अब योजना है ओटर के संरक्षण को लेकर बड़े स्तर पर जनजागरूकता फैलाने की। मरवाही और कोरबा के बाद अब गरियाबंद के जंगल भी ‘जलीय बाघ’ की नई पनाहगाह बन चुके हैं। 

 

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