छत्तीसगढ़ में निजी मेडिकल कॉलेज में मैनेजमेंट कोटे से एडमिशन का खेल, एक-एक करोड़ में सीट बेच रहे एजेंट

छत्तीसगढ़ के निजी मेडिकल कॉलेजों में स्टेट और मैनेजमेंट कोटे की फीस समान होने के बावजूद, एजेंट मैनेजमेंट कोटे की सीटों को एक करोड़ रुपये में बेचने का दावा कर रहे हैं। यह नया पैंतरा छात्रों और अभिभावकों को ठगने के लिए अपनाया जा रहा है।

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Krishna Kumar Sikander
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छत्तीसगढ़ के निजी मेडिकल कॉलेजों में स्टेट और मैनेजमेंट कोटे की फीस समान होने के बावजूद, एजेंट मैनेजमेंट कोटे की सीटों को एक करोड़ रुपये में बेचने का दावा कर रहे हैं। यह नया पैंतरा छात्रों और अभिभावकों को ठगने के लिए अपनाया जा रहा है। एजेंट एनआरआई कोटे के नाम पर 5 लाख रुपये एडवांस लेकर एक से सवा करोड़ रुपये में सीट पक्की करने का लालच दे रहे हैं। 

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एनआरआई और मैनेजमेंट कोटे में भी फर्जीवाड़ा

एजेंटों का दावा है कि एनआरआई कोटे में एडमिशन के लिए उनकी मदद अनिवार्य है, वरना सीट मिलना मुश्किल है। न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि मध्यप्रदेश और राजस्थान के निजी मेडिकल कॉलेजों में भी एजेंट इसी तरह के दावे कर रहे हैं। खास बात यह है कि छत्तीसगढ़ में मैनेजमेंट कोटे में भी एडमिशन का झांसा दिया जा रहा है। जबकि नियमों के अनुसार, मैनेजमेंट और एनआरआई कोटे में एडमिशन के लिए नीट-यूजी क्वालिफाई करना और मेरिट लिस्ट में शामिल होना अनिवार्य है। मैनेजमेंट कोटे के लिए कोई अतिरिक्त फीस नहीं ली जाती। हालांकि, कॉलेज प्रबंधन ट्यूशन फीस के अलावा हॉस्टल, मेस, ट्रांसपोर्ट आदि के नाम पर 65 लाख रुपये तक वसूलते हैं। 

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आखिर एडमिशन में एजेंटों की क्या भूमिका है? 

मेडिकल एजुकेशन से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि मैनेजमेंट और एनआरआई कोटे में एडमिशन के लिए एजेंटों की कोई जरूरत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल पंजाब-हरियाणा के एक मामले में एनआरआई कोटे के दुरुपयोग पर टिप्पणी की थी कि दूर के रिश्तेदारों को प्रवेश देना सीट बेचने के समान है।

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छत्तीसगढ़ के एमबीबीएस प्रवेश नियम-2018 के अनुसार, एनआरआई कोटे में नामांकन के लिए कुछ अनिवार्य शर्तें रखी गई है। इसके लिए दो पीढ़ी तक के रक्त संबंधी यानी माता-पिता, भाई-बहन, चाचा, मामा, बुआ, नाना-नानी आदि को ही पात्र माना जाएगा। इसके बावजूद उनके पास तहसीलदार या उच्च अधिकारी द्वारा जारी वंशावली प्रमाणपत्र होना चाहिए। प्रदेश के पांच निजी मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई कोटे की कुल 103 सीटें हैं।

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अभिभावक रहें सावधान

रिटायर्ड डीएमई और हेल्थ साइंस विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एके चंद्राकर ने कहा कि एजेंटों द्वारा झांसा देना कोई नई बात नहीं है। अभिभावक इनके लालच में आकर अपनी मेहनत की कमाई गंवा देते हैं और प्रवेश की गारंटी भी नहीं मिलती। इससे न केवल पैसा, बल्कि छात्रों का एक साल भी बर्बाद होता है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में मेडिकल काउंसलिंग पूरी तरह पारदर्शी है, इसलिए अभिभावकों को सतर्क रहना चाहिए और किसी भी एजेंट के बहकावे में नहीं आना चाहिए।

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